विवाह में आने वाली सभी बाधाएं दूर करती हैं मां कात्यायनी जाने इनकी पूजन विधि





 कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं ! दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है !
माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना के द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है ! वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है !

“ सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके !
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते !!

“ चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना !
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी !! “

 माँ कात्यायनी की पूजा विधि :-

जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन माँ कात्यायनी जी की सभी प्रकारसे विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने
हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए ! माँ कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं ! इनकी पूजा के पश्चात देवी  कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है ! पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूललेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है !

माँ कात्यायनी की पूजा करने के लिए विशेष मंत्र  का जाप करें:-

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम !!
भगवती मां कात्यायनी का ध्यान, स्तोत्र व कवच के जाप करने से आज्ञाचक्र जाग्रत होता है ! और इससे रोग, शोक, संताप, भय, विध्न बाधा  से मुक्ति मिलती है •••••• !!!

 देवी कात्यायनी के मंत्र :-

चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना !
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी !!

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!

 माता कात्यायनी की ध्यान :-

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम् !
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम् !!

स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम् !
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि !!

पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम् !
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम् !!

प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम् !
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम !!


 माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ :-

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां !
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते !!

पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां !
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते !!

परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा !
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते !!

देवी कात्यायनी की कवच :-

कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी !
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी !!

कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी !!

नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाता हैं !

देवी कात्यायनी की कात्यायनी कथा :-

देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ॠषि हुए तथा उनके पुत्र ॠषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ॠषि कात्यायन उत्पन्न हुए थे ! देवी कात्यायनी जी देवताओं, ऋषियों के संकटों कोदूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न होती हैं ! महर्षि कात्यायन जी ने देवी पालन पोषण किया था ! जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ॠषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या, पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं ! महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें ! देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनोंतक कात्यायन ॠषि ने इनकी पूजा की, दशमी को देवी ने महिषासुर का वध किया ओर देवों को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया !

माँ कात्यायनी की कृपा सभी पर बनी रहे

के सी शर्मा