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Monday, 30 December 2019

07:04

जीवन की गलतियां हमें कुछ ना कुछ सिखाती है लेक़िन क्या



*जीवन मे होनेवाली गलतियां हमे कुछ सीखा के ही जाती हैं-के सी शर्मा*


हम सभी लोगो से life में कभी न कभी ,कही न कही गलतिया जरूर होती है।
ऐसा कोई इंसान नही है जिससे कभी कोई गलती न हुई हो।और अगर वास्तव में देखा जाये तो ये गलतिया हमे कुछ न कुछ सिखा कर ही जाती है।
बसजरूरत है उन शिक्षाओ को समझने की.......

आज का इंसान देह और देह के सर्व संबधो में इतना उलझ गया है की वह न तो खुद को समझ पा रहा है ,न दुसरो को.......

इस तरह वो खुद को धोखा दे रहा है।

जरा सोचिये हमे किस पर इतना अभिमान है....हमारी देह पर ....जो कब तक हमारे साथ रहेगी हम खुद नही जानते।हो सकता है ये आने वाले कुछ पलो में हमे छोड़ कर चली जाये.....फिर इस पर अभिमान क्यों.......??????

किसी को अभिमान होता है खुद के ओहदे पर....post पर.....या कहो तो अपने कार्यरत पद पर......मगर क्या वो ओहदा stable है।हमेशा अपने साथ रहेगा.....नही एक दिन समय आने पर वह ओहदा भी हमसे विदा हो जायेगा।फिर उस ओहदे पर अभिमान क्यों.......??????

किसी को अभिमान होता है अपने धन पर.....और इस धन को पाने के लिए लोग न जाने क्या क्या कर जाते है। मगर सोचिये इतना धन होने पर भी मन को सुख और ख़ुशी क्यों नही महसूस नही होती....???

जरा सी life में कोई दुर्घटना हो जाये तो सारा पैसा पानी की तरह बह जाता है। busyness में जरा सा कुछ ऊपर निचे हुआ की मन की शांति तो गयी ही गयी....साथ में अभिमान करवाने वाला धन भी गया.....फिर इस पर अभिमान क्यों....?????

किसी को अपने रिश्तों नातो पर बड़ा अभिमान होता है।....ये भी आपसी समझ होने पर ही stable हो सकते है।अगर जरा सा सब्र का बांध टुटा तो सारे रिश्ते बिखर जाते है।कभी कभी गलतफहमिया ही इतनी मजबूत हो जाती है हम सही और गलत में फर्क नही कर पाते।.....फिर इन पर भी अभिमान क्यों......??????

अतः कुल मिलकर आज जो भी हमारे पास है।जिस पर हम अभिमान करते है।वो सभी अस्थायी है।इन अस्थायी चीजो के बिच आज इंसान ने खुद को इतना उलझ लिया की खुद को ही भूल गया।

देह अभिमान के कारण आज इंसान में इतना अहम या eggo आ गया है वो हमेशा खुद को सही और दुसरो को गलत मानता है।और इसी देह अभिमान के कारण वो खुद भी सुख और शांति का अनुभव नही करता है।न दुसरो को सुख और शांति दे पाता है।

सोचिये कितना आसान है eggo को ख़त्म करना। बस किसी को माफ़ करना है।और किसी से अपनी गलती की माफ़ी तो मागना है।

और ये दोनों हम किसी और के लिए नही कर रहे है।हम खुद अपने लिए कर रहे है।अपनी ख़ुशी के लिए कर रहे है।

गलतिया हमसे भी होती है।और जब हमे गलती का अहसास हो जाये।उसी वक़्त माफ़ी मांग लीजिये।हमारे west thought तभी बंद हो जायेगे और हम खुद को हल्का अनुभव करेंगे।

अगर हम देह अभिमान वश माफ़ी नही मागते है तो एक गलती को छुपाने में अनगिनत गलतिया कर बैठते है।साथ ही मन की ख़ुशी भी खो देते है।

इसलिए माफ़ी माँगना आसान है, बहुत ही आसान......

और अगर कोई दूसरा भी गलती करे। तुम्हे hurt करे।तो भी वहीँ पर full स्टॉप लगा दे।और उसे माफ़ कर दे।

क्योंकि आज वो आत्मा आपको दुःख दे रही है.....परेशान कर रही है। hurt कर रही है।.....ये आपके ही किये कर्म है जो आज आपके सामने आ रहे है। बेहतर होगा की अब यह फूल स्टॉप लग जाये।वरना ये कर्मो का खाता बढ़ता ही जायेगा।

आज अगर eggo को पकड़ कर रखा तो न खुद सुखी हो पायेगे न दुसरो को सुखी कर पायेगे।

सोचिये परिस्तिथियां आएगी....उन पर हमारा बस नही है।कौन जनता है अगले पलो में क्या होने वाला है।मगर अपने आपको संभालना हमारा काम है।हमारे मन की स्तिथि न बिगड़े।

इसलिए एक ही मन्त्र याद रखे .....
सबको माफ़ कर दे और सबसे माफ़ी माँग ले।
दुसरो के लिए नही,खुद अपने आप के लिए।

हर आत्मा का अपना अपना कार्मिक अकॉउंट है।और ये हिसाब किताब हर आत्मा को चुक्त करना ही है।

Sunday, 29 December 2019

08:40

मौन में बैठने से बदल जाता है आपका जीवन के सी शर्मा की रिपोर्ट



  *मौन में बैठने से बदल सकता है आपका जीवन- के सी शर्मा*


   अगर आप अपनी इच्छा से कुछ समय के लिए बोलना छोड़ दें, मौन धारण कर लें तो इससे आपको बहुत फायदे हो सकते हैं।

*मौन के लाभ*
     मौन की शुरुआत जुबान के चुप होने से होती है। धीरे-धीरे जुबान के बाद आपका मन भी चुप हो जाता है। मन में चुप्पी जब गहराएगी तो आंखें, चेहरा और पूरा शरीर चुप और शांत होने लगेगा। तब आप इस संसार को नए सिरे से देखना शुरू कर पाएंगे। बिल्कुल उस तरह से जैसे कोई नवजात शिशु संसार को देखता है। जरूरी है कि मौन रहने के दौरान सिर्फ श्वांसों के आवागमन को ही महसूस करते हुए उसका आनंद लें। *मौन से मन की शक्ति बढ़ती है। शक्तिशाली मन में किसी भी प्रकार का भय, क्रोध, चिंता और व्यग्रता नहीं रहती।
मौन का अभ्यास करने से सभी प्रकार के मानसिक विकार समाप्त हो जाते हैं। आइये जानते हैं मौन के सात महत्वपूर्ण फायदों के बारे में।

*संतुष्टि*
      कुछ न बोलना, यानि अपनी एक सुविधा से मुंह मोड़ना। जी हां, बोलना आपके लिए एक बहुत बड़ी सुविधा ही होती है। जो आपके मन में चल रहा होता है उसे आप तुरंत बोल देते हैं। लेकिन, मौन रहने से चीजें बिल्कुल बदल जाती हैं। मौन अभाव में भी खुश रहना सिखाता है।

*अभिव्यक्ति*
       जब आप सिर्फ लिखकर बात कर सकते हैं तो आप सिर्फ वही लिखेंगे जो बहुत जरूरी होगा। कई बार आप बहुत बातें करके भी कम कह पाते हो। लेकिन ऐसे में आप सिर्फ कहते हो, बात नहीं करते। इस तरह से आप अपने आपको अच्छी तरह से व्यक्त कर सकते हैं।

*प्रशंसा*
      हमारे बोल पाने की वजह से हमारा जीवन आसान हो जाता है, लेकिन जब आप मौन धारण करेंगे तब आपको ये अहसास होगा कि आप दूसरो पर कितना निर्भर हैं। मौन रहने से आप दूसरों को ध्यान से सुनते हैं। अपने परिवार, अपने दोस्तों को ध्यान से सुनना, उनकी प्रशंसा करना ही है।

*ध्यान देना*
     जब आप बोल पाते हैं तो आपका फोन आपका ध्यान भटकाने का काम करता है। मौन आपको ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूर करता है। इससे किसी एक चीज या बात पर ध्यान लगाना आसान हो जाता है।

*विचार*
      शोर से विचारों का आकार बिगड़ सकता है। बाहर के शोर के लिए तो शायद हम कुछ नहीं कर सकते, लेकिन अपने द्वारा उत्पन्न शोर को मौन जरूर कर सकते हैं। मौन विचारों को आकार देने में हमारी मदद करता है। हर रोज अपने विचारों को बेहतर आकार देने के लिए मौन रहें।

*प्रकृति*
      जब आप हर मौसम में मौन धारण करना शुरू कर देंगे तो आप जान पाएंगे कि बसंत में चलने वाली हवा और सर्दियों में चलने वाली हवा की आवाज भी अलग-अलग होती है। मौन हमें प्रकृति के करीब लाता है। मौन होकर बाहर टहलें। आप पाएंगे कि प्रकृति के पास आपको देने के लिए काफी कुछ है।

*शरीर*
      मौन आपको आपके शरीर पर ध्यान देना सिखाता है। अपनी आंखें बंद करें और अपने आप से पूछें, "मुझे अपने हाथ में क्या महसूस हो रहा है?" अपने शरीर को महसूस करने से आपका अशांत मन भी शांत हो जाता है।
 *शांत मन स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है।*

Thursday, 12 December 2019

07:06

भारतीय सभ्यता और संस्कृति में चित्त की पवित्रता स्त्री और पुरुष की सबसे बड़ी निधि



*भारतीय-सभ्यता और संस्कृति में पवित्रता ही एक स्त्री या पुरुष की सबसे बड़ी हैं निधि -के सी शर्मा*


