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Thursday, 7 May 2020

19:32

ब्राह्मण पर विशेष रिपोर्ट के सी शर्मा की कलम से

ब्राह्मण पर विशेष -के सी शर्मा*


क्या ब्राह्मण किसी पर आश्रित है नहीं क्योंकि ब्राह्मण खुद अपनी रक्षा करने  में सक्षम है ब्राह्मण की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं किसी न किसी रूप में और ब्राह्मण जैसी जात जो शस्त्र और शास्त्र दोनों जानते लेकिन कभी भी शस्त्र को महत्वता नहीं दी लेकिन जब ब्राह्मणों में शिक्षा शस्त्र और शास्त्र की क्षत्रियों को दिया लेकिन कभी भी इसका प्रयोग नहीं करते थे क्योंकि ब्राह्मणों को कभी भी है राज्य संपदा की लालच नहीं थी और ना तो कभी भी किसी से युद्ध करना चाहते थे ब्राह्मण हमेशा अत्याचारों के खिलाफ ही शस्त्र उठाया ब्राम्हण में जब भी किसी ने शस्त्र उठाया है तो उससे बड़ा शस्त्र धारी नहीं हुआ चाहे वह गौतम ऋषि हो या उनके पुत्र है ऋषि सारद्वान कोई
 इस धरती पर इनसे बड़ा धनुर्धर हुआ नहीं है तमाम ऐसे साक्ष मौजूद थे हम कभी भी शस्त्र नहीं नहीं तो जब कि हमने उठाए इतिहास देखा इस इतिहास को आज हम बता रहे हैं महाभारत काल के 3 सबसे बड़े योद्धाओं के बारे में!

 गुरु द्रोणाचार्य

गुरु द्रोणाचार्य दुनिया के सबसे बड़े धनुर्धर परशुराम जी के बाद सबसे बड़े गुरु थे उनसे बड़ा धनुर्धर सिर्फ परशुराम जी थे और वह अपने जीवन में कभी भी युद्ध नहीं हारे थे उनको यह वरदान था  जब तक उनके हाथ में धनुष तीर है कोई भी उन्हें हरा नहीं सकता था उनसे बड़ा धनुर्धर कोई पैदा नहीं हुआ और उन्होंने ही  प्रतिज्ञा की थी  की  अर्जुन को  सर्वश्रेष्ठ  धनुर्धर  दुनिया का  बनाया था या पांडव और कौरवों के गुरु थे!

  कुलगुरु कृपाचार्य

  कृपाचार्य का वर्णन भीष्म पितामह करते हैं कि कृपाचार्य अकेले ही 60000  योद्धाओं पर भारी है और इस धरती पर मनुष्य के रूप में उसे कोई भी हरा नहीं सकता वह स्वयं देवताओं के सेनापति कार्तिकी के समान जान पड़ता है और कार्तिकेय जी से ही उसका युद्ध में कुछ हो सकता है
और महाभारत काल में भी वह अजय व चिरंजीवी होकर ही लौटे! कृपाचार्य बहुत ही बड़े योद्धा थे एक साथ 100 महारथियों से युद्ध कर सकते थे और वह किसी को भी खत्म करने की ताकत रखते थे उनके का जवाब किसी के पास नहीं था!

शिव रूद्र अंश अश्वत्थामा

 एक ऐसा योद्धा था जो अकेले के ही दम पर संपूर्ण युद्ध लड़ने की क्षमता रखता था
 ( महाभारत में द्रोण पुत्र अश्वत्थामा )
अश्वत्थामा द्रोणाचार्य जी के पुत्र थे, द्रोणाचार्य जी ने #शिव जी को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके उन्हीं के अंश से अश्वत्थामा नामक पुत्र को प्राप्त किया,,
 वे स्वयं शिव का अंश है,, अश्‍वत्थामा के पास शिवजी के द्वारा दी गई कई शक्तियां थी,,,,,,

जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक #अमूल्य_मणि विद्यमान थी, जोकि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी,,  इस मणि के कारण  उस पर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का असर नहीं हो पाता था।

