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जटायु राम संवाद -

जब रावण माता सीता का हरण कर के ले गया और श्री राम जी उन्हें ढूंढते हुए जटायु के पास पहुचे जो रावण से युद्ध करते समय घायल हो गया था और अपनी अंतिम साँसे ले रहा था l प्रभु उसके समीप पहुचे तो देखा जटायु प्रभु चरण का स्मरण कर रहा था तो रघुवीर ने सबसे पहले..

"कर सरोज सिर परसेउ कृपासिंधु रघुबीर
निरखि राम छबि धाम मुख बिगत भई सब पीर"

कृपा के सागर श्री राम ने अपने कर-कमल से जटायु के सर पर हाथ फेरा और शोभाधाम प्रभु श्री रामजी के दर्शन मात्र से जटायु की सारी पीड़ा जाती रही l
तब जटायू ने प्रभु को सारी घटना बताई कि रावण माँ सीता को ले कर दक्षिण दिशा की और गया है और उसी ने मेरी यह गति की है...और जटायू कहते है.... 

"दरस लाग प्रभु राखेउ प्राणा,
चलन चहत अब कृपानिधाना"

मेने आपके दर्शन के लिए ही अपने प्राण रोक कर रखे थे अब ये चलना चाहते है....
तो श्री राम कहते है हे तात अपने शरीर को बनाये रखे l आप कहे तो  मैं आपको स्वस्थ्य कर देता हूँ  l तब जटायू ने हंसते हुए बड़ी मार्मिक बात कही...
"जाकर नाम मरत मुख आवा,
अधमउ मुकुत होइश्रुति गावा"

हेनाथ...जिनका नाम अंतिम समय मुख पर आने से अधम से अधम पापी दुष्ठ भी मुक्ति को प्राप्त हो जाते है! ऐसा वेद गाते है l
गीता में भी यह बात आई है की अन्त समय में जो जिसका चिंतन करते हुए मरता ह वो उसी को प्राप्त होता है!
तो जटायू ने भाव विभोर हो कर कहा  हे नाथ..मेरे सामने तो आप स्वयं आ गए प्रभु अब भला में किस कमी की पूर्ति, इच्छा के लिए इस नश्वर शरीर को रखूँ .!
अब श्री रघुनाथ जी कहते है....
"जल भरी नयन कहहि रघुराई,तात कर्म निज ते गति पाई"
 आँखों में आंसू लिए प्रभु श्री राम कहते है हे तात!आपने अपने श्रेष्ठ कर्मो से ये दुर्लभ गति पाई है l
 प्रभु श्री राम कहते है उसका मूल सार है ...

"परहित बस जिन्ह के मन माहि,तिन्ह कहु जग दुर्लभ कछु नाही"

जिनके मन में दूसरो के हित, भले की कामना बसती है उनके लिए इस जगत में कोई भी गति दुर्लभ नही है l हे तात! मैं आपको क्या दूँ, आप तो पूर्णकाम हो,सब कुछ पा चुके आप मेरे परम् धाम  को जाइए...!

सार~ परहित की कामना रखने वाला व्यक्ति किसी भी  उच्च से उच्च गति को प्राप्त हो सकता हैं जो गति योगीजनों,ज्ञानियो को भी दुर्लभ है, भगवन नाम का चिंतन करते रहे पता नही कौन सा समय हमारा अंतिम हो...? और ये तभी होगा जब इसका अभ्यास नियमित होगा, मनुष्य उत्तम चीज से प्रेम करता है,परमात्मा से उत्तम कुछ नही ये जानकार उनका चिंतन करने से प्रेम में बढ़ोतरी होगी क्योकि जिस से हम प्रेम करते है उसका चिंतन अपने आप होने लगता है l हे नाथ! आपको भूलूँ नहीं l
जय सियाराम, जय हनुमान l
जगदीश गोड़ 9888362014