जानिए,आर्मी के पास था बाबा साहेब का घर कई साल खोजने के बाद मध्यप्रदेश में मिला आज बना है आलीशान स्मारक - के सी शर्मा

 भारत का संविधान लिखने वाले बाबा साहेब आंबेडकर की जन्मस्थली को खोजने का किस्सा बहुत रोचक है। सन 1956 में बाबा साहेब का महापरिनिर्वाण  हुआ और इसके बाद 1970 में उनकी जन्मस्थली को खोजने का ख्याल आया। 

 महाराष्ट्र के भंते धर्मशील को एक दिन ख्याल आया कि बाबा साहेब कहां रहते थे। उन्होंने पता करना चाहा तो किसी से जानकारी नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने खुद बाबा साहेब की जन्मस्थली को खोजना शुरू किया। आजादी के 24 साल बाद और बाबा साहेब की निधन के 15 साल बाद उन्हें जन्मस्थली मप्र के महू में मिली। आंबेडकर के पिता सेना मेें थे और उनकी जन्मस्थली सेना की जमीन पर ही थी। वहां उनके पिता का घर था। इसके बाद स्व. भंते धर्मशील ने न सिर्फ आंबेडकर जन्म स्थली की खोज की। बल्कि संघर्ष करते हुए सरकार से 22 हजार स्क्वे. फीट जमीन स्मारक के लिए हासिल की थी।

 अब आंबेडकर जन्म स्थली के पास खाली पड़ी सैन्य भूमि पर बुद्ध विहार, वाचनालय, धर्मशाला व गार्डन निर्माण के लिए 10 साल से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन जमीन नहीं मिल रही। 

 इस बात की जानकारी कम ही लोगों को है कि महाराष्ट्र के भंडारा जिले के भंते धर्मशील 1970 में आंबेडकर जन्म स्थली की खोज के लिए निकले थे। उन्होंने लंबी छानबीन के बाद महू में आर्मी में पदस्थ रहे आंबेडकर के पिता रामजी सक्पाल का मकान 1971 में खोजा। जहां बाबा साहेब  ने जन्म लिया था। आंबेडकर सोसायटी के अध्यक्ष भंत संघशील ने बताया कि उस स्थान पर आंबेडकर स्मारक बनाने के लिए उन्होंने डॉ. आंबेडकर मेमोरियल सोसायटी का गठन किया और जमीन हासिल करने के लिए आर्मी व सरकार से वर्षों तक पत्राचार किया। लंबे संघर्ष के बाद 1976 में स्मारक के लिए 2 हजार स्वे. फीट जमीन मिली।  14 अप्रैल 1991 को 100वीं जयंती पर तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने जन्म स्थली पर स्मारक की आधारशीला रखी। जहां आज देशभर से लाखों अनुयायी दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। 

 डॉ. आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय के डॉ. आरएस कुरील ने बताया कि आज जिस स्मारक पर लाखों अनुयायी आ रहे हैं, उनकी व्यवस्था व सुविधा और स्मारक के विस्तार के लिए 10 साल से जमीन हासिल करने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सफलता नहीं मिली।  10 साल तक रुका रहा काम आंबेडकर मेमोरियल सोसायटी के कार्यालय सचिव मोहनराव वाकोड़े ने बताया स्मारक का काम 1994 में शुरू हुआ, लेकिन मेहनताने को लेकर इसे बनाने वाले आर्टिकेक्ट ने कोर्ट में केस लगाया। 2007 में प्रदेश सरकार ने आर्किटेक्ट को राशि अदा की।
 इसके बाद 2008 में संगमरमर से आलीशान स्मारक ने आकार लिया।