किसान आंदोलन में हिस्सा लेने सैकड़ों सीटू कार्यकर्ताओं का जत्था गाजीपुर बॉर्डर पहुंचा- गंगेश्वर दत्त शर्मा tap news

 किसान विरोधी तीनों काले कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर देश भर में चल रहे किसान आन्दोलन के 51 वें दिन शुक्रवार 15 जनवरी  2021 को सीटू के राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड तपन सेन एवं सीटू उत्तराखंड के नेता राजेंद्र नेगी, महेंद्र जगमोला, मेघराज, इंदु नौटियाल, शिवादाए, रजनी गुलेरिया, एस एफ आई छात्र नेता हिमांशु चौहान, निमित्त मलिठा, सीटू नोएडा गौतमबुधनगर के नेता गंगेश्वर दत्त शर्मा, मदन प्रसाद, भरत डेंजर, भीखू प़साद, सीटू गाजियाबाद के नेता ईश्वर त्यागी, जी एस तिवारी आदि के नेतृत्व में सैकड़ों सीटू कार्यकर्ताओं का जत्था किसान आंदोलन में हिस्सा लेने दिल्ली यूपी गाजीपुर बॉर्डर पहुंचा जिसका किसानों ने गर्मजोशी से स्वागत किया।
आंदोलनरत किसानों को संबोधित करते हुए सीटू के राष्ट्रीय महासचिव तपन सेन ने कहा कि ये काले कानून किसानों के हित में कतई भी नहीं है। इन तीनों कानूनों को उदारीकरण की नीतियों को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने किसानों पर हमला किया है। सरकार को किसानों की और आम जनता की समस्याओं से कुछ लेना-देना नहीं है, वह सब कुछ देशी-विदेशी पूंजीपतियों और धन्ना सेठों की मदद करना चाहती है उनके मुनाफे को बढ़ाना चाहती है, इसी मंशा से यह किसान विरोधी कानून लाए गए हैं। यह तीनों कानून किसानों से उनकी आजादी छीन लेना चाहते हैं, उनको पूंजीपतियों का गुलाम बना देना चाहते हैं। ये कानून पूंजीपतियों के रास्ते में आने वाली सारी अड़चनों को खत्म कर देना चाहते हैं और पूरे देश में उन्हें मुनाफा कमाने और जनता को लूटने का मौका देते हैं, दूसरे अभी तक भंडारण की सीमा को खत्म करके पूंजीपतियों को मौका देते हैं कि वह चाहे जितने अनाज की जमाखोरी कर सकते हैं ताकि समय आने पर भरपूर मुनाफा कमा सकें और तीसरे यह कानून किसान से उसकी आजादी छीन लेना चाहते हैं कि वह अपनी पसंद का पसंद की फसल पैदा न कर सके। अब उनको पूंजीपतियों के कहने पर फसल उगानी होगी और इस तरह से  किसानों को पूरी तरह से देशी विदेशी पूंजी पतियों के रहमों करम पर छोड़ दिया गया है। चौथे सरकार किसानों को सरकारी अमले एसडीएम और डीएम के हवाले कर देना चाहते हैं और उनके लिए सिविल कोर्ट के सारे दरवाजे बंद कर देना चाहते हैं इन कानून के लागू होने से किसान सिविल कोर्ट में नहीं जा सकते बल्कि उन्हें सरकारी अधिकारियों के रहमों करम पर जीना होगा।इस तरह हम देखते हैं कि ये तीनों कानून पूर्ण रूप से किसानों के, जनता के, मेहनतकशों के खिलाफ हैं उन्होंने कहा कि जब तक सरकार हमारी मांग को नहीं मानेगी हमारा आंदोलन जारी रहेगा। साथ ही उन्होंने कहां की किसान आंदोलन से मजदूर आंदोलन को भी एनर्जी मिली है और मजदूर भी नए लेवर कोड की वापसी के लिए आंदोलन को तेज करने में लगे हैं साथ ही कृषि कानूनों की वापसी के  लिए चल रहे किसान आंदोलन में रोज सीटू कार्यकर्ताओं के जत्थे हिस्सा ले रहे है