अश्‍वत्थामा जी के ब्रह्मतेज, वीरता, धैर्य, तितिक्षा, शस्त्रज्ञान, नीतिज्ञान, बुद्धिमत्ता के विषय में किसी को संदेह नहीं था,, दोनों पक्षों के महारथी उनकी शक्ति से परिचित थे,, महाभारत काल के सभी प्रमुख व्यक्ति अश्‍वत्थामा के बल, बुद्धि व शील के प्रशंसक थे।

अश्वत्थामा जी ने अपने महान पिता द्रोणाचार्य जी से धनुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया था, द्रोण जी ने अश्वत्थामा को धनुर्वेद के सारे रहस्य बता दिए थे,,,,,,
 सभी दिव्यास्त्र, आग्नेय, वरुणास्त्र, पर्जन्यास्त्र, वायव्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र, ब्रह्मशिर आदि सभी उसने सिद्ध कर लिए थे,, वह भी द्रोण, परशुराम की कोटि का धनुर्धर बन गया, कृप, अर्जुन व कर्ण भी उससे अधिक श्रेष्ठ नहीं थे,, नारायणास्त्र एक ऐसा अस्त्र था ‍जिसका ज्ञान द्रोण के अलावा माभारत के अन्य किसी योद्धा को नहीं था,, यह बहु‍त ही भयंकर अस्त्र था।

पिता की छलपूर्वक मृत्यु से दुखी होकर अश्‍वत्थामा मजबूर होकर नारायणास्त्र का प्रयोग करता है जिसके चलते एक ही झटके में पांडवों सहित उनकी संपूर्ण सेना नष्ट हो जाती।

सभी नारायणास्त्र से नष्ट हो जाते लेकिन पांडवों को इस अस्त्र से बचने के लिए तुरंत ही  श्री कृष्ण उनसे अपने-अपने अस्त्र त्यागकर रथ से ‍नीचे उतरने का आदेश देते हैं और कहते हैं कि सभी नारायणास्त्र के सामने  आत्मसमर्पण कर लो अन्यथा मारे जाओगे,,,,,,,,

सभी पांडव और सेना ऐसा ही करते है, #समर्पण से ही वे सभी बच सके,, जब अश्‍वत्थामा यह देखता है कि सभी पांडव बच गए हैं,,, तब वह अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रयोग करता है लेकिन श्रीकृष्णजी के कारण अर्जुन फिर बच जाता है। 

 पराजयो वा मृत्युर्वा श्रेयान् मृत्युर्न निर्जयः।
विजितारयो ह्‍येते शस्त्रोपसर्गान्मृतोपमाः।।

अर्थात : जिसने अस्त्र डाल दिए हों, आत्मसमर्पण कर दिया वे सभी शत्रु विजित ही हैं, वे मृत के समान ही हैं,,

#शिव_महापुराण (शतरुद्रसंहिता -37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया!

Thursday, 16 April 2020

09:32

भगवान ब्राह्मण परशुराम जी के जीवन पर विशेष ब्राह्मण स्वराज्य का लेख रिपोर्ट केसी शर्मा की कलम से






भगवान परशुराम विष्णु जी के छठवें अवतार सभी अवतारों में चिरंजीव अवतार आइए हम बताते हैं आज परशुराम जी की कुछ बातें कि किसलिए उनका अवतार हुआ इस धरती पर भगवान परशुराम ऋषि जमदग्नी और मां रेणुका के पुत्र थे वह पांच भाइयों में सबसे छोटे थे भगवान परशुराम राम काल से लेकर कृष्ण काल तक और इस  कलयुग में कल्कि अवतार तक रहेंगे आइए कुछ प्रमुख बातें जानते हैं भगवान श्री परशुराम के बारे में भगवान परशुराम ने अपने जीवन में बहुत सारी युद्ध लड़े देवी देवताओं से ज्यादातर लड़े भगवान परशुराम ने राम और कृष्ण के अवतार में बहुत ही प्रमुख भूमिकाएं निभाई!