दोहरापन छोड़कर  भारतीय सभ्यता और संस्कृति को पूरी श्रद्धा से अपनाना होगा
और...
जब कोई समाज अपने पूर्वजों ,अपनी सभ्यता ,अपनी भाषा,अपनी संस्कृति को हेय दृष्टि से देखने लगता है ,
तब समझ लेना चाहिए कि उसने अपनी कब्र पर आखिरी कुल्हाड़ी चला दी।
आज से एक हजार वर्ष पहले भारतवर्ष के लोग ये नही जानते थे कि बलात्कार क्या होता है ।
ऐसी कोई घटना न कभी देखी गयी ,न सुनी गई। उन्हें पता ही नही था कि ऐसा भी कुछ होता है।
इसके पीछे कारण थे। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण कारण था भारतवर्ष की सुदृढ शिक्षा व्यवस्था।

बाल्यकाल से 25 वर्ष की आयु तक बालक बालिकाओं को गुरुकुल में रहकर ब्रह्मचर्य व्रत में स्थित रहते हुए  विद्याध्ययन करना अनिवार्य था।
इसी काल में बच्चों को वेद ,वेदांत ,योग विद्या , संस्कृत भाषा, गणित, ज्यामिति, खगोल शास्त्र, अध्यात्म विद्या आदि में पारंगत कर दिया जाता था।
गुरुकुल के कठोर अनुशासन में रहकर बच्चे इंद्रिय संयम , सत्य मार्ग का सेवन और बुराई से दूर रहने के अभ्यस्त हो जाते थे।
उन दिनों शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण करना होता था , पैसे कमाने की मशीन मैन्युफेक्चर करना नही।
गुरूजी स्वयं संयमी होते थे इसलिए छात्रों को भी संयम का अभ्यास हो जाता था ।
ऐसे आध्यात्मिक वातावरण में छात्रों की मानसिक और बौद्धिक ऊर्जाएं इत्तनी ऊँची उठ जाती थीं कि उन्हें फिर यौनसुख, भोजन सुख जैसे सतही सुख निरे फीके लगने लगते थे।
उस समय स्त्रियां क्या पहने क्या नही पहने जैसे सतही विवाद नही होते थे।
उस समय नदी किनारे लगभग अर्धनग्न अवस्था में स्नान करती स्त्रियों का दृश्य कोई महान घटना नही मानी जाती थी।
कुछ मनुष्य स्नान कर रहे हैं बस ये इतनी ही आम बात थी।
तब पुरुषों ने ऐसी कल्पना भी नही की होगी,कि उनके चरित्र का सम्बन्ध स्त्री के पहनावे से हो सकता है।
उन्हें हमेशा यही शिक्षा दी गयी कि तुम क्या हो ये तुम्हारे ऊपर है।

उन्हें हमेशा शिक्षा दी गयी कि पराई स्त्री माता के समान है।

स्त्रियां भी कभी सेक्स अपील या लड़को को रिझाने की नीयत से अंग प्रदर्शन करती नही घूमती थीं।
क्योंकि....
बचपन से ही उन्हें पवित्रता का महत्व समझाया गया ।
उन्हें बताया गया कि...
पवित्रता ही एक स्त्री या पुरुष की सबसे बड़ी निधि है।
इसलिए , लड़को को रिझाने की खातिर अंग प्रदर्शन करना उनकी प्रवृत्ति नही थी और इसीलिए किसी ड्रेस कोड का भी सवाल नही था । घूंघट प्रथा नही थी।
और...
ये महान सभ्यता फल फूल रही थी।

*इस प्रकार.... ,*
भारतवर्ष की प्राचीन शिक्षा पद्धति ने एक ऐसे समाज का निर्माण किया था जो हर प्रकार से उन्नत था ।
दूसरा कारण जो था भारत में बलात्कार जैसी घटनाओं के न होने में, वो था विवाह संस्कार। किशोरावस्था में आते ही बालक बालिकाओं के विवाह की तैयारियां शुरू हो जाती थी।
हिन्दू वैज्ञानिकों ने मानव मन का अध्ययन करके ये समझा कि यौनसुख उसके शरीर की एक जैविक जरूरत है ।
किशोरावस्था में आते ही कामवेग प्रबल होने लगता है, यदि उसे शान्त न किया जाए तो वो अंधा हो जाता है । इस कामवेग को शान्त करने के लिए विवाह का प्रावधान किया गया।
काम को भोगकर उसका नाश करने के लिए विवाह संस्था की उतपत्ति हुई।
बिगड़े मन को एक खूंटे से बाँधने हेतु विवाह संस्कार निर्धारित किया गया।
कम ही आयु में लड़का लड़की का विवाह कर दिया जाता था , जिससे दोनो का सम्बन्ध भावनात्मक रूप से जुड़ जाता, बाद में समय के साथ एक दुसरे को समझते रहते। इस व्यवस्था ने भारतीय नारियों को पवित्रता के आभूषण से भूषित किया और पुरुषों को मर्यादा और शील रुपी अलंकारों से सजाया।

       फिर मध्यकाल आया । विधर्मियों की चमचमाती तलवारें मानो हिन्दू सभ्यता और संस्कृति पर कहर बनकर टूट पड़ीं।
आसमान चूमते देव मंदिरों को धूल में मिलाया गया।
घरों, गाँवों और बाजारों को लूटा गया।
हिन्दू स्त्रियों का अपहरण किया गया उनके साथ अनाचार किया गया। न जाने कितनी स्त्रियां अपनी पवित्रता बचाने को धधकती आग में कूद पड़ीं।
हजारो वर्षों की प्रक्रिया से विकसित और संवर्धित हुई हिन्दू सभ्यता पर ऐसा कलंक लगा जो आज तक नही मिट पाया है।
पुरे भारत का विधर्मीकरण प्रारम्भ हुआ ,मंदिरों के भग्नावशेषों पर विधर्मियों ने अपने मजहबी स्थान  खडे कर दिए,
विश्वविद्यालयों और पुस्तकालयों की हजारो अमूल्य पुस्तकों को आग के हवाले किया गया और विधर्मियों ने अपनी मजहबी जिहाद के पाठ पढ़ाने  के  स्थान खोले गए ,शहरो, गलियों और मार्गों के नाम बदले गए ।प्रयागराज इलाहाबाद हो गया, अयोध्या फैजाबाद हो गयी और एक चौथाई हिंदुओ को विधर्मी बना दिया गया।

     फिर ब्रिटिश शासन स्थापित हुआ। उन्होंने अपनी पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली देश में लागू की।
भारतीय गुरुकुलों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। पाश्चात्य स्कूलों और कालेजों से पढ़कर हर साल हजारों संशयवादी बाहर आते और अपने धर्म को गालियां देते।
वे सूट बूट पहनना पसंद करते और धोती पहनने वाले अपने देशवासियों को हिकारत की नजर से देखते।
वे पश्चिमी विज्ञान की तारीफों के पुल बांधते और वैदिक धर्म और दर्शन (उसे बिना पढ़े ही) को ढोंग बताते।
वे बाबू लोग, वे काले अंग्रेज इंग्लिश बोलने सीखने में अपनी शान समझते और संस्कृत को गए जमाने की या पूजा पाठ की भाषा समझकर उसकी उपेक्षा करते।

जब कोई समाज अपने पूर्वजों ,अपनी सभ्यता ,अपनी भाषा,अपनी संस्कृति को हेय दृष्टि से देखने लगता है ,तब समझ लेना चाहिए कि उसने अपनी कब्र पर आखिरी कुल्हाड़ी चला दी।

अंग्रेजों ने पहली बार भारतीयों को बताया कि इंद्रियों का सुख क्या होता है।
वे भारतीय जो आत्मज्ञान में ही मस्त रहते थे,
जो ब्रह्मसत्यम जगद मिथ्या का उद्घोष हजारो साल पहले ही कर चुके थे,
उन भारतीयों को अंग्रेजों ने बताया कि जगत ही वास्तव में सत्य है।

*ब्रह्म को किसने देखा है???*

भौतिकतावाद की आंधी में भारतीयों का सारा ज्ञान , सारी भक्ति जाती रही।

फिर आजादी के बाद अमेरिका की नकल शुरू हुई।

    आज परिणाम ये हुआ है कि भारत के लोग न तो पूरी तरह भारतीय हैं और न पूरी तरह अंग्रेज या अमेरिकन।

हम एक मिक्स कबाड़ की तरह बन चुके हैं।

जैसे बाढ़ का पानी उतर जाने पर सारा कचरा, गमले, जूते , टायर आदि एक स्थान पर एकत्र हो जात हैं उसी तरह हजारो वर्षों की गुलामी विभिन्न संस्कृतियों की नकल कर करके हमारा समाज एक कबाड़ बन चुका है।
और

इसीलिए , हमारे समाज में ऐसे विकार पैदा हो रहे हैं।
अब हम जल्दी विवाह नही करते ।

अब हम अमेरिकियों की तरह गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड बनाते हैं।
फिर दूसरी तरह हम पवित्र भी रहना चाहते हैं,
अपनी गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड से शादी भी करना चाहते हैं।
और
जब बॉयफ्रेंड शादी से मना कर देता है तो उसपर बलात्कार का आरोप लगा दिया जाता है।
पर अमेरिका में तो ऐसा नही है। वहां लोग गर्लफ्रेंड बनाते हैं , बॉयफ्रेंड बनाते है , शारीरिक संबंध बनाते हैं शादी की कोई बाध्यता नही।
अगले दिन आपको कोई दूसरी पसंद आ जाए तो ब्रेक अप कर लो।
अब जब हमें अमेरिकन बनना है गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड बनाने हैं तो पूरी तरह अमेरिकन बन जाना चाहिए , फिर शादी की बाध्यता क्यों???
और
यदि नही तो पूरी तरह भारतीय ही बने रहो ।
बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड बनाने के बजाय सीधे विवाह करो।
पर... नही... आप चाहते हैं बॉयफ्रेंड बनाना , शारीरिक संबंध बनाना , फिर वो विवाह भी कर ले।
ये ऐसे काम नही करता।
लड़के विवाह क्यों करेंगे जब बिना विवाह के ही उन्हें वो सब मिल गया जो उन्हें कल्पना में भी न मिलता? अमेरिका में विवाह न होना एक समस्या है।
वहां अरेंज विवाह जैसी चीज नही थी,
इसलिए वहां बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड कल्चर विकसित हुआ।

