सत्तापक्ष के विधायक ने सवाई माधोपुर वन क्षेत्र के निर्माण कार्यों की जांच को लेकर सरकार के समक्ष लगाई गुहार

    सवाई माधोपुर@ रिपोर्ट चंद्रशेखर शर्मा।  सवाई माधोपुर के रणथंभौर बाघ परियोजना में गत दिवस चार दीवारी  निर्माण कार्यों में हुए भ्रष्टाचार का खुलासा होने के बाद अब सवाई माधोपुर के सत्तापक्ष के विधायक दानिश अबरार ने राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर रणथंभौर बाघ परियोजना परिक्षेत्र में विगत 5 वर्षों के दौरान हुए सभी निर्माण कार्यों की विस्तृत गहनता के साथ जांच कराने की मांग की है। विधायक ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अवगत कराया कि उनके द्वारा गत दिवस कुंडेरा वन क्षेत्र में दीवार निर्माण की जांच की तो उसमें खामियां मिलने पर वन मंत्री द्वारा जब प्रधान वन संरक्षक से इसकी जांच कराई गई तो उसमें गंभीर अनियमितताएं सामने आई जिस पर वन विभाग के दो अधिकारियों को एपीओ कर जांच कार्रवाई शुरू की गई। ऐसे में विधायक ने बताया कि जब वन अधिकारी मात्र चार दीवारी निर्माण कार्य में  गंभीर अनियमितता बरत सकते हैं तो अन्य हुए निर्माण कार्यों की क्या स्थिति रही होगी। ऐसे में अब विधायक दानिश ने आशंका जता मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में अवगत कराया है कि विगत 5 वर्षों के दौरान रणथंभौर बाघ परियोजना क्षेत्र में करीबन ₹80 करोड के निर्माण कार्य वन अधिकारियों द्वारा कराए गए हैं तो इन कार्यों  में  भी गंभीर अनियमितताएं बरती गई होगी इसमें कोई संदेह नहीं है। इन्हीं आशंकाओं के मद्देनजर विधायक ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है, कि वे ₹80 करोड़  के हुए इन सभी निर्माण कार्यों की विशेष टीम से जांच करवाएं ताकि गंभीर अनियमितताएं व  भ्रष्टाचार खुलकर सामने आ सके। भ्रष्टाचार के खिलाफ स्थानीय विधायक द्वारा चलाई गई मुहिम काबिले गौर है, लेकिन सवाई माधोपुर जिले में वन विभाग ही ऐसा विभाग नहीं है जहां पर भ्रष्टाचार की दीमक विभाग की जड़ों को खोखला करने में लगी हुई है।बहरहाल यह स्थिति कमोबेश सभी विभागों में है।इस और भी माननीय स्थानीय विधायक को ध्यान केंद्रित करना चाहिए और भ्रष्टाचार के तंत्र से त्रस्त आम जन को किसी ना किसी प्रकार से राहत प्रदान की जानी चाहिए। क्योंकि जिले भर में भ्रष्टाचार के चलते आम लोगों का जीना मुहाल बना हुआ है। गरीब मजदूर से लेकर किसान कि नहीं व्यापार तक भ्रष्टाचार के सिस्टम से तंग आ चुके हैं। क्या अन्य दूसरे विभागों में भ्रष्टाचार नहीं पनप रहा है। पनप तो रहा है, लेकिन इस बात से किसी को कोई वास्ता नहीं है।  यह बात कहना गलत नहीं है, कि हर विभाग भ्रष्टाचार की जद में है। लेकिन विधायक हो या सांसद इन सभी का इन बातों व आमजन की समस्याओं  से कोई सीधा सरोकार नहीं है। हां अगर बात पद, प्रतिष्ठा और स्वार्थ की आपसी लड़ाई की हो तो ये लोग पूरी शिद्दत से कार्य करते भ्रष्टाचार के मामलों को अवश्य ही प्रभावपूर्ण तरीके से उजागर करते हैं, जब तक की किसी अधिकारी या कर्मचारी की नौकरी खतरे में ना पड़ जाए। क्योंकि भ्रष्ट तंत्र के मगरमच्छ तो इस कार्रवाई से बच जाते हैं और मछली स्तर के अधिकारी व कर्मचारी भ्रष्टाचार की जांच की भेंट चढ़ कर अपनी नौकरी गंवा बैठते हैं। जबकि सर्वविदित है, कि भ्रष्टाचार को पनपाने का श्रेय चुने हुए जनप्रतिनिधियों को ही जाता है।