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Monday, 15 June 2020
Wednesday, 15 April 2020
जानिए क्यों होता है धार्मिक कार्यों में कुश का उपयोग -के सी शर्मा
हिंदू धर्म में किए जाने वाले धार्मिक कर्म-कांडों में विशेष अवसरों पर कुश ( एक विशेष प्रकार की घास) का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा कोई भी जप कुश के आसन पर बैठकर करने का ही विधान है। धार्मिक कर्म-कांड़ों में घास का उपयोग आखिर क्यों किया जाता है? इसके पीछे का कारण सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी है।
वैज्ञानिक शोधों से यह पता चला है कि कुश ऊर्जा का कुचालक है। जब कोई साधक कुश का आसन पर बैठकर जप करता है तो उस साधना से मिलने वाली ऊर्जा पृथ्वी में नहीं जा पाती क्योंकि कुश का आसन उसे पृथ्वी में जाने से रोक लेता है। यानि इस समय कुश अपने नैसर्गिक गुणों के कारण ऊर्जा के कुचालक की तरह व्यवहार करता है। यही सिद्धांत पूजा-पाठ व धार्मिक कर्म-कांड़ों में भी लागू होता है।
कुश के इसी गुण के कारण सूर्य व चंद्रग्रहण के समय इसे भोजन तथा पानी में डाल दिया जाता है जिससे ग्रहण के समय पृथ्वी पर आने वाली किरणें कुश से टकराकर परावर्तित हो जाती हैं तथा भोजन व पानी पर उन किरणों का विपरीत असर नहीं पड़ता। |
पूजा-अर्चना आदि धार्मिक कार्यों में कुश का प्रयोग प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है। यह एक प्रकार की घास है, जिसे अत्यधिक पावन मान कर पूजा में इसका प्रयोग किया जाता है। इसकी पावनता के विषय में कथा पुराणों में एक कहानी है।
महर्षि कश्यप की दो पत्नियां थीं। एक का नाम कद्रू था और दूसरी का नाम विनता। कद्रू और विनता दोनों महार्षि कश्यप की खूब सेवा करती थीं। महार्षि कश्यप ने उनकी सेवा-भावना से अभिभूत हो वरदान मांगने को कहा। कद्रू ने कहा, मुझे एक हजार पुत्र चाहिए। महार्षि ने ‘तथास्तु’ कह कर उन्हें वरदान दे दिया। विनता ने कहा कि मुझे केवल दो प्रतापी पुत्र चाहिए। महार्षि कश्यप उन्हें भी दो तेजस्वी पुत्र होने का वरदान देकर अपनी साधना में तल्लीन हो गए। कद्रू के पुत्र सर्प रूप में हुए, जबकि विनता के दो प्रतापी पुत्र हुए। किंतु विनता को भूल के कारण कद्रू की दासी बनना पड़ा। विनता के पुत्र गरुड़ ने जब अपनी मां की दुर्दशा देखी तो दासता से मुक्ति का प्रस्ताव कद्रू के पुत्रों के सामने रखा। कद्रू के पुत्रों ने कहा कि यदि गरुड़ उन्हें स्वर्ग से अमृत लाकर दे दें तो वे विनता को दासता से मुक्त कर देंगे। गरुड़ ने उनकी बात स्वीकार कर अमृत कलश स्वर्ग से लाकर दे दिया और अपनी मां विनता को दासता से मुक्त करवा लिया। यह अमृत कलश ‘कुश’ नामक घास पर रखा था, जहां से इंद्र इसे पुन: उठा ले गए तथा कद्रू के पुत्र अमृतपान से वंचित रह गए। उन्होंने गरुड़ से इसकी शिकायत की कि इंद्र अमृत कलश उठा ले गए। गरुड़ ने उन्हें समझाया कि अब अमृत कलश मिलना तो संभव नहीं, हां यदि तुम सब उस घास (कुश) को, जिस पर अमृत कलश रखा था, जीभ से चाटो तो तुम्हें आंशिक लाभ होगा। कद्रू के पुत्र कुश को चाटने लगे, जिससे कि उनकी जीभें चिर गईं और वे छटपटाने लगे। इसी कारण आज भी सर्प की जीभ दो भागों वाली चिरी हुई दिखाई पड़ती है, किंतु ‘कुश’ घास की महत्ता अमृत कलश रखने के कारण बढ़ गई और भगवान विष्णु के निर्देशानुसार इसे पूजा कार्य में प्रयुक्त किया जाने लगा।
कुश का प्रयोग पूजा करते समय जल छिड़कने, ऊंगली में पैंती पहनने, विवाह में मंडप छाने तथा अन्य मांगलिक कार्यों में किया जाता है। इस घास के प्रयोग का तात्पर्य मांगलिक कार्य एवं सुख-समृद्धिकारी है, क्योंकि इसका स्पर्श अमृत से हुआ है।
Thursday, 31 October 2019
सत्य के साथ खड़े रहना ही है असली स्वाभिमान
पूनम चतुर्वेदी*