हो सकता है ये उनके लिए अच्छा हो ।
पर ये भारत के लिए भी अच्छा हो सकता है???
यहां विवाह व्यवस्था चलती आयी है अब आप बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड कल्चर भी चाहते हैं
और
उसके साथ साथ विवाह व्यवस्था भी ।
इसलिए शादी का झांसा देकर बलात्कार करने जैसी बातें सामने आ रही हैं।
दोनों में से एक रास्ता चुनें।
अगर आप पवित्रता को महत्व देते हैं तो विवाह व्यवस्था पर चलें ।
यदि आप केवल सतही क्षणिक सुख को महत्व देते हैं ,
तो जरूर बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड कल्चर अपनाएँ,
पर पवित्रता की उम्मीद न रखें फिर ।
या तो हमें पूरी तरह भारतीय बन जाना चाहिए या पूरी तरह अमेरिकन ।

आज स्त्रियों के पहनावे से सम्बंधित सवाल उठ रहे हैं वो इसी वजह से एक वर्ग अमेरिकन बनना चाहता है ,  तो... दूसरे वर्ग की भारतीय आत्मा इसे स्वीकार नही कर पाती।
लड़को का एक वर्ग बॉलीवुडिया फिल्मे देखकर (जो अमेरिका की हूबहू नकल करती हैं) गर्लफ्रेंड बनाने को पागल है , तो दूसरी ओर है भारतीय नारी का पवित्र मन जो केवल उसी एक को समर्पित होती है जो उसका पाणिग्रहण करता है।

*ऐसे में क्या होगा????*

अमेरिकन संस्कृति से प्रभावित नीली जीन्स पहनने वाला लड़का एक गर्लफ्रेंड चाहता है पर ये अमेरिका नही.... , भारत है... यहां उसे सहज में गर्लफ्रेंड नही मिलेगी
और
विवाह व्यवस्था को भी छोड़ चुका है...,
फिर वो क्या करेगा???
सड़क चलती लड़की का हाथ ही तो पकड़ेगा।

      इसलिए यदि हम अपने इस कन्फ्यूज़ समाज को बचाना चाहते हैं तो इसे द्वन्दों से बाहर निकालना होगा।

*दोहरापन छोड़कर....*

भारतीय सभ्यता और संस्कृति को पूरी श्रद्धा से अपनाना होगा
और
अमेरिकन बनना है तो अमेरिका चले जाना होगा।
भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति को दुबारा लागू करना होगा।

ऐसा नही कि हम अंग्रेजी न सीखें..., अवश्य सीखें पर उससे पहले संस्कृत सीखें।
भारत की आत्मा संस्कृत में बसती है,
उपनिषदों में बसती है।
बिना आत्मा के चाहे शरीर को कितना ही स्वर्णपत्रों और फूलों से सजा दिया जाए, एक दिन ये स्वर्णपत्र और फूल उड़ जाएंगे और उस समाज की सड़ी हुई लाश सामने आ जायेगी।

Wednesday, 11 December 2019

07:06

बुजुर्गों का सम्मान करें यह हमारी धरोहर है-के सी शर्मा



*समझिए बुजुर्गों को और करे सम्मान- के सी शर्मा*


पिता जिद कर रहाँ था कि उसकी चारपाई गैलरी में डाल दी जाए। बेटा परेशान था।
बहू बड़बड़ा रही थी...कोई बुजुर्गों को अलग कमरा नहीं देता, हमने दूसरी मंजिल पर ही सही एक कमरा तो दिया...
सब सुविधाएं हैं, नौकरानी भी दे रखी है।
 पता नहीं, सत्तर की उम्र में सठिया गए हैं ?
निकित ने सोचा पिता कमजोर और बीमार हैं...जिद कर रहे हैं तो उनकी चारपाई गैलरी में डलवा ही देता हूँ।
 पिता की इच्छा पू्री करना उसका स्वभाव भी था।
अब पिता की चारपाई गैलरी में आ गई थी। हर समय चारपाई पर पडे रहने वाले पिता अब टहलते-टहलते गेट तक पहुंच जाते।
 कुछ देर लान में टहलते।
लान में खेलते नाती-पोतों से बातें करते, हंसते, बोलते और मुस्कुराते। कभी-कभी बेटे से मनपसंद खाने की चीजें लाने की फरमाईश भी करते।
 खुद खाते, बहू-बेटे और बच्चों को भी खिलाते...धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य अच्छा होने लगा था।
दादा मेरी बाल फेंको...गेट में प्रवेश करते हुए निकित ने अपने पाँच वर्षीय बेटे की आवाज सुनी तो बेटे को डांटने लगा...अंशुल बाबा बुजुर्ग हैं उन्हें ऐसे कामों के लिए मत बोला करो।
पापा! दादा रोज हमारी बॉल उठाकर फेंकते हैं...अंशुल भोलेपन से बोला।
क्या..."निकित ने आश्चर्य से पिता की तरफ देखा!"...हां, बेटा तुमने ऊपर वाले कमरे में सुविधाएं तो बहुत दी थीं। लेकिन अपनों का साथ नहीं था। तुम लोगों से बातें नहीं हो पाती थी। जब से गैलरी में चारपाई पड़ी है, निकलते बैठते तुम लोगों से बातें हो जाती है। शाम को अंशुल-पाशी का साथ मिल जाता है।
पिता कहे जा रहे थे और निकित सोच रहा था...।
बुजुर्गों को शायद भौतिक सुख-सुविधाओं से ज्यादा अपनों के साथ की जरूरत होती है।
बुज़ुर्गों का सम्मान करें यह हमारी धरोहर हैं...!
यह वो पेड़ हैं जो थोड़े कड़वे हैं लेकिन इनके फल बहुत मीठे हैं और इनकी छांव का कोई मुक़ाबला नहीं।
06:44

आज के दौर की कडुई सच्चाई वरिष्ठ पत्रकार केसी शर्मा की कलम से


*-के सी शर्मा*
बेटियों के रेप की घटना, गैंग रेप की घटना,मॉबलिंचिंग,बैंक लूट,रेप के बाद अब बेटियों को जला देने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।हैदराबाद में गैंगरेप, बिहार के बक्सर में रेप कर जला देना जिसमें पैर का सिर्फ एक बित्ता भाग बचा था,समस्तीपुर में भी बेटी को रेप कर जला दिया गया, मुजफ्फरपुर के अहियापुर में बेटी को उसके घर में घुसकर किरासन तेल डालकर जला दिया गया,शरीर का 90℅ भाग जल चुका है, सिर्फ गर्दन से ऊपर का भाग बचा है, जिसे पटना रेफर किया गया है।

अब समाजिक पतन की शुरुआत अपना रंग दिखाने लगा है।समाज से नैतिकता का,वैचारिकता,आपसी भाईचारा, बंधुत्व जब समाप्त हो जाता है तो इसे सामाजिक पतन की शुरूआत कह सकते हैं।इस तरह की घटनाएं किसी भी तरह के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करती!अगर प्रतिनिधित्व करती भी हैं तो वह है हैवानियत और राक्षसी प्रवृति!इसलिए अब हम यह कह सकते हैं कि भारतीय समाज बहुतायत में हैवानियत और राक्षसी प्रवृति वाला समाज बनता जा रहा है।

नई पीढ़ी को मार्गदर्शन देने के लिए न अब आदर्शवादी नेतृत्व है, न आदर्शवादी समाज है,न आदर्श शिक्षक हैं, न ही आदर्श घर-परिवार है,न आदर्शवादी माता पिता हैं।