और कार्रवाई के चलते गाज गिरती है अधिकारी व कर्मचारियों पर। वन विभाग की तरह ही  जरूर किसी ना किसी विभाग के अंदर व्याप्त भ्रष्टाचार की कलई खुलती रहे तो सवाई माधोपुर जिले के दिन फिर सकते हैं। वरना यहां भ्रष्टाचार के खिलाफ मुंह खोलना या लड़ाई लड़ना आम आदमी के बूते के बाहर है। वन विभाग तो केवल बानगी है, जिले में अधिकांश विभागों में भ्रष्टाचार इस कदर हावी है, कि आम आदमी अपने हक का पैसा या सरकारी सुविधा का लाभ लेना चाहे तो उसे फाइल दर फाइल, ऑफिस दर ऑफिस चक्कर काटने के साथ ही सुविधा शुल्क(रिश्वत) चुकाना ही होता है, तब जाकर कोई काम बन पाता है। हर किसी को मालूम है कि, राजस्थान उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद बजरी खनन व परिवहन का काम जिले में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा गढ़ बना हुआ है। जिसे ढहाने में अब तक खनिज विभाग से लेकर पुलिस व प्रशासन तक नाकाम सिद्ध हुए हैं। बजरी खनन को लेकर भ्रष्टाचार इस कदर जिले में हावी है कि, अब तो बजरी माफिया सरेआम मौत के सौदागर बनकर घूम रहे हैं। जिनको न पुलिस का डर है ना प्रशासन का और नाही खनिज विभाग के किसी अधिकारी का। दूसरी ओर मनरेगा के तहत जिलेभर में मजदूरों से पैसा लेकर जेसीबी मशीनों के द्वारा मनरेगा के कार्यों को पूर्ण किया जा रहा है। बहुत से ऐसे ताल- तलैया व सड़क मार्गों का निर्माण अब तक किया भी जा चुका है, मजदूरों से झूठी मस्टरोल भरवाई जा रही है, जिसमें मेट से लेकर सरपंच, सचिव, रोजगार सहायक यहां तक कि विकास अधिकारी तक एक सिस्टम के तहत भ्रष्टाचार की कड़ी से कड़ी को मिलाकर बड़ी साफगोई से कार्य को अंजाम दे रहे हैं। झूठी मस्टरोल भरकर लोगों को घर बैठे आधा भुगतान किया जा रहा है, और आधा भुगतान कर्मचारी से लेकर अधिकारियों के बीच बंट रहा है।बिजली विभाग का तो हाल तो और भी बेहाल है, गांव और कस्बों में  अपर्याप्त बिजली आपूर्ति के बावजूद भी भारी भरकम बिजली के बिल लोगों को पकड़ाये जा रहे हैं,और इससे बड़ी बात तो यह है कि बिना रीडिंग नोट की या देखें ठेकेदार के कर्मचारियों द्वारा बिजली विभाग के कार्यालय में बैठकर ही बिजली के बिल अंदाजे से जारी किए जा रहे हैं। यही नहीं गलत रीडिंग कर निर्धारण करना, किसी भी प्रकार की सुविधा ना देने के बावजूद भी सुविधा शुल्क के नाम पर संपूर्ण राशि वसूलना, बिल ना जमा कराने की एवज में जबरन गांव से डीपी खोल कर ले जाना, ठेकेदारों के अपने ही आदमियों से लोगों को बहला-फुसलाकर चोरी करने के तरीके बताना और बाद में अधिकारीयों के द्वारा ही कर्मचारियों की मिलीभगत से बिजली करते पाए जाने पर मौके पर जाकर पकड़ना, फिर  चोरी के मामले बनाना या फिर दंड स्वरूप भारी-भरकम राशि वसूल कर आम आदमी की कमर तोड़ना यह सब भ्रष्टाचार के नमूने नहीं तो फिर क्या है। इन सब बातों पर भी  क्या हमारे विधायक या सांसद साहब  अन्य जनप्रतिनिधि गौर फरमाएंगे, क्या इन दूसरे विभागों में भी व्याप्त भ्रष्टाचार के मामलों को रोड़ पर लाने की हिमाकत करेंगे । अगर करेंगे तो जनता को इसका सीधा- सीधा लाभ मिलेगा और जनता आपके गुण- एहसानों की आभारी रहेगी। और नहीं तो 'अंधी पीसे, कुत्ता खाए' वाली कहावत तो आपने सुनी होगी........ जो हो रहा है, उसे होने दे हमको इससे क्या?...