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Friday, 27 December 2019

08:46

क्या आप जानते हैं कि शिव और शंकर दोनों में क्या अंतर है



*जानिए "शिव" और "शंकर" में क्या है अंतर-के सी शर्मा*


"शिव" और "शंकर" में अन्तर क्या है,बहुत से लोग शिव और शंकर को एक ही मानते है, परन्तु वास्तव में इन दोनों में भिन्नता है |
आप देखते है कि दोनों की प्रतिमाएं भी अलग-अलग आकार वाली होती है |
शिव की प्रतिमा अण्डाकार अथवा अंगुष्ठाकार होती है जबकि महादेव शंकर की प्रतिमा शारारिक आकार वाली होती है | यहाँ उन दोनों का अलग-अलग परिचय क्या है, स्पष्ट किया जा रह है :-

*महादेव शंकर*!

यह ब्रह्मा और विष्णु की तरह सूक्ष्म शरीरधारी है |
इन्हें ‘महादेव’ कहा जाता है परन्तु इन्हें ‘परमात्मा’ नहीं कहा जा सकता |
यह ब्रह्मा देवता तथा विष्णु देवता की रथ सूक्ष्म लोक में, शंकरपुरी में वास करते है |
 ब्रह्मा देवता तथा विष्णु देवता की तरह यह भी परमात्मा शिव की रचना है |

 यह केवल महाविनाश का कार्य करते है, स्थापना और पालना के कर्तव्य इनके कर्तव्य नहीं है |

*परमपिता परमात्मा शिव*

 यह चेतन ज्योति-बिन्दु है और इनका अपना कोई स्थूल या सूक्ष्म शरीर नहीं है, यह परमात्मा है |
यह ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर के लोक, अर्थात सूक्ष्म देव लोक से भी परे ‘ब्रह्मलोक’ (मुक्तिधाम) में वास करते है |
 यह ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर के भी रचियता अर्थात ‘त्रिमूर्ति’
 है |
यह ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर द्वारा महाविनाश और विष्णु द्वारा विश्व का पालन करा के विश्व का कल्याण करते है |

*शिव का जन्मोत्सव रात्रि में क्यों ?*

‘रात्रि’ वास्तव में अज्ञान, तमोगुण अथवा पापाचार की निशानी है |
अत: द्वापरयुग और कलियुग के समय को ‘रात्रि’ कहा जाता है | कलियुग के अन्त में जबकि साधू, सन्यासी, गुरु, आचार्य इत्यादि सभी मनुष्य पतित तथा दुखी होते है और अज्ञान-निंद्रा में सोये पड़े होते है,
जब धर्म की ग्लानी होती है और जब यह भरत विषय-विकारों के कर्ण वेश्यालय बन जाता है,
 तब पतित-पावन परमपिता परमात्मा शिव इस सृष्टि में दिव्य-जन्म लेते है |
इसलिए अन्य सबका जन्मोत्सव तो ‘जन्म दिन’ के रूप में मनाया जाता है परन्तु परमात्मा शिव के जन्म-दिन को ‘शिवरात्रि’ (Birth-night) ही कहा जाता है |

अत: यहाँ चित्र में जो कालिमा अथवा अन्धकार दिखाया गया है वह अज्ञानान्धकार अथवा विषय-विकारों की रात्रि का घोतक है |

ज्ञान-सूर्य शिव के प्रकट होने से सृष्टि से अज्ञानान्धकार तथा विकारों का नाश होता है।

जब इस प्रकार अवतरित होकर ज्ञान-सूर्य परमपिता परमात्मा शिव ज्ञान-प्रकाश देते है तो कुछ ही समय में ज्ञान का प्रभाव सारे विश्व में फ़ैल जाता है और कलियुग तथा तमोगुण के स्थान पर संसार में सतयुग और सतोगुण कि स्थापना हो जाती है और अज्ञान-अन्धकार का तथा विकारों का विनाश हो जाता
 है |

सारे कल्प में परमपिता परमात्मा शिव के एक अलौकिक जन्म से थोड़े ही समय में यह सृष्टि वेश्यालय से बदल कर शिवालय बन जाती है और नर को श्री नारायण पद तथा नारी को श्री लक्ष्मी पद का प्राप्ति हो जाती है |
इसलिए शिवरात्रि हीरे तुल्य है |

Friday, 20 December 2019

07:47

इंसानी आत्मा का परमात्मा से मिलन के सी शर्मा की रिपोर्ट


*परमात्मा में प्रवेश-के सी शर्मा*

 कभी भी कहीं से परमात्मा में प्रवेश सम्भव है, क्योंकि वह सर्वत्र है। बस उसने प्रकृति की चादर ओढ़ रखी है। यह चादर उघड़ जाय तो प्रति घड़ी-प्रतिक्षण उसका अनुभव होने लगता है।

 एक श्वास भी ऐसी नहीं आती-जाती, जब उससे मिलन की अनुभूति न की जा सके। जिधर भी आँख देखती है उसी की उपस्थिति महसूस होती है। जहाँ भी कान सुनते हैं, उसी का संगीत सुनाई देता है।

