जाने किसे कहते हैं काला धन -के सी शर्मा




 नोटबन्दी की वर्षगांठ पर देख रहा हूँ बहुत से लोग नोटबन्दी को याद कर विलाप कर रहे हैं और मोदी व् भाजपा सरकार को कोस रहे हैं,  ऐसे लोगों के पास नोटबन्दी के विषय मे कुतर्क यह होता है की 99% नोट बैंकों में वापस आ गए तो फिर काला धन कहां गया ?
ऐसे बुद्धिमानों को मैं बताना चाहता हूं कि काले धन का अर्थ काले रंग से सने हुए नोट नहीं होता, अपितु काला धन वह होता है जिस पर सरकार को टैक्स नहीं दिया गया और जिस धन के स्रोत की जानकारी अस्पष्ट है, और जब नोटबन्दी के बाद वह सारा धन बैंकों में आ गया तो जमाकर्ताओं से सरकार ने उस धन पर टैक्स वसूला, उनपर उचित कार्यवाही करी और उस धन का स्रोत भी पता चल गया।
वैसे इन सभी रोने-धोने वालों व् विलापियों में एक बात समान है कि इनमें से कोई भी स्पष्ट रूप से अपने व्यथित होने का कारण नहीं बता रहा है, सब के सब केवल अर्थव्यवस्था का नाम लेकर मोदी और भाजपा को कोसने में लगे हुए है,
परंतु यदि हम अर्थव्यवस्था से जुड़े तथ्यों की बात करें तो
 भारत आज विश्व की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है,
 पिछले 70 वर्षों तक भारत विश्व के सर्वाधिक गरीबों का देश था, आज वह कलंक भारत के मस्तक से मिट चुका है,
 औद्योगिक विकास दर का औसत पिछले 10 वर्षों के औसत आंकड़े से बेहतर है,
 महंगाई दर की बात करें तो एक दशक के कांग्रेस राज में जो खाद्य महंगाई दर 12 से 15% के बीच थी वो आज 4% से भी कम है,
 देश का विदेशी मुद्रा भंडार अपने सर्वोच्च स्तर पर है
 वित्तीय घाटा और चालू वित्त वर्ष घाटा निरंतर कम हुआ है,
 लाखों करोड़ के NPA की रिकवरी हुई है,
भारत का डेब्ट टू जीडीपी रेशियो सभी विकसित देशों से बेहतर है जिसके कारण निरंतर विदेशी निवेश में बढ़ोतरी हो रही है,
इससे आप समझ सकते हैं कि अर्थव्यवस्था सुदृढ़ है और सही पथ पर अग्रसर है, अतः इन विलापियों का क्रंदन कोरी नौटंकी के अतिरिक्त और कुछ नही जान पड़ता है,
अब यदि नोटबंदी के बाद आये।

 *सकरात्मक परिणामों और निष्कर्षों की बात करें तो :-*

 करेंसी फ्लो में जो नकली नोट थे वे समाप्त हुए,
 जिन भी लोगों के पास काला धन था, उनको वो बैंकों में जमा करना पड़ा और उसपर टैक्स देना पड़ा, जिसका परिणाम यह हुआ कि 99लाख 49 हजार नए टैक्सपेयर बढ़े यानी देश के सरकारी खजाने में वृद्धि हुई,
 नोटबन्दी के बाद टैक्स बेस बढ़कर 6.26 करोड़ पहुंच गया जो कि न केवल सरकार की उपलब्धि थी बल्कि राष्ट्रीय दृष्टि से भी एक शुभ समाचार है, राष्ट्रीय इकोनॉमिक सर्वे ने भी नोटबन्दी को टैक्स बेस बढ़ने की प्रमुख वजह बताया
 नोटबन्दी के बाद बैंकों में जमा हुए धन के स्रोतों की जांच में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को बड़ी सफलताएं प्राप्त हुईं और अघोषित आय की जांचे बढ़कर दो गुनी हो गईं,
 नोटबंदी के बाद बैंकों द्वारा विभिन्न कंपनियों से प्राप्त धनराशि के स्रोतों की जांच में पता चला की 5800 कंपनियां 13140 संदिग्ध खाते ऑपरेट कर रही थी जिन पर कानूनी कार्यवाही हुई, ऐसी एक संदिग्ध कंपनी तो अकेले 2140 खाते ऑपरेट कर रही थी, जिस पर कार्यवाही हुई
 नोटबंदी के बाद 2,24,000 ऐसी कंपनियां बंद हुई जो कि संदिग्ध ट्रांजैक्शन किया करती थी,
 नोटबंदी के बाद 73,000 डीलिस्टेड कंपनियों ने बैंकों में 24,000 करोड़ों रुपए जमा करवाए, इसके पश्चात उस धन के स्रोत की जांच हुई और कई टैक्स चोर और काला धन के स्वामी दबोचे गए और उन पर मुक़दमे दायर हुए
 सिर्फ इतना ही नहीं, नोटबंदी के बाद 14000 ऐसे एनजीओ भी पकड़ में आए जो कि अपनी फंडिंग और धन का स्रोत स्पष्ट नहीं कर पाए और सरकार ने कानूनी कार्यवाही के अंतर्गत उन्हें बंद कर दिया

अब नोटबंदी के बाद इतने सारे सकारात्मक परिणाम आने के बाद भी लोगों का उसका नाम लेकर विलाप करना वह उसे क्रिटिसाइज करना एक सामान्य व्यक्ति के समझ के बाहर है, किंतु यह अवश्य स्पष्ट कर देता है कि यह विलापीये, या तो स्वयं काला धन दबाकर बैठे थे जो कि नोटबंदी के बाद इनके किसी काम का न रहा, अथवा इन्हें उस धन को बैंकों में जमा करना पड़ा और उस पर टैक्स देना पड़ गया, अथवा यह लोग या तो भृष्ट हैं, या लिबरल, प्रगतिशील, बुद्धिजीवी, सेक्यूलर गैंग का हिस्सा हैं, या फिर किसी विपक्षी पार्टी से इनका जुड़ाव है जो केवल नाम भर के लिए नोटबन्दी जैसे सकरात्मक निर्णय की आलोचना की आढ़ में अपने राजनीतिक आकाओं का अथवा अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने हेतु प्रयासरत हैं,,,