 उस पर भी हम प्रकाश डालेंगे भगवान परशुराम के प्रमुख शिष्यों के बारे में भी हम प्रकाश डालेंगे तो आइए हम आज अपने लेख के माध्यम से आप लोगों के समकक्ष भगवान परशुराम के बारे में कुछ जानकारियां रखते हैं!

*कुछ प्रमुख युद्ध भगवान परशुराम के!*

सहस्त्रबाहु से युद्ध- जैसा कि आप सभी जानते हैं कि भगवान परशुराम ने गौ माता कामधेनु की समुद्र मंथन में मिली नवरत्नों में से एक थी उनकी रक्षा करने के लिए राक्षस प्रवृत्ति के सहस्त्रबाहु अर्जुन का सभी हाथों को काट के और खून की नदियां  नदिया बहा दी थी उसके रक्त से! और उसका अंत कर दिया था और जितने भी राजा उसकी तरफ से लड़ने आते थे उनसब का अस्तित्व मिटा के 21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया और सहस्त्रबाहु के राक्षस साम्राज्य को खत्म कर दिया था!

*भगवान गणेश जी से युद्ध-*
 जब भगवान परशुराम कैलाश जाते हैं अपने परम प्रतापी गुरु महादेव शिव से मिलने तो उनका रास्ता स्वयं महादेव के पुत्र गणेश जी रोकते हैं बार-बार समझाने पर भी ना मानने पर भगवान परशुराम से युद्ध करते और इस घोर युद्ध में भगवान परशुराम का क्रोध आने पर उनका एक दांत अपने फरसा से तोड़ देते हैं जिससे भगवान गणेश एकदंत कहलाए और वह युद्ध समाप्त हुआ!

*महाबली हनुमानजी से युद्ध :-*

 हनुमान जी से भी भगवान परशुराम का युद्ध बहुत ही घनघोर चला और कई दिनों तक चलता रहा और इस युद्ध के होने से धरती पर खतरा मंडराने लगा जिसको देवताओं ने भागते हुए इस युद्ध को आकर बीच में रुकवाया तब जाकर युद्ध शांत हुआ!

 *पितामह भीष्म से युद्ध :-*

 पितामह भीषम युद्ध का कारण अंबालिका अंबा  अंबिका का हरण  था जिससे उनकी रक्षा करने के लिए भगवान परशुराम ने अपने शिष्य भीष्म पितामह से युद्ध किया और यह युद्ध महाभारत की युद्ध से भी 5 दिन ज्यादा दिन तक चला युद्ध पूरे 23 दिनों तक चला और अंत में धरती को बचाने के लिए महादेव को आकर यह युद्ध बीच में रोकना पड़ा!

राम कृष्ण व कल्कि अवतार में इनकी भूमिका!!


श्री राम अवतार श्री राम के अवतार में भगवान परशुराम जब जनक के यहां रखी हुई महादेव के सबसे प्रिय धनुष पिनाक के टूट जाने पर पर्वत पर बैठे हुए भगवान परशुराम को यह पता चलता है  तो वह क्रोध में भरे हुए राजा जनक के दरबार में पहुंचते हैं और वहां पर रामजी  से मुलाकात होती है वहां पर यह कुछ वार्ता होने के बाद वहां पर भगवान विष्णु के 7 अवतार राम जी को शक्तिशाली धनुष सारंग देते हैं ! जिससे रावण का वध होता है और यह प्रमुख धनुष भगवान विष्णु की रहती है जो परशुराम जी राम जी को देते हैं जो कि उनके युद्ध काल में रावण के वध के लिए अनिवार्य था!!

*श्री कृष्णा अवतार:-*

 श्री कृष्ण को भगवान परशुराम जब वह गुरुकुल की पढ़ाई पूरा कर लेते हैं तो उनके यहां गुरुकुल में वह आते हैं और वहां पर हो उन्हें सुदर्शन चक्र देकर महाभारत में सत्य और असत्य की और असुरों के आक्रमण को खत्म करने के लिए सुदर्शन चक्र देकर अपना धर्म निभाते हैं जिससे कृष्ण धर्म के मार्ग पर चलते हैं!!

