शनि की महिमा अपरंपार-के सी शर्मा


मान्यता है कि शनि देव किसी भी तरह के अन्याय या गलत बात को बर्दाश्त नहीं करते हैं और ऐसा करने वाले को उनके गुस्से का शिकार होना पड़ता है। उनके जन्म को लेकर भी अलग-अलग मान्यताएं हैं। हालांकि अपने पिता सूर्य के साथ उनके संबंध कभी अच्छे नहीं रहे।

कथा के अनुसार शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यज्ञ से हुआ। छाया शिव की भक्तिन थी। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की इतनी कठोर तपस्या कि उसे खाने-पीने की सुध तक उन्हें न रही। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रहे शनि पर भी पड़ा और उनका रंग काला हो गया। 

जब शनिदेव का जन्म हुआ तो रंग को देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्य देव को देखा तो सूर्य देव बिल्कुल काले हो गये, उनके घोड़ों की चाल रुक गई। परेशान सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी और भोलेनाथ ने उनको उनकी गलती का अहसास करवाया।

सूर्यदेव ने अपनी गलती के लिये क्षमा याचना की जिसके बाद उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला लेकिन पिता पुत्र का संबंध जो एक बार खराब हुआ, वह फिर नहीं सुधर पाया। आज भी शनिदेव को अपने पिता सूर्य का विद्रोही माना जाता है।