5 दिसंबर संत ज्ञानेश्वर महाराज की पुण्यतिथि पर विशेष रिपोर्ट के सी शर्मा की कलम से



के सी शर्मा*
इस पंडित की आज्ञा का पालन करो। ज्यों ही उन्होंने ऐसा कहा, भैंसे ने गम्भीर मानवी वाणी में कहना शुरु किया......
संत ज्ञानेश्वर और उनके भाई-बहन निवृत्ति, सोपान एवं मुक्ताबाई को पैठण के ब्राह्मणों ने जाति से बहिष्कृत कर दिया । यह देख एक सज्जन को दया आयी और वह उन्हें अपने साथ पैठण ले गया । उन्हें गाँव में आया देख,लोग रुष्ट हो गये ।

एक पंडित ने ज्ञानेश्वरजी की हँसी उड़ाते हुए कहा :‘‘इसका नाम तो ज्ञानेश्वर है, मगर ज्ञान दो कौड़ी का भी नहीं है। इससे ज्ञानेश्वरजी के स्वाभिमान को ठेस पहुँची ।

उन्होंने कहा : ‘‘मेरा ज्ञान क्या पूछते हो ? मुझे सारे विश्व का ज्ञान है, विश्व के समस्त रूपों में मैं ही समाया हुआ हूँ ।

‘‘बस ! बस !! बस !!! पंडित ने कहा: ‘‘बड़ा आया है शेखी बघारनेवाला । देखता हूँ, किन-किन रूपों में तू समाया है। वह सामने जो भैंसा दिखायी दे रहा है, शायद वह भी तेरा ही रूप है।
ज्ञानेश्वरजी ने उत्तर दिया : ‘‘हाँ, हाँ ! मेरा ही रूप है । वह पंडित उस भैंसे के पास गया और उसने उसकी पीठ पर सटाक्-से तीन चाबुक लगाये और ज्ञानेश्वरजी की ओर व्यंग्य से देखा । ज्ञानेश्वरजी ने तुरंत अपनी पीठ उसकी ओर कर दी । सब लोग यह देखकर चकित रह गये कि पंडित के चाबुक के निशान उनकी पीठ पर उभर आये थे । किंतु पंडित पर इसका कोई असर न हुआ ।

वह बोला : ‘‘इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है । यह तो जादू से भी हो सकता है । *यदि तु इस भैंसे के मुँह से वेदमंत्र सुनवाओ, तो जानूँगा कि तुमें भी ज्ञान है । तब ज्ञानेश्वरजी भैंसे के पास गये और उसकी पीठ पर हाथ फेरकर कहा : ‘‘इस पंडित की आज्ञा का पालन करो। ज्यों ही उन्होंने ऐसा कहा, भैंसे ने गम्भीर मानवी वाणी में कहना शुरु किया : अग्निमीले पुरोहितम् यज्ञस्य देवमृत्विजं होतारं रत्नधातजम्.....।

यह देखते ही उपस्थित जन और भी आश्चर्यचकित होकर रह गये । वह पंडित और अन्य शास्त्री ज्ञानेश्वरजी के चरणों पर गिर पड़े और उन्होंने कहा : ‘‘ज्ञानेश्वर ! मान गये । तु साक्षात् भगवान हो । अवश्य तु जगत का कल्याण करोगे । 
(2) प्रार्थना के कुछ लाभ बताईये ?
उत्तर : हृदय पवित्र बनता है ।

गृहकार्य : संत ज्ञानेश्वरजी के जीवन से जुड़ी पाँच