सत्य क्या है - वरिष्ठ पत्रकार के सी शर्मा का विशेष लेख

१-ब्रह्मसूत्र में ब्रह्म को सत्य, ज्ञान, अनन्त और ब्रह्म कहा गया है।
२--सत्य की प्रत्यक्ष मूर्ति सूर्यदेव हैं।वे सत्य का विस्तार करते हैं - -- सत्यं ततान सूर्य:।
३-- यह पृथ्वी सत्य के आधार पर ठहरी हुई है--स्त्येनोत्तमिता भूमि:।
४-- धर्म के १०८ अवयवों में किसी एक के अनुकरण से सिद्धता आती है वह " सत्य " है।
५-- सत्य ज्ञानेन्द्रिय का प्रत्यक्ष विषय है।यह केवल वाणी (वाक् तत्त्व) का विषय मात्र नहीं है।
६-- सत्य भी कभी विकर्म होने से पाप का कारक होता है।जीवन रक्षक असत्य धर्म होता है तथा वह सत्य से गुरुतर होता है।
७--सत्य मौन से अधिक पुण्यकारी होता है।
८--सत्य जब व्यवहार का आधार बनता है तो मुकदमे नहीं होते हैं।इसे कहते हैं--सत्येकताना पुरुषा: ।
९--सत्य के अन्वेषण से ही न्याय  को आधार मिलता है।सत्याश्रित निर्णय ही न्याय होता है।
१०-- सत्य को स्थापित करने हेतु दण्ड धर्म का विधान अनिवार्य होता है।
११--जिस देश में जितना सत्य फैलेगा उतना ही FIR कम होगा। अतः कचहरी वाले उपभोक्ता के लिए सत्य कष्टकारी होता है।
यद्यपि सत्य की प्रतिष्ठा के लिए ही न्यायालय बने होते हैं।
यदि न्यायालयों से सत्य पराजित होकर निकलने लगे तो वे न्यायस्थल विश्रामशाला मात्र हो जायेंगे।
        सत्य को हम कहाँ तक उतारना चाहते हैं ?
 यह विषय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उच्च पद पर बैठे व्यक्ति के लिये सत्य का अपलाप, गोपनीयता के लिए सत्य का पिधान( ढक्कन से बन्द करना)आदि विषय जटिल होते हैं। साथ ही अप्रिय सत्य के उद्गार को प्रिय सत्य में परोसने की शैली ( ट्रेनिंग) का प्रतिपादन अति अनिवार्य होता है।
 परुष सत्य को दबा कर मृदुल पर दृढ़ सत्य की स्थापना ध्येय होना चाहिए।हम सत्य को धरती के वातावरण में कैसे उतारें इस पर स्पष्ट रुचिकर प्रस्तुति होनी चाहिये।