सवाल उठता है कि फिर इसे संचालित कौन करता है?
जाहिर सी बात है कि जब किसी ऊंचाई से वेग के साथ जल की धाराएं निकलेंगी तो उसे रास्ता चाहिए, अगर रास्ता न मिला तो सैलाब आ जाएगा, तबाही-बर्बादी मचा देगा।
ठीक यही स्थिति नई पीढ़ी के लड़कों के साथ है।
उसके आस-पास, समाज, घर-परिवार का वातावरण वह नहीं रहा जो उसे अपने में समेट ले,या जिस तरह का परिवेश-वातावरण उसके आस-पास बन चुका है जिसमें वह ढल चुका है।
वह वातावरण और परिवेश है हैवानियत और राक्षसी प्रवृति वाला!
अब की नई पीढ़ी गाईड हो रही है पूंजी से, बाजार से!
बाजार ही उसका मार्गदर्शक है।बाजार उसे उपलब्ध कराता है 4G-5G डाटा!
मोबाइल डाटा के स्कूल में हर विषय के गुरुजी हैं।वह जिस सवाल का जवाब चाहता है वह उस विषय के गूगल जी(गुरु जी) से जवाब प्राप्त कर लेता है!
इस तरह की घटनाओं में गूगल गुरु जी का बहुत अहम योगदान है।दूसरी अहम बात ये गूगल गुरुजी और 300-400 टेलीविजन चैनल्स ने सामाजिक जरूरतों,सामाजिक पहलों को समाप्त कर दिया।
जब सामाजिक जरूरत और पहल समाप्त हुए तब सामाजिक रिश्ते भी उतनी तेजी से विलोपित होते चले गए।
रिश्ते टूट चुके हैं।
वह समाज जिसमें कोई दादा,चाचा,भाई,भतीजा, पोता हुआ करता था, ठीक इसी तरह बहन,बुआ,दादी,चाची का रिश्ता होता था।भले ही भतीजे की उम्र 50 और चाचा की उम्र 10 साल का हो।
रिश्ता इसी तरह निभता था।दूसरी बात काम करने का समय निर्धारित 10 से 4 बजे तक का समय।लोग ड्यूटी कर घर समय से लौट जाते थे फिर शाम के वक़्त एक दूसरे के यहाँ हाल-चाल लेने पहुंच गए।
इसी में टोला मोहल्ला का सब समाचार प्राप्त हो जाता था।लेकिन जैसे-जैसे सरकारीकरण समाप्त हो निजीकरण का दौर शुरू हुआ जिंदगी बेचैन सी हो गई।
प्राइवेट नौकरी, दस-दस घँटा काम।सुबह भागिए काम पर, रात को लौटिए घर पर।एक तो दिन भर की थकान,उपर से रात भी,अब कौन अपने पड़ोसी के घर जाए और हाल खबर ले।
सबसे प्रमुख बात शिक्षा का निजीकरण और महंगी शिक्षा भी!
पहले तो स्कूल एक ही जिसमें गांव टोले के सभी बच्चे उसी स्कूल में।सबका बच्चा एक साथ!इससे कौन बच्चा क्या कर रहा है, हर गतिविधि की खबर सामाजिक स्त्रोत से बच्चे के गार्जियन को।
अब बच्चा अपने बाप के औकात के मुताबिक स्कूलों में जा रहा है, जरूरी नहीं कि पड़ोसी का औकात भी वही हो,पड़ोसी का औकात उससे भी बड़ा और उससे भी छोटा होगा, वह उस औकात के मुताबिक उससे भी महंगे या सस्ते स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ाएगा।
स्कूलों का बड़ा बाजार है।
सबके बच्चे अलग-अलग स्कूलों में पढ़ रहे।अब गार्जियन को किस माध्यम से पता चले कि बच्चा क्या कर रहा है।
स्कूल वाला रिपोर्ट कार्ड थमा देता है, जिसमें सबका बेटा अव्वल ही होता है।बाप समझता है आ हा हा हा बेटा तो अव्वल आया।
लेकिन उसको क्या मालूम कि स्कूल वाला उसका भी उस्ताद है।उसे मालूम है कि रिपोर्ट कार्ड मन मुताबिक न हुआ तो बच्चे का स्कूल से नाम कटवा दूसरे स्कूल में डाल दिया जाएगा इसलिए रिपोर्ट गार्जियन का  मन प्रसन्न करनेवाला बना थमा दो और एडमिशन फिस भी इतना रख दो की जल्दी से नाम कटवाकर दूसरे स्कूल में न जाए।
प्राइवेट कोचिंग का चलन भी तेजी से बढ़ा है, स्कूल भी,अलग-अलग कोचिंग भी!बाजारू व्यवस्था ने यह माहौल पैदा कर दिया कि बच्चों से उसका बचपना छीन उसे पढ़ने की मशीन बनाई जाय तभी ऐशोआराम की जिंदगी मिल सकती है।नतीजा हुआ कि बच्चे पढ़ने में नहीं सक रहे, घर से पीठ पर बैग लाद चले स्कूल कोचिंग करने और रास्ते में बैठ गए स्मैक,ड्रग,अफ़ीम लेने।सुलेशन सूंघने।

गरीबी भी इन घटनाओं के कारणों में है, शिक्षा मिली नहीं,जिंदगी अभावों वाली,इच्छा मोबाइल रखने की।उसमें भी साल में कई लेटेस्ट तरह के मोबाइल लांच करते हैं,
 उसे पाने की इच्छा में छिनतई की घटना तेजी से बढ़ी है, आए दिन लूट हत्या के समाचार प्राप्त होते रहते हैं।
लुभावनी बाजारू संस्कृति ने समाज में कई विकृतियां पैदा की हैं।
जिसमें नैतिक- अनैतिक कार्यों का कोई मूल्य न रहा।चाहे जैसे पैसा कमाकर घर में बेटा ला रहा हो बाप-पूरा परिवार उसमें अपनी मौन सहमति रखता है।
ऐसे कई कारण हैं जो सभी आपस में एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।इस पर गंभीरता के साथ अपराध- उन्मूलन अभियान चलाकर किसी निष्कर्ष तक पहुंचा जा सकता है, लेकिन इतना तो तय है कि इस सब की जड़ या धूरी बाजार ही है।
इन विकृतियों पर सामाजिक रूप से चर्चा करने की जरूरत है।
मैं इसका निदान फेक इनकाउंटर,मॉबलिंचिंग, जेल या फांसी को नहीं मानता,समाज को हैवानियत, राक्षसी प्रवृति से लौटकर पुनः मानवता की ओर आना होगा।नही तो पतन निश्चित है।

Tuesday, 5 November 2019

06:03

अंतर्मन को छूता महाभारत का एक सार्थक प्रसंग के सी शर्मा



के सी शर्मा महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था।युद्धभूमि में यत्र-तत्र योद्धाओं के फटे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों के चक्के, छज्जे आदि बिखरे हुए थे और वायुमण्डल में पसरी हुई थी घोर उदासी गिद्ध , कुत्ते , सियारों की उदास और डरावनी आवाजों के बीच उस निर्जन हो चुकी उस भूमि में द्वापर का सबसे महान योद्धा *"देवव्रत" (भीष्म पितामह)* शरशय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था -- अकेला .... !

तभी उनके कानों में एक परिचित ध्वनि शहद घोलती हुई पहुँची , "प्रणाम पितामह" .... !!

भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक मरी हुई मुस्कुराहट तैर उठी ,  बोले , " आओ देवकीनंदन .... !  स्वागत है तुम्हारा .... !!

मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था" .... !!

कृष्ण बोले ,  "क्या कहूँ पितामह ! अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप" .... !

भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले," पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव ... ?
उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है" .... !
कृष्ण चुप रहे .... !
भीष्म ने पुनः कहा ,  "कुछ पूछूँ केशव .... ?
बड़े अच्छे समय से आये हो .... !
सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !!
कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....!
एक बात बताओ प्रभु !  तुम तो ईश्वर हो न .... ?
कृष्ण ने बीच में ही टोका ,  "नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं ...  मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ... ईश्वर नहीं ...."
भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े .... !  बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .... !! "
कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले ....  " कहिये पितामह .... !"
भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया !  इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या .... ?"
  "किसकी ओर से पितामह .... ?  पांडवों की ओर से .... ?"
 " कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया !  पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था .... ?  आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या .... ?  यह सब उचित था क्या .... ?"
इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह .... !
इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ..... !!
उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन .... !!
मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह .... !!
 "अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण .... ?
 अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है .... !
मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण .... !"
"तो सुनिए पितामह .... !
कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ .... !
 वही हुआ जो हो होना चाहिए .... !"
"यह तुम कह रहे हो केशव .... ?
मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ....?  यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया ..... ? "
"इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह , पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है .... !
हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है .... !!
 राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था .... !
हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह .... !!"
" नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो .... !"
" राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह .... !
राम के युग में खलनायक भी ' रावण ' जैसा शिवभक्त होता था .... !!
तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण जैसे सन्त हुआ करते थे ..... !  तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे .... !  उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था .
 इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया .... ! किंतु मेरे युग के भाग में में कंस , जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं .... !! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह .... ! पाप का अंत आवश्यक है पितामह , वह चाहे जिस विधि से हो .... !!"
 "तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव
क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा ....
और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा ..... ??"
" भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह .... !
कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा .... !
  वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा ....  नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा .... !
जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ  सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों,  तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह .... !
तब महत्वपूर्ण होती है विजय , केवल विजय .... !
भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह ..... !!"
"क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव ....
और यदि धर्म का नाश होना ही है , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ..... ?"
"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह .... !
ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता ..... !केवल मार्ग दर्शन करता है
  सब मनुष्य को ही स्वयं  करना पड़ता है .... !
आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न .... !
तो बताइए न पितामह , मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ..... ?
सब पांडवों को ही करना पड़ा न .... ?
यही प्रकृति का संविधान है .... !
युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से .... ! यही परम सत्य है ..... !!"
भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे .... !
उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी .... !
 उन्होंने कहा - चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है .... कल सम्भवतः चले जाना हो ... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण .... !"
कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले , पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था .... !
जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ  सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है ....।।
05:54

भारतीय समाज और संस्कृति का आधार है नारी शक्ति -के सी शर्मा



महिला दिवस के नाम पर, मोहल्ले में महिला सभा का आयोजन किया गया, सभा स्थल पर महिलाओं की संख्या अधिक और पुरुषों की कम थी। मंच पर तकरीबन पच्चीस वर्षीय खुबसूरत युवती, आधुनिक वस्त्रों से सुसज्जित, माइक थामें कोस रही थी पुरुष समाज को।

वही पुराना आलाप.... कम और छोटे कपड़ों को जायज, और कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए, पुरुषों की गन्दी सोच और खोटी नीयत का दोष बतला रही थी।

तभी अचानक सभा स्थल से... तीस बत्तीस वर्षीय सभ्य, शालीन और आकर्षक से दिखते नवयुवक ने खड़े होकर अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति मांगी। अनुमति स्वीकार कर अनुरोध माइक उसके हाथों मे सौप दिया गया .... हाथों में माइक आते ही उसने बोलना  शुरु किया....