 विष्णु कल्कि अवतार ,
 भगवान विष्णु के कलयुग के अंत में कल्कि अवतार  जब लेंगे और दुष्टों का संहार करेंगे तो उन्हें शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा स्वयं विष्णु जी के छठवें अवतार भगवान परशुराम ही देंगे!

,*भगवान परशुराम केप्रमुख शिष्य!!*

भीष्म पितामह -
भीष्म पितामह परशुराम जी के प्रमुख शिष्यों में से एक थे और यह बहुत ही कुशल राजनीतिक व धनुर्विद्या के ज्ञाता थे!
 और यह प्रमुख शिष्य थे भगवान परशुराम के!

 गुरु द्रोणाचार्य,   गुरु द्रोणाचार्य संसार के सर्वश्रेष्ठ  धनुर्धर थे और सर्वश्रेष्ठ गुरु भी थे उन्होंने कौरव और पांडवों को धनुर्विद्या की शिक्षा दी थी !
यह प्रमुख शिष्यों में एक थे उनकी युद्ध कौशल कला और शैली किसी और को पता नहीं था यह चक्रव्यूह रचना करने वाले एकमात्र संसार के गुरु थे!

सूर्यपुत्र कर्ण   सूर्यपुत्र कर्ण भी बहुत ही बड़ा धनुर्धर और विद्वान था जब वो तीर चलाता था तो स्वयं लगता था जैसे यमराज रथ पर सवार हो के प्राण लेने आ रहे हैं और यह बहुत ही परम शिष्य था भगवान परशुराम का!

 *मार्शल आर्ट के जनक परशुराम!*

भगवान परशुराम शस्त्र विद्या के श्रेष्ठ जानकार है, परशुराम जी मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की उत्तरी शैली वदक्कन कलरी के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं।

Wednesday, 25 March 2020

07:37

जानिए पिबत् भागवतम् रसमालयम्-के सी शर्मा




 गोवर्धन प्रसंग का विस्तार से वर्णन कथा

'गो'  और 'आवर्धन' अर्थात् जो मनुष्य 5 कर्मेंद्रियां, 5 ज्ञानेन्द्रियों को अपने वश में करने का प्रयास करता है
उस समय इन्द्रियों का स्वामी 'मन' रुपी मदोन्मत्त 'इन्द्र' वृन्दावन वासियों पर मुसलाधार वर्षा करके नष्ट-विनष्ट का कोशिश करता है,
किन्तु....
श्रीकृष्ण रुपी 'ब्रह्म' अर्थात् वैशिष्ट्य ज्ञान उस मदोन्मत्त इन्द्र के अभिमान को महज़ कनिष्ठिका अंगुली से ही 'गोवर्धन पर्वत' उठाकर 'जीव' (वृंदाव वासियों) का रक्षा करते हैं,
और...
'इन्द्र' (मन) का मान मर्दन करते हैं,
अर्थात्
'मन' को सदैव वश में रखना चाहिए, जो इन्द्रिय निग्रह कर 'मन' पर अधिकार जमाने में कामयाब हो जाता है, उसे श्रीकृष्ण (ब्रह्म) की शरणागति प्राप्त हो जाती है।

''विद्यावताम् भागवती परीक्षा''

अर्थात्
विद्वानों की परीक्षा 'श्रीमद्भागवत कथा' के व्याख्या में की जाती है, अर्थात्
आध्यात्मिक रस से परिपूरीत 'रसालय' है जिस 'रस' का आस्वादन करने में देवता, ऋषि, महर्षि, यक्ष और मनुष्य सदैव उद्यत रहते हैं।
07:33

जानिए कैसे है अग्नि और ब्राह्मण सहोदर-के सी शर्मा




अग्नि और ब्राह्मण की सहोदरता का प्रमाण हैं कि ब्राह्मण तथा अग्नि विराट् पुरुष के मुख से उत्पत्ति कही गयी हैं। ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत्।।
यजुः वा०शा ३१/११।।
मुखाद् अग्निरजायत।।३१/१२।।

