फलों की मक्खियों में क्रोनिक लार्वा क्राउडिंग बड़े और तेजी से अंडे सेने की दिशा में क्रमिक विकास को प्रेरित करती है

रामजी पांडे

नई दिल्ली वैज्ञानिकों ने पाया है कि उन कीटों की आबादी जो क्रोनिक लार्वा क्राउडिंग का अनुभव करती है, बड़े और तेजी से अंडे सेने की दिशा में क्रमिक विकास को प्रेरित करती है, भले ही अन्य अनुकूलनों में उनमें अंतर हो।

वर्ष 2003 तक ऐसा माना जाता था कि लार्वा क्राउडिंग के लिए अनुकूलित फलों की मक्खियों में अधिक प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता विकसित होती थी जो अनिवार्य रूप से उच्चतर लार्वा फीडिंग दर तथा अमोनिया एवं यूरिया जैसे मेटोबोलिक अपशिष्ट उत्पादों के विषाक्त स्तर के लिए अधिक वयस्क-पूर्व सहिष्णुता के संयोजन के विकास के माध्यम से होती थी।

इस समझ के एक आदर्श बदलाव में, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्तशासी संस्थान जवाहर लाल नेहरू उन्नत अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर) के शोधकर्ताओं द्वारा पिछले 15 वर्षों में किए गए पहले के अध्ययनों में पाया कि जिस प्रकार के लक्षण विकसित हुए, वे न केवल समग्र लार्वा घनत्व पर निर्भर करते थे, बल्कि भोजन की मात्रा तथा अंडों की संख्या जिस पर क्रोनिक क्राउडिंग का अनुभव किया गया था, उसके विशिष्ट संयोजन पर भी निर्भर करते थे।

अब, जर्नल ऑफ जेनेटिक्स में प्रकाशित हाल के एक अध्ययन में शोधकर्ताओं के इस समूह ने प्रदर्शित किया है कि एक विशिष्ट अनुकूलन- बड़े और तेज गति से अंडे सेने- क्राउडिंग का अनुभव करने वाली फलों की मक्खियों की सभी आबादियों के लिए सामान्य हैं, भले ही उनका भोजन की कितनी ही मात्रा तथा अंडों की संख्या का अनुभव या उनका संपर्क हो।

यह टीम जो फलों की मक्खियों के क्रमिक विकास तथा प्रतिस्पर्धी क्षमता की पारिस्थितिकी को समझने में विश्व भर में अग्रणी है, ने प्रदर्शित किया कि फलों की मक्खियों की आबादी के तीन अलग-अलग समूहों (ड्रोसोफिला मेलानोगैस्टर), जिन्होंने मामूली रूप से अलग पारिस्थितिकी परिप्रेक्ष्यों में क्रोनिक लार्वा क्राउडिंग का अनुभव किया तथा इसके परिणामस्वरूप क्राउडिंग के पृथक अनुकूलनों से विकसित हुए थे, उन्होंने भी एक सामान्य क्रमिक विकास अनुकूलन को साझा किया। उन सभी ने उनके सामान्य पैतृक नियंत्रण आबादियों की तुलना में बडे़ और तेजी से सेने वाले अंडों का उत्पादन किया।

इस अध्ययन के लिए, वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में चयन के माध्यम से शोधकर्ताओं द्वारा विकसित अनूठी आबादियों का उपयोग किया-वैसी आबादियों का जो विश्व में और कहीं उपलब्ध नहीं हैं।

यह अनुमान लगाते हुए कि दुर्लभ लार्वा भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा में लाभ प्राप्त करने का एक तरीका दूसरों की तुलना में अंडों को पहले सेना आरंभ करना तथा उन्हें भोजन देना हो सकता है, एस वेंकिटाचलम, एस. दास, ए. दीप तथा ए. जोशी ने जांच की कि अन्य अनुकूलनों के अतिरिक्त, जिसका उन्होंने अवलोकन किया था, क्या ऐसा ‘हेड-स्टार्ट’ तंत्र उनके किसी क्राउडिंग अनुकूलित आबादी में विकसित हुआ था? उन्होंने पाया कि उनमें से सभी बड़े तथा तेजी से सेने वाले अंडे विकसित कर चुके थे, भले ही वे क्राउडिंग के अन्य अनुकूलनों में अलग थे। इससे संकेत मिलता है कि तेजी से सेने तथा बड़े आकार में होने के कारण लार्वा द्वारा प्राप्त आरंभिक लाभ या हेड-स्टार्ट अन्य कई लक्षणों के विपरीत क्राउडेड स्थितियों के तहत अनुकूली है।

यह अध्ययन उन्हीं आबादियों पर किए गए अध्ययनों की श्रृंखला का एक हिस्सा है जिनके कारण घनत्व-निर्भर चयन तथा फलों की मक्खियों में क्राउडिंग के अनुकूलन की समझ में आदर्श परिवर्तन परिवर्तन आया है।

प्रकाशन के लिए लिंक : https://www.ias.ac.in/article/fulltext/jgen/101/0013

एक क्राउडेड शीशी यानी वायल में फलों की मक्खियों के लार्वा की फीडिंग