"माताओं, बहनों और भाइयों, मैं आप सबको नही जानता और आप सभी मुझे नहीं जानते कि आखिर मैं कैसा इंसान हूं? लेकिन पहनावे और शक्ल सूरत से मैं आपको कैसा लगता हूँ बदमाश या शरीफ?"

सभास्थल से कई आवाजें गूंज उठीं... पहनावे और बातचीत से तो आप शरीफ लग रहे हो... शरीफ लग रहे हो... शरीफ लग रहे हो....

बस यहि सुनकर, अचानक ही उसने अजीबोगरीब हरकत कर डाली... सिर्फ हाफ पैंट टाइप की अपनी  अंडरवियर छोड़ कर के बांकि सारे कपड़े मंच पर ही उतार दिये। ये देख कर .... पूरा सभा स्थल आक्रोश से गूंज उठा, मारो मारो गुंडा है, बदमाश है, बेशर्म है, शर्म नाम की चीज नहीं है इसमें.... मां बहन का लिहाज नहीं है इसको, नीच इंसान है, ये छोड़ना मत इसको....

ये आक्रोशित शोर सुनकर... अचानक वो माइक पर गरज उठा...

"रुको... पहले मेरी बात सुन लो, फिर मार भी लेना चाहे तो जिंदा जला भी देना मुझको। अभी अभी तो....ये बहन जी कम कपड़े , तंग और बदन नुमाया छोटे छोटे कपड़ों की पक्ष के साथ साथ स्वतंत्रता की दुहाई देकर गुहार लगाकर...

"नीयत और सोच में खोट" बतला रही थी... तब तो आप सभी तालियां बजा-बजाकर सहमति जतला रहे थे। फिर मैंने क्या किया है? सिर्फ कपड़ों की स्वतंत्रता ही तो दिखलायी है।
"नीयत और सोच" की खोट तो नहीं ना और फिर मैने तो, आप लोगों को... मां बहन और भाई भी कहकर ही संबोधित किया था। फिर मेरे अर्द्ध नग्न होते ही.... आप में से किसी को भी मुझमें "भाई और बेटा" क्यों नहीं नजर आया?? मेरी नीयत में आप लोगों को खोट कैसे नजर आ गया? मुझमें आपको सिर्फ "मर्द" ही क्यों नजर आया? भाई, बेटा, दोस्त क्यों नहीं नजर आया? आप में से तो किसी की "सोच और नीयत" भी खोटी नहीं थी... फिर ऐसा क्यों?? "

सच तो यही है कि..... झूठ बोलते हैं लोग कि...
"वेशभूषा" और "पहनावे" से कोई फर्क नहीं पड़ता

हकीकत तो यही है कि मानवीय स्वभाव है कि किसी को सरेआम बिना "आवरण" के देखे लें तो घिन्न-सी जागती है मन में...

अब बताइए, हम भारतीय हिन्दु महिलाओं को "हिन्दु संस्कार" में रहने को समझाएं तो स्त्रियों की कौन-सी "स्वतंत्रता" छीन रहे हैं???

संभालिए अपने आप और समाज को, क्योंकि भारतीय समाज और संस्कृति का आधार नारीशक्ति है और धर्म विरोधी, अधर्मी, चांडाल (बॉलीवुड, वामपंथी, इसे मिशनरी) ये हमारे समाज के आधार को तोड़ने का षड्यंत्र कर रहे हैं ।

नारी तू नारायणी

Wednesday, 23 October 2019

06:59

मां के हाथों की बरकत दाल खिचड़ी में भी है लज्जत -के सी शर्मा



के सी शर्मा*

 आज की पीढ़ी को घर का खाना पसंद नहीं आता , महंगे महंगे रेस्टोरेंट्स और , रही सही कसर आजकल ऑनलाइन खाने की बुकिंग ने पूरी कर दी है  ।

 बहुत सारी विदेशी कंपनियां जिनके  आका विदेशों में बैठे हैं , और भारत में  इसकी फ्रेंचाइजी  दी हुई है , ज़ोमेटो , उबर  ,स्विग्गी जैसी ऑनलाइन कंपनियां घर घर आकर भोजन परोस रही है ।
 अनजान लड़के आपके द्वार पर चाहे दिन हो या रात भोजन परोसने के लिए खड़े रहते हैं , इसमें  कुछ शरीफ होते हैं , और कुछ ----- आप समझ ही गए  होंगे ,ना पुलिस वेरीफिकेशन , बस आपके पास मोटरसाइकिल या स्कूटर हो , और आप बन जाओ खाना परोसने के एजेंट , हर एक सप्लाई पर कमीशन ।

कई बार देखने को आया है जिस घर में प्याज और लहसुन वर्जित है , उनके बच्चे चोरी  छुपे बोनलेस मटन और चिकन का आनंद उठा रहे हैं , और यह बच्चे घर के खाने   को देखकर नाक मुंह  बनाते हैं , मैं इन बच्चों से यह कहता हूं ज़रा अपने घर के बाहर निकले किसी भी  गरीब के घर पर जाकर देखें , या जो आपके घर काम करने वाली बाई आती है ,उसके घर जाकर  देखो , तुम्हारे घर का बचा हुआ दो दिन का पुराना खाना जिसको देखकर तुम नाक मुंह चढ़ाते हो और वही खाना  बाई के बच्चे कितने चाव से खाते हैं ।

 अगर हम बाहर से मंगाया हुए खाने का हिसाब महीने भर का  लगाएं शायद उतने पैसे से एक गरीब का घर चल जाए ।

 आजकल हम लोगों ने अपने इतने खर्चे बढ़ा लिया हैं ,घर का मुखिया जो महीने भर नौकरी करता है ,या कोई कारोबार कर रहा है , उससे पूछो के पैसे का महत्व क्या होता है , " एक तो मंदी की मार उसपर बच्चों के खर्चे हज़ार "।
इस दौर में मध्यमवर्गीय परिवारों की स्थिति बड़ी दयनीय है ,शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसके ऊपर कोई  ऋण ना हो ,मोबाइल पर कर्जा ,टीवी पर कर्जा ,स्कूटर - मोटरसाइकिल पर कर्जा ,एसी पर कर्जा ,मकान पर कर्जा , पढ़ाई पर कर्जा, मध्यम वर्गीय परिवार यह हाल हो गया है कर्जा और परेशानियां जैसे चोली दामन का साथ हो  ,
आजकल कई सरकारी एवं  निगम मंडलों के कर्मचारियों को  समय से पगार नहीं मिल रही है और , जिन कर्मचारियों ने बैंकों  या प्राइवेट संस्थाओं से ऋण लिया हुआ है उनकी किस्तें समय से नहीं पहुंच रही है , और इसके लिए इन  कर्मचारियों को भारी दंड भुगतने  पड़ रहे है ।

 अगर हम अपने-अपने परिवारों का इमानदारी से महीने भर का खर्चा जोड़ें , तो हम देखेंगे बहुत छोटा सा भाग हम अपने महीने भर की किराने पर खर्च करते हैं, बाकी पैसा बिजली का बिल केबल टीवी का बिल , मोबाइल के रिचार्ज ,कार एवं स्कूटर के पेट्रोल ,होटलों के बिल, ऑनलाइन शॉपिंग के बिल ,जो कर्जा लिया हुआ है उसकी किस्तों में हमारा पूरा पैसा ख़र्च हो जाता है , और महीने की आखिरी तारीख को में हमें लोगों के सामने हाथ फैलाने की जरूरत पड़ती है।

" जिंदगी में सुख और दुख दोनों हैं, यह हमें तय करना है कि हमें जिंदगी "
 कर्जे में गुजारनी है या अपना फालतू खर्चा काटकर !

Sunday, 20 October 2019

08:06

समाचार कमलेश तिवारी की हत्या कहीं सहिष्णुता पर खतरे का आगाज तो नहीं के सी शर्मा



समाचार समाचार

भारत में सहिष्णुता का प्रमुख स्थान रहा है।लेकिन कमलेश तिवारी कि निर्मम दुखद हत्या कही भारत की सहिष्णुता पर खतरे का आगाज तो नही है?