स्वाभिमान का मतलब अपनी बात पर अड़े रहना नहीं अपितु सत्य का साथ ना छोड़ना है। दूसरों को नीचा दिखाते हुए अपनी बात को सही सिद्ध करने का प्रयास करना यह स्वाभिमानी का लक्षण नहीं अपितु दूसरों की बात का यथायोग्य सम्मान देते हुए किसी भी दबाब में ना आकर सत्य पर अडिग रहना यह स्वाभिमान है।अभिमानी वह है जो अपने अहंकार के पोषण के लिए दूसरों को कष्ट देना पसंद करता है। स्वाभिमानी वह है जो सत्य के रक्षण के लिए स्वयं कष्टों का वरण कर ले।
मै जो कह रहा हूँ वही सत्य है, यह अभिमानी का लक्षण है और जो सत्य होगा मै उसे स्वीकार कर लूँगा यह स्वाभिमानी का लक्षण है। स्वाभिमानी स्वभाव से मृदु और बेहद विनम्र होते हैं।अपने आत्मगौरव की भी प्रतिष्ठा जरुर बनी रहनी चाहिए मगर किसी को अकारण, अनावश्यक झुकाकर, गिराकर या रुलाकर नहीं।
पूनम चतुर्वेदी
जाने कैसे होती है शिवलिंग की पूजा
के सी शर्मा*
कहते है की भगवान शिव की यदि लिंग स्वरुप में यानी की शिवलिंग की पूजा की जाए तो भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न होते है। हम आपको यहां पर शिवलिंग की पूजा से सम्बंधित कुछ उपाय बता रहे है जिनको करने से आप अभीष्ट फल प्राप्त कर सकते है।
1. जल चढ़ाते समय शिवलिंग को हथेलियों से रगड़ना चाहिए। इस उपाय से किसी की भी किस्मत बदल सकती है।
2. जल में केसर मिलाएं और ये जल शिवलिंग पर चढ़ाएं। इस उपाय से विवाह और वैवाहिक जीवन से जुडी समस्याएं खत्म होती है।
3. यदि आप बहुत जल्दी सफलता पाना चाहते हैं तो रोज़ पारे से बने छोटे से शिवलिंग की पूजा करें। पारद शिवलिंग बहुत चमत्कारी होता है।
4. यदि आप लंबी उम्र चाहते है तो शिवलिंग पर रोज़ दूर्वा चढ़ाएं। इससे शिवजी और गणेशजी की कृपा से घर में सुख-समृद्धि भी बढ़ती है।
5. चावल पकाएं और उन चावलों से शिवलिंग का श्रृंगार करें। इसके बाद पूजा करें। इससे मंगलदोष शांत होते हैं।
6. समय-समय पर शिवजी के निमित सवा किलो, सवा पांच किलो, ग्यारह किलो या इक्कीस किलों गेहूं या चावल का दान करें।
7. शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय काले तिल मिलाएं। इस उपाय से शनि दोष और रोग दूर हो...
Tuesday, 10 September 2019
श्राद्ध पक्ष में करें अपने पितरों को प्रसन्न क्योंकि पित्र प्रसन्न होते हैं तो सभी देवता भी प्रसन्न होते हैं
जब पित्र आप पर खुश तो अब सभी देवता आपसे प्रसन्ना होते हैं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के बाद जीव का शरीर से नाता टूट जाने के बावजूद भी उसका सूक्ष्म शरीर बना रहता है वह सोच में शरीर अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु प्रतिनिधि चाहता है और प्रतिनिधि वही हो सकता है जो योग्य हो विश्वास पात्र हो और उसमें अपनत्व की भावना हो प्रत्येक व्यक्ति अपनी संतानों से यह अपेक्षा रखता है कि वे सदाचारी हो सांसों में श्राद्ध करने का अधिकार भी उसी को दिया है जो सर्वथा योग्य पात्र हो श्राद्ध एवं तर्पण यह दोनों शब्द चित्र कर्म के प्रयुक्त होते हैं जिस गया से सत्य धारण किया जाता है उसे श्राद्ध कहते हैं और जो भी वस्तु श्रद्धा पूर्वक पितरों को लक्ष्य करके उन्हें अर्पण की जाती है अथवा कार्य किए जाते हैं उसे श्राद्ध कहते हैं जिसमें इधर प्राप्त होते हैं उसे तर्पण कहते हैं प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ व सूत्र कार ने कहा है कि जिस समय स्वाहा बोलकर देवताओं के लिए हवन पदार्थ अग्नि में डाला जाता है उसी प्रकार पितरों के उद्देश्य से श्रद्धा पूर्वक स्वधा बोलते हुए जो प्रदान किया जाता है उसे श्राद्ध कहते हैं इस स्कंद पुराण के अनुसार श्राद्ध में श्रद्धा ही मूल है गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पितरों का स्थान देवताओं से भी ऊंचा होता है अतः जब कभी भी देवताओं के निमित्त कोई कार्य संपादित होते हैं तो उनके पूर्व ही चित्रकार श्राद्ध किया जाता है पंडित गिरजा शंकर शास्त्री के अनुसार पितरों का स्थान देवताओं से भी ऊंचा है अतः जब कभी भी देवताओं की निर्मिती कोई कार्य यज्ञ आदि संपादित होते हैं तो उससे पूर्व पितरों को याद किया जाता है अर्थात पिता प्रसन्न हो तब सब देव प्रसन्न