मनुष्य का किया हुआ कर्म दिखता है तभी गोस्वामी तुलसीदास जी ने कर्म को प्रधान बताया है :दीप शंकर मिश्र दीप

राम चरित्र मानस जैसी पवित्र पुस्तक को लिखते समय गोस्वामी तुलसीदास जी ने कर्म को प्रधान बताया है । और लिखा है *कर्म प्रधान विश्व रचि राखा जो जस करई तो तस फल चाखा* परन्तु उन्होंने सबसे पहले बालकाण्ड में ये लिखा है कि होइहय वही जो राम रचि राखा को कर तर्क बढावय शाखा । मतलब बालकांड में उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वही होगा वही जो राम ने पहले से सुनिश्चित किया है । बाद में उन्होंने कर्म को इस लिये प्रधान बताया है कि राम ने जो आपके लिये या आपके भाग्य में सुनिश्चित किया है वह दिखता तो है नही । परन्तु आप जो कर रहे है मतलब जो आप पहले से सुनिश्चित कर्म कर रहे है । वह कर्म दिखता है,आप दान  पुण्य किसी की मदद या अपनी पढ़ाई लिखाई किसानी या व्यापार कथा भागवत मतलब आपके जन्म  के बाद जो हो रहा जो भी आप कर रहे है कर्म कह लीजिये जो भी आप कर्म कर रहे है । वह समाज को आपके घर परिवार इष्ट मित्र सबको दिखता है कि वो अच्छी कथा करते है, वो अच्छी किसानी करते है , कुमार विश्वास अच्छी कविता करते है । वो बेईमान है, भृष्ट है या ईमानदार है मतलब उसका कर्म सब दिखता है। *मनुष्य द्वारा जो भी कर्म  किया जा रहा है वह देखा जा सकता है । चूंकि कर्म देखा जा सकता है इस लिये केवल इस लिये मात्र इस लिये कर्म प्रधान है*। मनुष्य जो कर्म कर रहा है वो चाहे अच्छा हो या बुरा है उसका कर्म प्रधान है कर्म सब अच्छे ही नही होते बुरे भी होते है । परन्त कर्म प्रधान इस लिये है की वह दिखता है । चूंकि आपके द्वारा किया गया कर्म दिखता है,और राम ने या ईश्वर ने जो मनुष्य के जन्म से ही उसके लिये रचा है,उसके भाग्य मे लिखा है,वह लिखा हुआ तो कोई देख नही सकता कोई पढ नही सकता राम द्वारा ईश्वर द्वारा पहले से रचा हुआ कर्म है आपकीं भाग्य में लिखा हुआ कर्म आज कोई पढ़ नही सकता जान नही सकता। वैसे आज की दुनियां में है तो बहुत बड़े बहुत बड़े-बड़े-बड़े लोग परन्तु आज कोई गुरु विशिष्ट,गुरु बाल्मीकि या गुरु अगस्त तो है नही । खैर कर्म प्रधान है यह सब जानते है कर्म दिखता है यह भी सब जानते है परन्तु सब अच्छा कर्म क्यो नही करते खराब क्यों करते है । दोस्तो खराब कर्म कोई नही करना चाहता हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई कोई नही । फिर भी मनुष्य द्वारा अच्छे कर्म के साथ खराब कर्म भी होते है। इसी लिये गोस्वामी जी ने सबसे पहले यह स्पष्ट कर दिया है कि-   *होइहय वहय जो राम रचि राखा ।* कर्म मात्र इस लिये प्रधान है कि वह देखा जा सकता है । और कर्म आप वही करँगे जो पहले सुनिश्चित है । *मनुष्य क्या राम कृष्ण ने भी मनुष्य रूप में उतना ही किया जो पहले से सुनिश्चित था ।* राधेराधे
*दीप शंकर मिश्र"दीप"*