 हजारों वर्षों से मध्य एशिया और अन्य विश्व के अन्य भागों से लोग यहां पर व्यापार और राज करने की कामना से आते रहे हैं। भयंकर युद्ध भी हुए और बिना युद्ध के समर्पण भी किया गया।

 प्रारंभिक भारत में हिंदू समाज का वर्णन नहीं मिलता।
 शायद तुलना के लिए अन्य कोई समाज उपस्थित नहीं था।

 विकास के क्रम में वर्चस्व की राजनीति अपनी भूमिका निभाता रहा।
 सामाजिक गुलामी के पश्चात् राजनीतिक गुलामी का शिकार भारत हो गया।
 छोटे-छोटे राज्य उनके अलबेले और बड़बोले राजा विदेशी आक्रांताओं के दरबारी बनकर रह गए।
 छुआछूत के चलन के बावजूद वैवाहिक संबंधों के माध्यम से भी सुविधा की राजनीति की गई।

अंततः यूरोपियन लोगों के आगमन के पश्चात् भारत में एक नवीन चेतना का जन्म हुआ।

 स्वतंत्रता और समानता ने समाज में स्थान बनाना शुरू किया।
 जातीय और धार्मिक आधारों पर नए नए समूह बनने लगे।
इन समूहों ने एक-दूसरे पर शोषण का आरोप लगाया।

समाचार

हिंदू समाज, मुस्लिम समाज और इसके आगे उनके अंदर विभिन्न प्रकार के जातीय और संस्कृतिक समाज बने।
 दबे हुए स्वाभिमान ने ललकारना शुरू कर दिया।
इन सबके बावजूद एक नए परिवेश में भारत एक राजनीतिक इकाई बना।

 कानून के शासन की बात की गई।विदेश से पढ़ कर आए महापुरुषों ने देशवासियों को स्वतंत्रता का मतलब समझाना शुरू किया।
 फिर एक ऐसा दौर भी आया जब देश को विभाजन की कीमत पर आजादी मिली।

 यद्यपि देश के फर्जी रियासतों ने भारत के स्वतंत्र होने में बाधा पहुंचाने का भी काम किया।

भारत की आजादी के बाद भी हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा बना रहा। दंगे-फसाद भारत के कुछ खास जिलों और मोहल्लों में जारी रहा।
 एक ऐसा दौर भी आया जब दंगों का स्वरूप बदल गया। श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट के माध्यम से भारतीय समाज को दहलाने की कोशिश की गई।

 दलितों-पिछड़ों को हाशिए पर रखने वाले हिंदू-हिंदू कहने लगे। टीवी चैनलों पर एक-दूसरे पर गुर्राने का अवसर मिलता रहा।इसी दौरान भारतीय जनता पार्टी कब मजबूत हो गई किसी को पता भी नहीं चला।

आज जब भारत और भारत के अधिकांश राज्यों में भारतीय जनता पार्टी का काबिज है तो कमलेश तिवारी जैसे लोग क्यों मारे जा रहे हैं, इस दुखद प्रश्न का उत्तर शायद हिंदुत्व में विश्वास करने वाले महान विचारक दे सकेंगे या फिर देश और प्रदेश की सुरक्षा इकाइयां?

 ध्यान रखने की बात है कमलेश तिवारी की हत्या को देश विरोधी ताकतों के लिए प्रसन्नता का विषय नहीं बनने देना है।
भारत को एक बहुलतावादी  सहिष्णु समाज बनाए रखना है, जहां पर सभी एक दूसरे का ख्याल रखने का शानदार जज़्बा रखते हैं।

जय हिंद-
 जय भारत-
बंदेमातरम-!

Wednesday, 9 October 2019

10:13

विजयदशमी पर जलाए गए रावण के पुतले पर विशेष



कल एक बार फिर विजयदशमी के अवसर पर बुराई के प्रतीक संत महात्माओं एवं ऋषि मुनियों से उनका खून टैक्स के रूप में वसूलने शक्तिस्वरूपा पराई स्त्री पर कुदृष्टि डालकर उसे अपहृत करने वाले असुरराज लंकापति रावण का वध उनका पुतला जलाकर कर दिया गया।इतना ही नहीं बल्कि उसके वध का जश्न भी दशहरा मेला के रूप में पूरे देश में मनाया गया और राक्षस राज के अंत होने के मौके पर एक दुसरे को शुभकामनाएं एवं बधाई भी दी गई। देश की राजधानी में देश के अगुवा राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री ने बाण चलाकर बुराई एवं अन्याय के प्रतीक रावण के पुतले को जलाया तो राज्यों में वहाँ के मुख्यमंत्रियों मंत्रियों एवं सासंदों विधायकों ने दशहरे में पहुंचकर भगवान राम की आरती उतारकर रावण वध के साक्षी बने।हमेशा की तरह इस बार भी इस अवसर पर अस्त्र शस्त्रों की पूजा अर्चना की गई और पूजा करके रक्षामंत्री ने सेना के बेड़े में राफेल लड़ाकू विमान को शामिल कर लिया गया। सभी जानते हैं कि रावण कुंभकर्ण भगवान विष्णु का प्रिय द्वारपाल जय एवं विजय है जो श्रापवश तीन जन्मों के लिए राक्षस बन गया था और भगवान विष्णु को राक्षस योनि से मुक्ति दिलाने के लिए राम के रूप अवतरित होकर उसका वध करना था। राक्षस कुल में पैदा होने के कारण उसकी प्रवृत्ति राक्षसी हो गई थी और वह राक्षसी आचरण करने लगा था।अगर वह आसुरी आचरण नहीं करता तो भगवान का अवतार नही होता क्योंकि भगवान के अवतार के लिए उसका उत्पाती धर्म, साधु-संत एवं ऋषि-मुनि विरोधी होना आवश्यक था।अगर रावण नें संत महात्माओं एवं ऋषि मुनियों को तंगकर शक्तिस्वरूपा उनकी धर्मपत्नी सीताजी का अपहरण न किया होता तो शायद उसका वध करने के लिए भगवान को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रूप में अवतरित न होना पड़ता।सभी जानते हैं कि रावण ब्राह्मण होने के साथ ही प्रकांड विद्वान एवं भगवान शिव का भक्त था लेकिन यह भी सही है कि आसुरी प्रवृत्ति के कारण उसने आराध्य भोलेनाथ को भी नही बख्शा और उनकी भी पत्नी दुर्गा स्वरूपा को भी नहीं बख्शा और उनके ऊपर भी कुदृष्टि डालने से बाज नहीं आया।इसके बावजूद उसका अपना चरित्र था कि बहन के अपमान का बदला लेने के लिए उसने सीताजी को झांसा देकर उनका अपहरण तो किया लेकिन अपने राजमहल में नहीं ले गया बल्कि राजमहल से दूर बाग में महिला बंदी रक्षकों की देखभाल में रखा गया और अपने साथ शादी करने के लिए सोचने का एक माह का समय दिया गया।इतना ही नहीं इस दौरान वह जब भी अशोक वाटिका में उनके पास गया तो अकेले नहीं बल्कि अपनी पत्नी के साथ गया।रावण को तो भगवान के अवतरण का पता तभी चल गया था जबकि उसकी बहन सूपनखा की नाक कटने के उसका भाई खरदूषण बदला लेने उनके पास गया और मार डाला गया।वह जानता था कि उसके भाई को भगवान के अलावा कोई दूसरा युद्ध में मार नहीं सकता है।भगवान राम ने भले ही पराई नारी पर कुदृष्टि डालने वाले रावण को सजाये मौत दे दी हो लेकिन उसके मरने के बावजूद रावण मरा नहीं है और उसकी प्रवृत्ति वाले आज भी जिंदा है।समाज में व्याप्त कलियुगी रावण किसी भी शक्ति स्वरूपा नारी का अपहरण करने के बाद सोचने समझने का समय उसे नहीं देते हैं और न ही अपनी पत्नी के साथ उसके पास जाते हैं।कलियुगी रावण नारी को अपनी शारीरिक हवस ही नहीं बना रहे हैं बल्कि देवीस्वरूपा बच्चियों तक को नहीं छोड़ रहे हैं और मजबूरी का फायदा उठा रहें है।रावण तो राक्षसी पहनावे में था लेकिन कलियुगी रावण संत महात्माओं की वेशभूषा पहने रंगे सियार बने हुए हैं।दुनिया में फैले हिंसा के पुजारी आतंकी आजकल रावण के अत्याचार को पीछे छोड़ चुके हैं और कलियुगी रावण रूपी आतंकी अपने राक्षसराज का विस्तार करने के लिए महिलाओं का अपहरण ही नहीं कर रहे हैं बल्कि बेगुनाहों का कत्लेआम भी कर रहे हैं।रावण का राक्षसी स्वरूप आज  आतंकियों ने धारण कर लिया है और रावण की तरह बेलगाम हो गये हैं।देश के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री ने रावण पर बाण चलाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब कलियुगी रावणों के अंत का समय आ गया है।उस समय भी रावण के समर्थक थे और आज भी कलियुगी रावण रूपी आतंकियों के भी समर्थक हैं जो उन्हें सरंक्षण एवं बढ़ावा दे रहे हैं।धरती पर अपहरण, अत्याचार, पापाचार, दुराचार, शील एवं चीरहरण हो रहे हैं तथा धर्म का नाश हो रहा है।आज का रावण त्रेतायुग वाले रावण से आगे हैं जिनका सर्वनाश होना जरूरी हो गया है।हम भगवान से विनती करते हैं कि इन कलियुगी रावण रूपी राक्षसों का विनाश करने के लिए एक बार पुनः धरती पर अवतरित हो।धन्यवाद।। सुप्रभात/वंदेमातरम/गुडमार्निंग/नमस्कार/अदाब/शुभकामनाएं।। ऊँ भूर्भुव स्वः----/ऊँ नमः शिवाय।।। 

भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी।
07:16

भगवान उनके भक्त और प्रेम




संपादकीय
के सी शर्मा
एक गांव में भोली-भाली गरीब लड़की पंजिरी रहती थी। वह भगवान मदनमोहन जी की अनन्य भक्त थी। भगवान मदनमोहन भी उससे बहुत प्रसन्न रहते थे।वे उसे स्वप्न में दर्शन देते और उससे कभी कुछ खाने को माँगते, कभी कुछ।
वह दूसरे दिन ही उन्हें वह चीज भेंट कर आती, पर वह उनकी दूध की सेवा नित्य करती। वह रोज उनके दर्शन करने जाती और दूध दे आती।सबसे पहले उनके लिए प्रसाद निकालती।
दूध वह नगर में दूसरे लोगों को भी देती। लेकिन मदनमोहन जी को दूध अपनी ओर से देती।उसके पैसे न लेती।

इस प्रकार वह दूध बेच कर अपनी जीवन नैय्या चलाती थी। लेकिन वह गरीब पंजिरी को चढ़ावे के बाद बचे दूध से इतने पैसे मिलते कि दो वक्त का खाना भी खा पाये।

