21 दिसंबर हमारे रियल हीरो अनंत कंहारे



के सी शर्मा*

अंग्रेज शासन में कुछ अधिकारी छोटी-छोटी बात पर बड़ी सजाएं देकर समाज में आतंक फैला रहे थे। इस प्रकार वे कोलकाता, दिल्ली और लंदन में बैठे अधिकारियों की फाइल में अपने नंबर भी बढ़वाना चाहते थे।

महाराष्ट्र में नासिक का जिलाधीश जैक्सन एक क्रूर अधिकारी था। उसने देशभक्तों का मुकदमा लड़ने वाले वकील सखाराम की जेल में हत्या करा दी। लोकमान्य तिलक को उनके दो लेखों पर सजा दिलवाकर छह वर्ष के लिए जेल भेजा तथा देशप्रेम की कविताएं लिखने के आरोप में श्री गणेश दामोदर सावरकर को आजीवन कारावास की सजा देकर अंदमान भिजवाया था।

इससे नाराज क्रांतिकारियों ने जैक्सन को मारने का निर्णय लिया। इसके लिए सबसे अधिक उत्साह युवा क्रांतिवीर अनंत कान्हरे दिखा रहा था। उसका जन्म 1891 में ग्राम आयटीमेटे खेड़ (औरंगाबाद) में हुआ था। वह ‘अभिनव भारत’ नामक संस्था का सदस्य था। उसके आदर्श मदनलाल धींगरा थे, जिन्होंने लंदन की भरी सभा में कर्जन वायली का वध किया था।

अनंत एक दिलेर युवक था। एक बार उसने यह दिखाने के लिए कि वह किसी भी शारीरिक यातना से विचलित नहीं होगा, जलती हुई चिमनी पर अपनी हथेली रख दी और फिर दो मिनट तक नहीं हटाई। इसी बीच जैक्सन का स्थानांतरण पुणे हो गया। उसके कार्यालय के साथियों ने 21 दिसम्बर, 1909 को नासिक के ‘विजयानंद सभा भवन’ में रात के समय ‘शारदा’ नामक नाटक का कार्यक्रम रखा। इसी में उसे विदाई दी जाने वाली थी।

क्रांतिकारियों ने इसी सभा में सार्वजनिक रूप से उसे पुरस्कार देने का निर्णय लिया। इसके लिए अनंत कान्हरे, विनायक नारायण देशपांडे तथा कृष्ण गोपाल कर्वे ने जिम्मेदारी ली। 21 दिसम्बर की शाम को देशपांडे के घर सब योजनाकार मिले और तीनों को लंदन से वीर सावरकर द्वारा भेजी तथा चतुर्भुज अमीन द्वारा लाई गयी ब्राउनिंग पिस्तौलें सौंप दी गयीं।

पहला वार अनंत कान्हरे को करना था, अतः उसे एक निकेल प्लेटेड रिवाल्वर और दिया गया। योजना यह थी कि यदि अनंत का वार खाली गया, तो देशपांडे हमला करेगा। यदि वह भी असफल हुआ तो कर्वे गोली चलाएगा। समय से पूर्व वहां पहुंचकर तीनों ने अपनी स्थिति ले ली। जिस मार्ग से जैक्सन सभागार में आने वाला था, अनंत वहीं एक कुर्सी पर बैठ गया।

निश्चित समय पर जैक्सन आया। उसके साथ कई लोग थे। आयोजकों ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया। इससे उसके आसपास कुछ भीड़ एकत्र हो गयी; पर जैसे ही वह कुछ आगे बढ़ा, अनंत ने एक गोली चला दी। वह गोली खाली गई। दूसरी गोली जैक्सन की बांह पर लगी और वह धरती पर गिर गया। उसके गिरते ही अनंत ने पूरी पिस्तौल उस पर खाली कर दी।

जैक्सन की मृत्यु वहीं घटनास्थल पर हो गयी। नासिक से विदाई समारोह में उसे दुनिया से ही विदाई दे दी गयी। लोग कान्हरे पर टूट पड़े और उसे बहुत मारा। कुछ देर बाद पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया। इन पर जैक्सन की हत्या का मुकदमा चला तथा 19 अपै्रल, 1910 को ठाणे की जेल में तीनों को फांसी दे दी गयी। फांसी के समय अनंत कान्हरे की आयु केवल 18 वर्ष ही थी।