हथेली के यह पर्वत बदल देते हैं आपका भाग्य



के सी शर्मा
'सूर्य' तथा 'गुरू'(बृहस्पति) का बलवान होना परमावश्यक है ।

 गुरू धर्म, दर्शन, राजनीति तथा उच्चाधिकार से सम्बन्धित माना गया है ! तथा सूर्य राज्य-प्रशासन तथा शासनादि से सम्बन्धित ग्रह हैं !

जब हथेली में सूर्य तथा गुरू परिवत विकसित(ऊपर को उभरे हुए) हों, तथा भाग्य रेखा भी प्रबल हो, तो व्यक्ति प्रशासन में उच्चाधिकारी(मंत्री आदि) होता है !

 सूर्य पिता का कारक ग्रह है ! हथेली में सूर्य पर्वत विकसित हो, तो पिता का सुख मिलता है,
किंतु अविकसित अथव् दोषयुक्त हो, तो पिता का सुख पिराय: नहीं मिलता है तथा पिता कष्टमय स्थिति में ही रहते हैं !

सूर्य पर्वत शनि पर्वत की तरफ झुका हो अथवा शनि पर्वत सूरिय की ओर झुका हुआ हो, अथवा दोनो आपस में मिले हों, तो पिता से मत्भेदादि लगे रहते हैं तथा पिता का सुख प्राय: प्राप्त नहीं होता है !

विकसित गुरू पर्वत व्यक्ति को मह्तवाकाँक्षी बनाता है !  ऐसे व्यक्ति की इच्छाएँ बहुत ही अधिक बढ़ी-चढ़ी होती हैं !

सूर्य-शनि पर्वत का परस्पर झुकावादि हड्डियों तथा दिल से सम्बन्धित कष्ट भी देता है ! ऐसे व्यक्ति को "हार्ट अटैक" का भय बना ही रहता है !

हथेली में गुरू तथा सूर्य पर्वत दोनो ही विकसित हों, तो व्यक्ति उचिच तथा प्रतिष्ठित कुल में जन्म लेता है !

गुरू पर्वत बहुत अधिक विकसित (ऊपर क उठा हुआ) हो, तो व्यक्ति अहंकारी प्रवृति का होता है तथा स्वयँ के सामने किसी को कुछ नहीं समझता है !

यदि दोनो पर्वत अविकसित(दबे हुए) हो, तो व्यक्ति का जन्म साधारण कुल में ही होता है आरम्भिक जीवन प्राय: अभावादि में ही व्ययतीत होता है !

सूर्य पर्वत अविकसित हो, तो व्यक्ति को यश पिराप्त नहीं होता है, भलाई करने पर भी बुराई ही मिलती है ! सूर्य पर्वत पर रेखाओं द्वारा काटपीट हो रही हो, तो बदनामी कराती हैं !

स्त्री की हथेली में गुरू पर्वत पर 'क्राॅस' चिह्न हो, तो उसे अच्छी ससुराल मिलती है ! ऐसी स्त्री का प्राय: 'प्रेम विवाहा" होता है !

स्त्री की हथेली में सूर्य तथा गुरू पर्वत विकसित हों, तो वह सभ्य-कुलीन, सुसंकृत घराने से सम्बन्ध रखती है, पति की उन्नति में सहायक होती है तथा ऐसी स्त्री का ससुराल प्रतिष्ठित तथा उच्चस्तरीय होता है !

गुरू पर्वत पर 'क्राॅस' चिह्न हो, तो बदनामी देता है !
                       
गुरू पर्वत स्त्री के सुहाग अर्थात पति का भी कारक है ! स्त्री की कुंडली में यदि गुरू पर्वत अविकसित अथवा दबा हुआ हो, तो पति सुख की कमी रहती है !
अविवाहित कन्या की हथेली में गुरू दबा हुआ हो, तो विवाहा में अन्यावश्यक विलम्ब उत्पन्न होता है तथा सगाई आदि टूटने का भी योग बनता है !

स्त्री की हथेली में गुरू पर्वत बहुत अधिक उभरा हुआ हो अर्थात विकसित हो, तो ऐसी स्त्री बहुत अहंकारी तथा अन्य व्यक्ति को स्वयँ के समक्ष तुच्छ समझती है !