शक्ति साधना में इन 10 महाविद्याओं से होती है उपासना




दस महाविद्या की साधना उपासना हम भैरवि ऊर्वषि देवि शमशान वासिनी जी आप सभी को बताते है
शक्ति के अपरम्पार रुप है। दस महाविद्या असल मे एक ही आदि शक्ति के अवतार है। वो क्रोध मे काली, सम्हारक क्रोध मे तारा और शिघ्र कोपि मे धूमवती का रुप धारण कर लेती है। दयाभाव मे प्रेम और पोषण मे वो भुवनेश्वरी, मतंगी और महालक्ष्मी का रुप धारण कर लेती है। शक्ति साधना में कुल दस महाविद्याओं की उपासना होती है। यह सब महाविद्या ज्ञान और शक्ति प्राप्त करने की कामना रखनेवाले उपासक करते है। ध्यान रहे, सिर्फ मंत्रजाप से कुछ नही होता साधक के कर्म भी शुद्ध होने जरुरी है.

दस महाविद्या को इन नामो से सम्बोधित किया गया है...
1.काली माता,2. तारा माता,3. त्रिपुरसुंदरी माता,4. भुवनेश्वरी माता,5. त्रिपुर भैरवी माता 6. धूमावती माता,7. छिन्नमस्ता माता,8. बगलामुखी माता,9. मातंगी माता,10. कमला माता. इनके दो कुल होते है, एक है, काली कुल और दूसरा श्री कुल। चार साधानाए काली कुल की है और छः साधानाए श्री कुल की होती है।

महाविद्या साधना किसी भी धर्म का किसी भी जाति का साधक या साधिका कर सकते है. जाति, वर्ग, लिंग इस प्रकार के बन्धन दस महाविद्या मे नही होते। सभी महाविद्या मे काल भैरव की उपासना भी की जाती है। क्योकि महाविद्याओ कि क्रियाए जटिल होती है. इसलिए साधना शुरु करने से पहले पंच शुद्धिया करे.

1.स्थान शुद्धि: जहा पर साधना के लिये बैठते है उस जगह को शुद्ध कर लिजिये.पहले जमाने मे लोग गौमाता के गोबर से एवम गौमूत्र से सम्पूर्ण जगह को शुद्ध करते थे. आज मॉडर्न लाईफ स्टाईल मे कम से कम धुला हुआ आसन ले लिजिये. मंगलमय वातावरण के लिये अगरबत्ती जलाइये

2.देह शुद्धि: सात्विक भोजन का सेवन करे, ब्रम्हचर्य का पालन करे. साधना मे बैठने से पहले नहा कर, शौचादि शारिरीक क्रिया से निवृत्त हो जाये, बद्ध कोष्ठता गेसेस कि समस्या साधना मे भयंकर बाधा पैदा कर आपके लिये समस्या पैदा कर सकती है. शरिर जब व्याधी ग्रस्त हो, मतलब जुकाम बुखार इत्यादि तब साधना ना करे.प्राणायाम, योग इत्यादि के प्रयोग से देह शुद्धि मे मदद मिलती है.

3.द्रव्य शुद्धि: द्रव्य शुद्धि के दो अर्थ है. पाप से कमाया गया धन इसमे इस्तेमाल ना करे. दूसरा, साधना के लिये जिन साधनोंका इस्तेमाल करे उनका स्वच्छ एवम पर्याप्त होना जरूरी है. स्वच्छ जल लेकर मंत्रजाप से गुरू इसे शुद्ध करके देंगे. (एवम पर्याप्त मतलब, टूटा प्याला, फटी चादर, टूटा फ्रेम, फटे नोट, टूटा फर्निचर इनका प्रयोग ना करे.)

4.देव शुद्धि: सिर्फ साधना के ही नही, घर की दूसरी मूर्तिया और तस्वीरोंको भी साफ कर ले

5.मंत्र शुद्धि: योग्य गुरु के सनिध्य मे दीक्षा ग्रहण कीजिये। दीक्षा के दौरान शक्तिपात योग के द्वारा गुरू आपके अंदर शक्ति स्थान निर्माण करता है.

साधना की मुद्राएँ न्यास, यंत्र- माला पूजन, प्राण प्रतिष्ठा, पंचोपचार आदि की जानकारी गुरु से ही प्राप्त होगी.

साधक को अपने गुरु के चरण कमल के पास बैठकर साधना करनी चाहिये

पंचोपचार, षोडषोपचार अथवा चौसठ उपचारों के द्वारा महाविद्या यंत्र में स्थित देवताओं का पूजन करे. उसमें स्थापित देवताओं की अनुमति प्राप्त कर पूजन कीजिये। तर्पण, हवन कर वेदी को ही देवता मानकर अग्नि रूप में पूजन करे. द्रव्यों को भेंट कर उसे संपूर्ण संतुष्ट करे।

फिर देवता की आरती कर पुष्प अर्पण करे। गुरु द्वारा कवच-सहस्रनामं स्त्रोत्र का पाठ करके स्वयं को शक्ति के चरणों में समर्पित करे। देवता को अपने मन में याद कर के सामग्रीयो को नदि, तालाब, समुंदर मे समर्पित करने के लिये कहा गया है. लेकिन धरती मा और पर्यावरण का ध्यान रखते हुये सामग्री के उपर जल का छिड्काव करके प्रतिमात्मक विसर्जन की भावना रखकर देवताओंकी माफी मांगते हुये कहीं भी निकास करे. प्रतिकात्मक विसर्जन कि आज्ञा हमारे गूरू देते है.
जय मॉ तारा शुभआशीश महाभैरवी ऊर्वषि देवि शमशान वासिनी जी कुलगुरू कामाख्या शक्तिपीठ आसाम