  उन सर्वव्यापी प्रभु को देखने की कला भर आना चाहिए। उसे निहारने वाली आँख चाहिए।
 इस आँख के खुलते ही वह सब दिशाओं में और सभी समयों में उपस्थित हो जाता है।
 रात में जब सारा आकाश तारों से भर जाय, तो उन तारों के बारे में सोचो मत, उन्हें देखों। महासागर के विशाल वक्ष पर जब लहरें नाचती हों, तो उन लहरों को सोचो मत, देखो। विचार थमे, शून्य एवं नीरव अवस्था में मात्र देखना सम्भव हो सके, तो एक बड़ा राज खुल जाता है।
  और तब प्रकृति के द्वार से उस परम रहस्य में प्रवेश होता है, जो कि परमात्मा है।
 प्रकृति परमात्मा पर पड़े आवरण से ज्यादा और कुछ भी नहीं है। और जो इस रहस्यमय, आश्चर्यजनक एवं बहुरंगे घूँघट को उठाना जानते हैं, वे बड़ी आसानी से जीवन के सत्य से परिचित हो जाते हैं।उनका परमात्मा में प्रवेश हो जाता है।

  सत्य का एक युवा खोजी किसी सद्गुरु के पास गया। सद्गुरु से उसने पूछा- मैं परमात्मा को जानना चाहता हूँ। मैं धर्म को, इसमें निहित सत्य को पाना चाहता हूँ।
आप मुझे बताएँ कि मैं कहाँ से प्रारम्भ करूँ ? सद्गुरु ने कहा, क्या पास के पर्वत से गिरते झरने की ध्वनि सुनायी पड़ रही है ? उस युवक ने हां में उत्तर दिया। इस पर सद्गुरु बोले, तब वहीं से प्रवेश करो। यही प्रारम्भ बिन्दु है।

  सचमुच ही परमात्मा में प्रवेश का द्वार इतना ही निकट है। पहाड़ से गिरते झरनों में, हवाओं में डोल रहे वृक्षों के पत्तों में, सागर पर क्रीड़ा करने वाली सूर्य की किरणों में। लेकिन हर प्रवेश द्वार पर प्रकृति का पर्दा पड़ा है। और बिना उठाए वह नहींउठता और थोड़ा गहरे उतरकर अनुभव करें तो पाएँगे कि यह परदा प्रवेश द्वारों पर नहीं, हमारी अपनी दृष्टि पर है। इस तरह अपनी दृष्टि पर पड़े इस एक परदे ने अनन्त द्वारों पर पर्दा कर दिया है।
यह एक पर्दा हम हटा सकें, तो हमारा परमात्मा में प्रवेश हो।

Thursday, 5 December 2019

08:56

गायत्री मंत्र की महिमा या कोई साधारण मंत्र नहीं है



*के सी शर्मा*


गायत्री मंत्र ,यह  प्राण विद्या का वह मंत्र है जो हमारे संपूर्ण मस्तिष्क एवं शरीर पर प्रभाव डालता है।
विशेष रुप से यह प्राणों पर प्रभाव डालता है। जैसे ही आप 20 मिनट  से अधिक गायत्री महामंत्र का जप करेंगे तो आपके शरीर पर विभिन्न प्रकार की क्रिया प्रतिक्रियाऐं  स्वतः  ही होने लगेगी।
जिसका साधक स्वयं अनुभव कर सकता है। ध्यान में आज्ञा चक्र पर आपको सिर्फ उगते हुए सूर्य की आकृति देखनी है ।

वेदों के अनुसार सविता को ही परमात्मा का प्रतिबिंब माना गया है इसके अलावा उसे किसी भी वास्तविक प्रतिबिंब में नहीं बांधा जा सकता ।
 और जब हम संप्रज्ञात समाधि की अवस्था में आते हैं तो यह वास्तविक सत्य है कि हमारे मस्तिष्क में सविता ही प्रकाश पुंज के रूप में प्रकाशित होने लगता है ।
मौन मानसिक रूप से गायत्री महामंत्र का जप अंदर का अंदर चलता रहेगा किंतु  ध्यान आज्ञा चक्र पर। जैसे-जैसे मंत्र जप बढ़ता जाएगा वैसे वैसे श्वासों पर नियंत्रण स्वतःही आता जाएगा।

प्राणायाम की क्रिया अपने आप होने लगेगी ।श्वास लंबी से लंबी एवं गहरी से गहरी होती जाएगी ।मूलबंध एवं उड़ियान  बंध की क्रियाएं स्वतः  होगी ।
जब आप बिना मंत्र जप के आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाने का प्रयास करते हैं तो चाहकर भी आप अपने मन को नियंत्रित नहीं कर सकते क्योंकि मन को कुछ न कुछ सहारा अवश्य चाहिए  ।
देखने मात्र से मन एक स्थान पर नहीं रुकेगा।उसे रोकने के लिए मनुष्य में सामर्थ्य नहीं ।वह सामर्थ्य भी हमें उस सत्यस्वरूप परब्रम्ह परमात्मा से ही मांगनी पड़ेगी ।
गायत्री महामंत्र वही एकमात्र प्रार्थना है जो हम निरंतर उस सत्य स्वरूप सविता परमात्मा से करते हैं  और यह प्रार्थना अत्यंत प्रभावशाली है,अचूक है ,रामबाण औषधि है।
मन को नियंत्रण करने के लिए। जो व्यक्ति एक दिन में  सुबह शाम 3-3 हजार गायत्री महामंत्र का जप कर लेता है विधि-विधान से ।
वह स्वयं देवताओं  के लिए भी सम्मान का पात्र बन जाता है  क्योंकि उसके अंदर उस परब्रह्म परमात्मा का असीम तेज समाहित हो जाता है।

3-3 हजार गायत्री महामंत्र का सुबह शाम जप यदि कोई व्यक्ति 12 वर्ष तक कर लेता है तो संसार में योग की  ऐसी कोई सिद्धि नहीं जो उससे दूर रहेगी।