अतः मंदिर जाते समय पास की नदी से थोड़ा सा जल  दूध में सहज रुप से मिला लेती । फिर लौटकर अपने प्रभु की आराधना में मस्त बाकी समय अपनी कुटिया में बाल गोपाल के भजन कीर्तन करके बिताती।

कृष्ण कन्हैया तो अपने भक्तों की टोह में रहते ही हैं ,नित नए रुप में प्रकट होते,कभी प्रत्यक्ष में और वह पंजिरी संसार की सबसे धनी स्त्री हो जाती।

लेकिन एक दिन उसके सुंदर जीवन क्रम में रोड़ा आ गया। दूध में जल के साथ-साथ एक छोटी मछली दूध में आ गई और संयोगवश वह मदनमोहन जी के चढ़ावे में चली गई।

दूध डालते समय मंदिर के गोसाई की दृष्टि पड़ गई। गोसाईं जी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने दूध वापस कर पंजिरी को खूब डांटा फटकारा और मंदिर में उस का प्रवेश निषेध कर दिया।

पंजिरी पर तो आसमान टूट पड़ा ।रोती-बिलखती घर पहुंची-" ठाकुर मुझसे बड़ा अपराध हो गया ।क्षमा करो ,पानी तो रोज मिलाती हूं ,तुमसे कहां छिपा है ।ना मिलाओ तो गुजारा कैसे हो।

लेकिन, प्रभु आज तक तो तुमने कोई आपत्ति कि नहीं प्रेम से पीते रहे ,हां मेरा दोष था कि पानी छानकर नहीं मिलाया । लेकिन दुख इसलिए है कि तुम्हारे मंदिर के गोसाई ने पानी मिलाने पर मुझे इतनी खरी खोटी सुनाई और तुम कुछ ना बोले।

ठाकुर अगर यही मेरा अपराध है तो में प्रतिज्ञा करती हूं कि ऐसा काम आगे ना करूंगी और अगर रूठे रहोगे, मेरा चढ़ावा स्वीकार न करोगे तो मैं यहीं प्राण त्याग दूंगी।

तभी पंजिरी के कानों में एक मधुर कंठ सुनाई दिया-"माई ओ माई ।उठी दरवाजे पर देखा तो द्वार पर एक सुदर्शन किंतु थका-हारा भूखा-प्यासा एक युवक कुटिया में झांक रहा है।

"कौन हो बालक"

 मैया बृजवासी हूं मदन मोहन के दर्शन करने आया था। बड़ी भूख लगी है कुछ खाने का मिल जाए और रात भर सोने की जगह दे दो तो बड़ा आभारी रहूंगा।"

पंजिरी के शरीर में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। "कोई पूछने की बात है बेटा, घर तुम्हारा है। ना जाने तुम कौन हो जिसने आते ही मेरे जीवन में ऐसा जादू बिखेर दिया।दूर से आए हो क्या भोजन करोगे।"

"दूध के सिवा कुछ लेता नहीं ।तनिक दूध दे दो वही पी कर सो जाऊंगा।" दूध की बात सुनते ही पंजिरी की आंखें डबडबा आयी, फिर अपने आप को संभालते हुए बोली-
"पुत्र दूध तो है पर सवेरे का बासी है, जरा ठहरो अभी गाय को सेहला कर थोड़ा ताजा दूध दूह लेती हूं।"

"अरे मैया नहीं नहीं ।उसमें समय लगेगा। सवेरे का भूखा प्यासा हूं दूध का नाम लेकर तूने मुझे अधीर बना दिया ।अरे वही सुबह का दे दो, तुम बाद में दूहते रहना।"

डबडबायीआंखों से बोली" थोडा पानी मिला हुआ दूध है, पर उसमें मछली आ गई थी।" "अरे मैया तुम मुझे भूखा मारोगी क्या? जल्दी से कच्चा दूध छान कर ऐसे ही दे दो वरना मैं यही दम तोड़ दूंगा।"

पंजिरी को आश्चर्य हुआ कि कैसी बात कर बैठा यह युवक,दौड़ी-दौड़ी गई झटपट दूध दे दिया। इधर दूध पीकर युवक का चेहरा खिल उठा।                       

"मैया कितना स्वादिष्ट दूध है। तू तो यूं ही ना जाने क्या-क्या कह रही थी ,अब तो मेरी आंखों में नींद उतर आई है इतना कहकर युवक वही सो गया।

पंजिरी अकेली हो गई है तो दिन भर की कांति, दुख और अवसाद ने उसे फिर घेर लिया।जाड़े के दिन थे ,भूखे पेट उसकी आंखों में नींद कहां।

जाडा़ बढ़ने लगा तो अपनी ओढ़नी बालक को ओढा दी।
रात के अंतिम प्रहर जो आंख लगी कि कृष्ण कन्हैया को सामने खड़ा पाया।

मदन मोहन भगवान ने आज फिर से स्वप्न मे दर्शन दिए और बोले,"यह क्या मैया, मुझे को मारेगी क्या?

गोसाई की बात का बुरा मान कर रूठ गयी। खुद पेट में अन्न का एक दाना तक न डाला और मुझे दूध पीने का कह रही हो।

मैंने तो आज तुम्हारे घर आकर दूध पी लिया अब तू भी अपना व्रत तोड़ कर के कुछ खा पी ले और देख दूध की प्रतीक्षा में व्याकुल रहता हूं, उसी से मुक्ति मिलती है। अपना नियम कभी मत तोड़ना।

गोसाईं भी अब तेरे को कुछ ना कहेंगे। दूध में पानी मिलाती हो, तो, क्या हुआ?वह तो जल्दी हज़म हो जाता है।अब उठो और भोजन करो। पंजिरी हड़बड़ाकर के उठी देखा बालक तो कुटिया में कहीं नहीं था।

सचमुच भेस बदल कर कृष्ण कन्हैया ही कुटिया में पधारे थे। पंजिरी का रोम-रोम हर्षोल्लास का सागर बन गया। झटपट दो टिक्कड़ बनाए और मदन मोहन को भोग लगाकर के साथ आनंदपूर्वक खाने लगी। उसकी आंखों से अश्रुधारा बह रही थी।

थोड़ी देर में सवेरा हो गया पंजिरी ने देखा कि कृष्ण कन्हैया उसकी ओढ़नी ले गये हैं और अपना पीतांबर कुटिया में ही छोड़ गए हैं।

इधर मंदिर के पट खुलते ही पुजारी ने मदन मोहनजी को देखा तो पाया की प्रभु फटी ओढ़नी ओडे़ आनंद के सागर में डूबे हैं। पुजारी समझ गये कि  प्रभु तुमने अवश्य फिर कोई लीला की है, लेकिन इसका रहस्य मेरी समझ में नहीं आ रहा है।

लीलाउद्घाटन के लिए पंजिरी मंदिर के द्वार पर पहूंची। खड़ी होकर पुजारी जी से कह रही थी,"गुसाई महाराज देखो तो प्रभु की लीला और माया,पीतांबर मेरे घर छोड़ आये  है और मेरी फटी ओढ़नी ले आये।

कल सवेरे आपने मुझे भगा दिया था ,लेकिन भूखा प्यासा मेरा कन्हैया दूध के लिये घर आ गया।"

पुजारी देवी के सामने बैठ गए। "भक्त और भगवान के बीच मेंने क्या कर डाला ,भक्ति बंधन को ठेस पहुंचा कर मैंने कितना बड़ा अपराध कर डाला देवी मुझे क्षमा कर दो "पंजिरी के चरणों में रो-रो कर कह रहे थे पुजारी।

लेकिन उनका भक्ति सागर था जो भक्त में भगवान के दर्शन पाकर निर्बाध बह चला था।पंजिरी भी क्या कम भावावेश मे थी ।आनंद भक्ति के सागर मे हिलोरे लेती हुई कह रही थी।

"गुसाई जी देखी तुमने बाल गोपाल की चतुराई अपना पीतांबर मेरी कुटिया मे जानबूझकर छोड मेरी फटी-चिथड़ी ओढ़नी उठा लाये।लो भक्तों को सम्मान देना तो की पुरानी इनकी पुरानी आदत है।"

मूर्ति में विराजमान कन्हैया धीरे-धीरे मुस्कुरा कर कह रहे थे अरे मैया तू क्या जाने कि तेरे प्रेम से भरी ओढ़नी ओड़ने में जो सुख है वो पीतांबर में कहां!!

