10 जुलाईसंकल्प के धनी जयगोपाल जी का जन्म.दिवस पर विशेष-के सी शर्मा


राष्ट्रीय स्वयंगसेवक संघ की परम्परा में अनेक कार्यकर्ता प्रचारक जीवन स्वीकार करते हैं; पर ऐसे लोग कम ही होते हैं, जो बड़ी से बड़ी व्यक्तिगत या पारिवारिक बाधा आने पर भी अपने संकल्प पर दृढ़ रहते हैं। श्री जयगोपाल जी ऐसे ही संकल्प के व्रती थे। 

उनका जन्म अविभाजित भारत के पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्त स्थित डेरा इस्माइल खाँ नगर के एक प्रतिष्ठित एवं सम्पन्न परिवार में 10 जुलाई, 1923 को हुआ था। अब यह क्षेत्र पाकिस्तान में है। वे चार भाइयों तथा तीन बहनों में सबसे बड़े थे। विभाजन से पूर्व छात्र जीवन में ही वे संघ के सम्पर्क में आ गये थे।

जयगोपाल जी ने लाहौर से प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने हीवेट पॉलीटेक्निक कॉलिज, लखनऊ से प्रथम श्रेणी में स्वर्ण पदक के साथ अभियन्ता की परीक्षा उत्तीर्ण की। यहीं उनकी मित्रता भाऊराव देवरस से हुई। उसके बाद तो दोनों 'दो देह एक प्राण' हो गये।

घर में सबसे बड़े होने के नाते माता-पिता को आशा थी कि अब वे नौकरी करेंगे; पर जयगोपाल जी तो संघ के माध्यम से समाज सेवा का व्रत ले चुके थे। अतः शिक्षा पूर्ण कर 1942 में वे संघ के प्रचारक बन गये। भारत विभाजन के समय उस ओर के हिन्दुओं ने बहुत शारीरिक, मानसिक और आर्थिक संकट झेले। जयगोपाल जी के परिवारजन भी खाली हाथ बरेली आ गये। ऐसे में एक बार फिर उन पर घर लौटकर कुछ काम करने का दबाव पड़ा; पर उन्होंने अपने संकल्प को लेशमात्र भी हल्का नहीं होने दिया और पूर्ववत संघ के प्रचारक के रूप में काम में लगे रहे।

संघ कार्य में नगर, जिला, विभाग प्रचारक के नाते उन्होंने उत्तर प्रदेश के कई स्थानों विशेषकर शाहजहाँपुर, बरेली, लखनऊ तथा प्रयाग आदि में संघ कार्य को प्रभावी बनाया। उन्होंने तीन वर्ष तक काठमाण्डू में भी संघ-कार्य किया और नेपाल विश्वविद्यालय से उपाधि भी प्राप्त की। 

वे 1973 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रान्त प्रचारक बने। 1975 में देश में आपातकाल लागू होने पर उन्होंनेे भूमिगत रहकर अत्यन्त सक्रिय भूमिका निभाई और अन्त तक पकड़े नहीं गये। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रान्त प्रचारक श्री माधवराव देवड़े की गिरफ्तारी के बाद वे पूरे उत्तर प्रदेश में भ्रमण कर स्वयंसेवकों का उत्साहवर्धन करते रहे।

जयगोपाल जी ने 1989 में क्षेत्र प्रचारक के नाते जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा दिल्ली का कार्य सँभाला। उनका केन्द्र चण्डीगढ़ बनाया गया। उस समय पंजाब में आतंकवाद चरम पर था और संघ की कई शाखाओं पर आतंकवादी हमले भी हुए थे। इन कठिन परिस्थितियों में भी वे अडिग रहकर कार्य करते रहे। स्वास्थ्य खराबी के बाद भी वे लेह-लद्दाख जैसे क्षेत्रों में गये और वहाँ संघ कार्य का बीजारोपण किया।

1994 में उन्हें विद्या भारती (उ.प्र.) का संरक्षक बनाकर फिर लखनऊ भेजा गया। यहाँ रह कर भी वे यथासम्भव प्रवास कर विद्या भारती के काम को गति देते रहे। वृद्धावस्था तथा अन्य अनेक रोगों से ग्रस्त होने के कारण दो अगस्त, 2005 को दिल्ली में अपने भाई के घर पर उनका देहान्त हुआ।

जयगोपाल जी ने जो तकनीकी शिक्षा और डिग्री पाई थी, उसका उन्होंने पैसा कमाने में तो कोई उपयोग नहीं किया; पर लखनऊ में संघ परिवार की अनेक संस्थाओं के भवनों के नक्शे उन्होंने ही बनाये। इनमें विद्या भारती का मुख्यालय निराला नगर तथा संघ कार्यालय केशव भवन प्रमुख हैं।