संस्कारो की सफलता के लिए युवाओ में नैतिक शिक्षा भी जरूरी - संतोष गंगेले छतरपुर

छतरपुर भारतीय संस्कृति और संस्कारों का समाज में दिनोंदिन हो रहे पतन पर चिंतन करते हुए बुंदेलखंड के कर्मयोगी सन्तोष गंगेले जी ने बुन्देलखण्ड की युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति के प्रति सजग करने का अनुकरणीय बीड़ा उठाया है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में संचालित शिक्षण संस्थाओं में अध्ययनरत बच्चों को श्री गंगेले द्वारा नैतिक ज्ञान देने का कार्य गत समय से सफलतापूर्वक किया जा रहा है।इसी क्रम में बुधवार  को शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अलीपुरा  स्कूल में नैतिकता सम्बन्धी विचार गोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन गया। संस्था के प्राचार्य श्री खान साहब जी अतिथि को मैडल पहना कर उनका स्वागत और सम्मान किया।  शिक्षक श्री हृदेश कुशवाहा ने संचालन किया।

        विद्यालय में अध्ययनरत कन्याओं के श्री संतोष गंगेले जी ने पाँवपूजन कर कार्यक्रम की शुरुआत की।इसके बाद छात्र-छात्राओं को ज्ञानवर्धक पुस्तकें देकर सम्मानित किया गया।

  कार्यक्रम के आयोजक कर्मयोगी सन्तोष गंगेले ने उपस्थित  बच्चों को सम्बोधित करते हुए कहा कि वर्तमान परिवेश में बड़े-बुजुर्गों के सम्मान में युवा पीढ़ी द्वारा शर्म महसूस की जाती है,जी कि युवा पीढ़ी के पतन का मुख्य कारण है।हम आप जानते हैं कि इतिहास के पन्नों में इस बात के प्रमाण दर्ज हैं कि  अपनी संस्कृति और संस्कारों के कारण सम्पूर्ण विश्व भर में भारत जाना है।उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश युवा पीढ़ी पर पश्चिमी संस्कृति की छाप का असर पड़ने से भारत अपनी विशिष्ट पहचान को खोता जा रहा है।



         माँ से बढ़कर इस दुनिया में कोई नही

     

सामाजिक कार्यकर्ता श्री संतोष गंगेले कर्मयोगी  ने बच्चों को बताया कि माता-पिता से बढ़कर इस दुनिया में कोई नही है।माँ को प्रथम गुरू बताते हुए उन्होंने जन्म देने वाले माता-पिता को सर्वोच्च बताया।कार्यक्रम में उपस्थित बच्चों से उन्होंने प्रतिदिन माता-पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लेने को कहा और बच्चियों से रोजाना नमस्ते करने को बोला।इसके साथ ही उन्होंने सभी से अपने से बड़ों का सम्मान करने की अपील की।

  उन्होंने बच्चियों को सृष्टि का रचयिता बताते हुए लड़कों से श्रेष्ठ बताया।उनने कहा कि लड़के तो सिर्फ एक कुल का ही दीपक होते हैं जबकि बच्चियाँ दो कुलों मायके और ससुराल दोनों की लाज होती है। माँ की कहानी सुनकर माँ के कदमो  जन्नत स्वर्ग बताया। प्राचार्य की घडी की प्रेरणादाई कहानी सभी को जीवन बदलने बाली थी।

     

         कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है

     

कर्मयोगी श्री संतोष गंगेले छात्र-छात्राओं को बताया कि नैतिकता ही सफलता की कुंजी है।यदि आप सभी लोग अपने जीवन में नैतिकता को समाहित कर लें तो आपको सफलता स्वमेव ही प्राप्त हो जावेगी।उन्होंने कर्म को प्रधान बताते हुए बच्चों की सीख दी कि कर्म से हम-आप भाग्य को बदल सकते हैं।सफलता के शिखर पर पहुँचने वाले सभी लोगों की जीवनी पर नजर डालें तो ज्ञात होता है कि सफल हस्तियों ने जीवन के शुरूआती दिनों में विपरीत परिस्थितियों के साथ ही भारी अभाव के बावजूद भी अपने कर्म की बदौलत सफलता अर्जित की।श्री गंगेले ने बच्चों से मोबाइल का दुरूपयोग न करने की अपील करते हुए गूगल में किसी भी महापुरुष की जीवनी को सर्च कर सिर्फ दस मिनट ही पड़ने का आग्रह किया।उन्होंने कहा कि इससे निश्चित ही आप लोगों के मन में सफलता प्राप्त करने के लिए दृढ़ शक्ति पैदा होगी।



         मानवता के लिए की  मंगलमय कामना

       

श्री संतोष  गंगेले ने उपस्थित सभी लोगों को ताउम्र निरोगी रहने के लिए नियम-संयम से जीवन जीने को कहा।उन्होंने सभी के लिए मंगलमय जीवन की कामना करते हुए कर्मयोगी जीवन जीने,घर-परिवार,समाज, बेसहारा,पीड़ित परेशान,प्राकृतिक प्रकोप से पीड़ित जनों की सहायता करने में सामर्थ्य के अनुसार मदद की सभी से अपील की।

         समाज सेवा के लिए की   विद्यालय परिवार ने किया आभार व्यक्त

               सभी शिक्षकों ने बुंदेलखंड के समाजसेवी संतोष गंगेले कर्म योगी के निस्वार्थ भाव से परोपकारी जीवन की खुलकर सराहना की शाला परिवार की ओर से उनका आभार व्यक्त किया गया