होते हैं अब प्रश्न उठता है कि क्या किया गया श्राद्ध पितरों को प्राप्त होता है यदि हां तो इसका प्रमाण क्या है इस विषय में आचार्यों देशों की मान्यताओं अनुसार आपने चाहे कितने भी दोस्त क्यों ना हो लेकिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी संतानों में आमतौर पर यही अपेक्षा रखता है कि वह सदाचारी होंगे इसलिए पितर अपेक्षा रखते हैं और कहते हैं कि जब आपका शरीर नहीं था बाय रूप में भटक रहे थे तब माता-पिता के द्वारा उन्हें के अंश से शरीर की प्राप्ति हुई बता जब हम लोग स्कूल से सोच में चले गए हैं तब आपका कर्तव्य है कि पितरों की तृप्ति हेतु तर्पण एवं शादी अवश्य करें पितरों की संख्या ग्रंथों में अनेक कही गई है लेकिन मुख्य साथ भीतर माने जाते हैं जिन्हें देवी पिता कहा जाता है सुखाना आंद्रेस सोश सोम बैराज अग्नि स्वाद तथा बाहर पद आरंभ और आदिकाल से श्रद्धा की परंपरा चली आ रही है बाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड के वर्णन है कि राजा दशरथ के दाह कर्म के पश्चात भरत जी ने 12 दिन तक साथ किया था भरत द्वारा पिता की मृत्यु का समाचार सुनने के पश्चात भगवान श्री रामचंद्र जी ने भी मंदाकिनी नदी में जाकर पिता के निमित्त पिंडदान कर दान किया था इसलिए हमें अपने पितरों सुमिरन करते हुए उनके श्राद्ध पक्ष में तर्पण और पिंडदान अवश्य करना चाहिए।
Tuesday, 27 August 2019
जीवन को संचालित करने की प्रेरणा देते हैं भगवान गणेश
वैसे तो गणेश जी की जन्म की गाथा निराली है उसमें कहा गया है कि गणेश जी भगवान शिव के पुत्र हैं और हर समस्या का समाधान करने वाले भी हैं इस संसार में हर व्यक्ति किसी न किसी शक्ति का यकीन करता है और उसकी आराधना भी करता है लेकिन विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा सभी देवताओं से पहले की जाती है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्री गणेश शिव पुत्र हैं चूंकि शिव जी का निवास स्थान कैलाश पर्वत है इडलिये कहानी के अनुसार एक बार भगवान शिव अपने गणों के साथ भ्रमण करने के लिए गए थे और घर पर पार्वती जी अकेली थी एकांत पाकर पार्वती जी स्नान करने के लिए तैयार होने लगी तभी उनके मन में एक विचार आया कि अगर स्नान करते वक्त बीच में कोई घर के भीतर आ गया तो यह उचित नहीं होगा इसलिए उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक बालक की प्रतिमा बनाई और उसमें प्राण प्रतिष्ठा करके उसे दरवाजे पर बिठा दिया और निर्देशित किया कि जब तक मैं नहीं बोलूंगी किसी को अंदर मत आने देना कुछ देर के बाद शिवजी जब वापस आए तब वह अपने घर जाने लगे तो गणेश जी ने उन्हें रोका और बोला मेरी मां का निर्देश है कि आप अंदर नहीं जा सकते इसके बाद शिव के गणों के बीच गणेश जी का युद्ध हुआ जिसमें गणेश जी ने सभी घरों को हरा दिया उसके बाद शिवजी को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया जब या बाद पार्वती जी को पता चली तब वह बड़ी व्याकुल हुई और शिवजी से अपने बालक को जीवित करने को कहा तब शिवजी ने कहा कि अब यह बालक तभी जीवित हो सकता है जब इस पर कोई दूसरा सिर लगेगा उन्होंने अपने गणों को आदेश किया कि कोई सिर लेकर आए जिसे गणेश जी को जीवित किया जा सके गण आज्ञा पाकर शेर की तलाश में निकल गए और उन्हें कोई शेर नहीं मिला तो एक हाथी का बच्चा लेटा हुआ था उसका सिर काट कर ले आए और इस तरीके से गणेश जी का पुनर्जीवन हुआ अपनी माता के के निर्देश को पालन करते हुए गणेश जी ने अपना जीवन खो दिया था इसलिए हाथी के सिर वाले गणेश जी गणेश जी के नाम से विख्यात हो गए जिसके बाद ब्रह्मा विष्णु महेश सभी देव ने मिलकर गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि आप सर्वश्रेष्ठ हैं इस सृष्टि पर जब कोई किसी भी देवता की पूजा होगी तब सर्वप्रथम आपको पूजा जाएगा तभी से गणेश जी सर्वप्रथम पूजनीय देवता बन गए इसके बाद गणेश जी सदा ही इंसान के जीवन को संचालित होते की प्रेरणा देते रहते है ।