इसलिये..
शास्त्रों में ब्राह्मणों को आग्नेय या अग्नि कहा गया हैं।

तभी मीमांसा दर्शन १/४/२४सूत्र के शाबरभाष्य में आग्नेयो वै ब्राह्मणः।।
पर
प्रकाश डालने के लिये इस प्रकार प्रश्नोत्तरी हुई हैं--

अथाग्नेयेषु (ब्राह्मणेषु) आग्नेयादि शब्दाः केन प्रकारेण ?

उ - गुणवादेन

को गुणवादः ?
उ - अग्निसम्बन्धः।

कथम् ?
उ-एकजातीयकत्वात् (अग्निब्राह्मणयोः)

किमेकजातीयकत्वम् ?
उ - प्रजापतिरकामयत प्रजाः सृजेयमिति।
समुखतस्त्रिवृतं निरमिमीत।
तमग्निर्देवता अन्वसृज्यत"" ब्राह्मणो मनुष्याणाम्।। तस्मात् ते मुख्याः। मुखतोऽन्वसृज्यन्त।।

यहाँ पर अग्नि और ब्राह्मण की एकजातीयता स्पष्ट जानी जाती हैं।

अग्न्याऽभावे तु विप्रस्य पाणावेवोपपादयेत्।।
 मनुः ३/२१२।।
यदि साग्निक न होतों विप्र के हाथ में अग्नौकरण आहुतिद्वय दे

इसमें हेतु यह दिया हैं --
यो ह्यग्निः स द्विजो विप्रैर्मन्त्रदर्शिभिरुच्यते ।।मनुः तत्रैव।।

गोपथ ब्रा०में कहा हैं --
ब्राह्मणो ह वा इममग्निं वैश्वानरं बभार।।
१/२/२०।।
कठोंपनिषद् से ब्राह्मण का अग्नित्व इस प्रकार कहा हैं -
वैश्वानरः प्रविशत्यतिथिर्बाह्मणो गृहान्।।
१/१/७।।
भविष्य पुराण -
ब्राह्मणा ह्यग्निदेवास्तु।।
ब्राह्म पर्व लगभग १३ अ०।।

महाभारत में निषाद के आचारवाले भी ब्राह्मण को निगलने के समय गरुड़ के कण्ठ में अग्निदाह जैसा प्रतित होने लगा था।
-आदिपर्व २९।।

सास्य देवता ।।पार ०गृ सूत्र ४/२/२४।।
सूत्र के व्याख्यान में सिद्धान्तकौमुदी में कहा हैं..
आग्नेयो वै ब्राह्मणो देवतया -
इसपर बालमनोरमा -
अग्निर्नाम यो देवताजातिविशेषो लोकवेद प्रसिद्धः, तदभिमानिको ब्राह्मणः।।

उपर महाभारत का भी दृष्टांत दिया हैं इससे ब्राह्मण यह न समजें कि स्वकर्मपथभ्रष्ट ब्राह्मण भी इस कलियुग में श्रेष्ठ हैं,

जो ब्राह्मण नित्यकर्म से रहित -

आयाज्यों के याजन , अभक्ष्यादि दोषों से द्विजत्वभ्रष्टरूपी हलाहलविष लेकर स्वयं घूमते फिर रहे हैं वे इस प्रत्वयाय के कारण उनके संसर्गी व स्वकुल के  भी नाशक होतें ही हैं।।

हलाहल की दाहक असर धारक के पर भी निश्चितता से होती ही हैं।।

मार्गपर आ जायें।  इसलिये तो कहा हैं कि कलियुग में पापकर्ता यदि अपनी उचित प्रायश्चित्तविधा मार्गसे शुद्धि न करें तो त्यागने योग्य हैं -->

कर्तारं_तु_कलौयुगे।।पाराशर।। कलौ_पतति_कर्मणा।। तत्रैव।।