पहले आप मन की दुर्बलता पर विजय पाएं तभी आप जीवन संघर्ष में विजयी हो पाएंगे

किताबें जानकारी देने का माध्यम ही नहीं होती बल्कि वह आपकी सच्ची दोस्त और बेहतर अध्यापक भी होती हैं अच्छी किताबें बाहर की चुनौतियों से लड़ते हुए अंदर की कमजोरियों से  जीने का सबक देती है और आत्मविश्वास और संघर्ष को सिखाते हुए हमारी मानसिक स्थिति भी मजबूत करती हैं महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद्र की ज्यादातर कहानियों में कथा नायक गरीबी और भुखमरी और सामाजिक व्यवस्था में संघर्ष की कहानी छुपी होती है मुंशी प्रेमचंद्र का कहना है कि मन एक डरपोक शत्रु है जो मौका पाने पर पीछे से वार करने की कोशिश करता है इसलिए जीवन संग्राम में सबसे पहले मन की दुर्बलता पर विजय पाएं तभी आप जीवन में भी सभी कामों में विजई हो सकते हैं।
आपको बताते चले की मौजूदा हालात में कई घटनाओं से प्रेरित होकर ऐसी कई किताबें लिखी गई है जिसके नायक और नायिका लक्ष्य में सफल होने से पहले अपने आसपास से और मन की दुर्बलता से लड़ाई लड़नी सीख रहे हैं ओम प्रकाश राय यायावर का उपन्यास आपका रसिया इसकी नायिका का व्याख्या व्यक्तित्व कई मानवीय अंतर्विरोध से भरा पड़ा है मन को शांति रखने को वह चुनौती की तरह लेती है और दोगुनी ऊर्जा के साथ इस काम को आगे बढ़ाती हैं इस तरीके से वह नाही सिर्फ अंतर्विरोध बल्कि समाज की रूढ़ियों के साथ लड़ाई लड़ने में भी सक्षम हो पाती है जिसके लेखक ओमप्रकाश राजभर का कहना है कि इंसान अपनी मंजिल तब तक नहीं पा सकता जब तक वह अंतर्विरोध ऊपर विजय ना पाले समाज विज्ञानी संदीप शर्मा के अनुसार मन के अंदर विचारों की लड़ाइयां लाजमी है जब सकारात्मक विचार हमारी नकारात्मकता पर विजय पा लेते हैं तभी हम बाहरी लड़ाइयां के लिए तैयार हो पाते हैं