Tuesday, 8 October 2019

13:15

कलयुग में रावण बनना भी कहा आसान है -के सी शर्मा


के सी शर्मा की रिपोर्ट
रावण जानता था, कि श्री राम ने लंका पर विजय हेतु रामेश्वरम की स्थापना हेतु उन्हें बुलाया है, पर उसने अपना ब्राह्मण धर्म निभाया और स्वयम रामेश्वरम महादेव की स्थापना करवाई।
इतना निर्विकार, इतना साहसी रावण ही हो सकता था, जो तमोगुण की  समाप्ति  के लिए स्वयम प्रभु श्री राम से वैर ले लिया।
 यदि रावण में श्री राम की पत्नी के अपहरण का दुस्साहस था, तो बिना सहमति माता सीता को नजर उठाकर भी ना देखने का संयम और साहस भी,,,, यद्यपि हम सभी जानते हैं, यह सब केवल रावण ने अपने मोक्ष के लिए किया था।।।।।
आश्चर्यजनक यह है कि 2 -2 साल की अबोध मासूम बच्चियों पर भी गिद्ध दृष्टि रखने वाले लोग भी जब दशहरे की बधाई देते हैं, तब क्या वह स्वयं के अंतर को थूंकते नहीं,,,, अरे धिक्कार है कायरों !!!
 चौदह वर्ष तक लंका में पवित्रता की प्रतिमूर्ति बनी रही माता सीता की अग्नि परीक्षा स्वयम मर्यादा पुरुषोत्तम ने ली,,,,,," कोई अपने बहन के सम्मान के लिए भगवान से भिंड गया और किसी ने परपुरुष के आक्षेप पर, अपनी अग्नि परीक्षा देकर स्वयम शुद्ध साबित करने वाली सती एवं गर्भवती  सीता को घनघोर जंगल में धोखे से अनुज द्वारा अकेले छुड़वा दिया,,,,,।"
और आज तक जलाया रावण को जाता है।
तो *विजयादशमी की बधाई वही दे जिसने अपने अंतर्मन के रावण का दहन कर लिया हो,,अन्यथा रावण के चरित्र को कलंकित ना करे ।

Monday, 7 October 2019

07:53

मौसमी संधिकाल वाली नवरात्रि और आसुरी शक्तियों की विनाशक जगत जननी परम शक्ति के नव स्वरूपों पर विशेष







✒सुप्रभात- सम्पादकीय✒

साथियों,
   सभी जानते हैं कि नवरात्रि का पावन पर्व वर्ष में दो बार ऋतु परिवर्तन की वेला पर आता है।ऋतु परिवर्तन के अवसर पर अन्न का त्याग स्वास्थ्य के लिए हितकर माना गया है इसीलिये नौ दिनों तक अन्न का त्याग कर चित्त मन एवं पेट की अग्नि को शांत किया जाता है।सभी जानते है कि अपने यहाँ मुख्य रूप से तीन मौसम जाड़ा गर्मी एवं बरसात के होते हैं जिसमें मौसम का बदलाव होता है।गर्मी एवं बरसात के बाद जाड़े के मौसम की शुरुआत शारदीय नवरात्रि से होती है और जाड़े के बाद गर्मी के मौसम का शुभारंभ चैत्रीय नवरात्रि के साथ होता है।इसीलिए दोनों नवरात्रों को संधिकाल भी कहा जाता है और यह नवरात्रि मौसमों में संधि कराकर स्वास्थ्य की रक्षा करती है।वैसे नवरात्रि महाशक्ति परमशक्ति जगत जननी के विशेष दिन माने जाते हैं और नवरात्रि के नौ दिनों में उनके नौ स्वरूपों की अलग अलग विशेष पूजा की जाती है।इतना ही नहीं इस पवित्र मौके पर तरह तरह के विशेष अनुष्ठान करके उन्हें प्रसन्न कर खुश करके मनोवांछित कामना की पूर्ति की जाती है।नवरात्रि के दौरान जगत जननी के शौर्य का गाथा देवी कथा या देवी भागवत के रूप में की जाती है।आज नवरात्रि का अंतिम दिन है और आज ईश्वर स्वरूपा आदि शक्ति परमशक्ति को विदाई कन्याभोज एवं हवन के साथ कर रहे हैं।नवरात्रि के अंतिम दिन सबसे पहले हम अपने पाठकों को नवरात्रि एवं विजयदशमी की शुभकामनाएं देते हुए सभी की कुशलता की कामना माँ के नवें स्वरूप सिद्धिदात्री माता से कर रहे हैं।हमारे यहाँ नारी को मनुष्य की अर्द्धगिनी कहा जाता है और भगवान सदाशिव भोलेनाथ को अर्द्धनारीश्वर कहा जाता है।नारी को शक्तिस्वरूपा माना जाता है और बिना शक्ति के मनुष्य शक्ति विहीन होता है।भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम राम को रावण का वध करने के लिये इसी शक्ति का सहारा लेना पड़ा और इसी शारदीय नवरात्रि की भोर उसे मारने में सफल हो सके जबकि चैतीय नवरात्रि के अंतिम दिन वह असुरों के विनाश के लिए अयोध्या में अवतरित हुए थे। हमारी मान्यता है कि परमपिता परमात्मा ने अपना साकार रूप नारीस्वरूपा महादेवी के रूप में धारण किया था। हमारी मान्यता है कि जब जब इस धरती पर आसुरी शक्तियां उत्पात कर धर्म का विनाश करने लगती हैं तब तब जगत जननी इस धराधाम पर आकर उनका सर्वनाश करती हैं। यही कारण है कि विभिन्न युगों में जगत जननी विभिन्न स्वरूपों को धारण करके आसुरी शक्तियों का विनाश करने के लिए अवतरित हो चुकी हैं।कलियुग में आसुरी शक्तियां अपने चरम पर पहुंच गई और गली गली चंड मुंड  रक्तबीज महिषासुर आदि घूम रहे हैं और नारी शक्ति को अपमानित ही नही कर रहे हैं बल्कि उनकी जान एवं इज्ज़त के दुश्मन बने हुए हैं।कुछ आसुरी प्रवृत्ति के लोग आतंकी स्वरूप धारण किये हुये हैं और नारी की इज्ज़त मान मर्यादा ही नहीं बल्कि बेगुनाहों का कत्लेआम कर रहे हैं।बच्चियों की हत्या गर्भ में होने लगी है और साधु संत का रूप बनाकर नारियों का शोषण हो रहा है।नारी अत्याचार से धरती कांपने लगी है एवं धर्म का ह्रास होने लगा है।हम नवरात्रि के समापन अवसर पर जगत जननी से विनती करते हैं कि वह कलियुगी चंड मुण्डों का विनाश करने के लिए एक बार पुनः अवतरित होकर विश्व की नारियों एवं धर्म परायण अपने भक्तों की रक्षा करें।धन्यवाद।।सुप्रभात/वंदेमातरम/गुडमार्निंग/नमस्कार/अदाब/शुभकामनाएं।।ऊँ भूर्भुवः स्वः-----/ऊँ नमः शिवाय।।।

भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी।

Sunday, 6 October 2019

09:30

हमारी पुरानी पंचायत व्यवस्था में है बड़े स्तर पर बदलाव की जरूरत-के सी शर्मा



के सी शर्मा
अगर ध्यान दिया जाये तो सबसे ज्यादा घोटाला ग्राम पंचायतों में किया जाता है।
 जिसमे किसी भी कार्य को सही तरह से क्रियान्वित नहीं किया जाता है वैसे तो राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों के द्वारा बहुत सारी लाभकारी योजनाएं संचालित की जा रहीं हैं, लेकिन ग्रामीण स्तर तक पहुंचने पर उसको निगल लिया जाता है। प्रायः देखने में आता है ग्रामपंचायतो के प्रधान और सचिव उसको निगल जाते है। चाहे वह सौचालय हो और चाहे वह प्रधानमंत्री आवास योजना, सबमें उनकी कमीशन होती है नहीं तो इसका लाभ उस व्यक्ति को नहीं दिया जाता जो मोटी रकम देने से मना कर देता है।

 वेचारे गरीब का भगवान भी नहीं होता ये सुना था लेकिन इन सब को देखकर इसका एहसास होना भी लाजमी है, वही सरकार द्वारा सीधे खाते में पैसे डालने पर भी कई मार्ग खोज लिए गए है जिसमे  जेसीबी मशीन द्वारा कार्य करा लिया जाता है और अपने आपसी लोंगो के खाते में मस्टर्ड रोल चढ़ाकर पैसे खींच लिए जाते है।
 जिसमे मुख्य भूमिका सचिव निभाते है सचिवों का ना कभी पेट भरा है और ना कभी भरेगा पूरे मास्टर माइंड तो यही होते है कि किस प्रकार हमें पैसे कमाने है।
 पंचायतों में जाना तो इनके लिए बड़ी कष्ट की बात होती है।
  जिसका काम हो वो इन्हे खुद ढूंढे ,और सही भी है कहते है कि ढूंढने पर भगवान भी मिल जाते है फिर तो ये सचिव हैं पूरी व्यवस्थाएं चौपट कर दी है।

 ये जनता के सेवक है कि भक्षक है अनुमान लगाना मुश्किल है। पंचायतों के कार्यालय शायद ही 5 सालों में 5 बार खुल जाए और घोटाला तो इतना कि अगर इनका लेखा जोखा देखा जाये तो करोङो में निकलना निश्चित है इसका कारण भी कही ना कहीं अधिकारियों की लापरवाही है जो इन पर शख्ती की वजाय इनको फ्री रखते हैं कहीं ना कहीं अब लगाम लगना आवश्यक है।

वीते महीने उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के दुद्धी विधान सभा के विधायक हरिराम चेरो में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ से मिलकर लिखित शिकायत की ग्राम पंचायतों में 50% की कमीशन खोरी चल रही है। उन्होंने किसका कितना प्रतिशत हिस्सा है का सिलसिलेवार उल्लेख कर 50% का आंकड़ा पेस कर पूरे राज्य के पंचायत महकमे हड़कम्प मचा दिया था।
पता चला है कि मुख्यमंत्री जी ने इसका सज्ञान लिया और इसकी गहराई से जांच कराने का आदेश दे दिया है।जिससे पंचायत महकमे में खलबली मच गई है।कईयों को कहते है जेल जाने का भी डर सताने लगा है।
कई कई ग्राम पंचायते तो ऐसी है जहाँ शौचालय, आवास बना ही नही है लेकिन धन निकलवा के डकार लिया गया है।पानी संचय योजना में तलाबों के गहरीकरण और निर्माण का काम कागजो पर ही होगया ।मस्टररोल भर कर पैसा डकार लिए।पौध रोपण,का यही हाल है कही पौधा लगा ही नही, प्रधान मंत्री के स्वच्छता अभियान को तो ग्राम पंचायते इस तरह पलीता लगा रही है कि साल साल भर बीत जा रहे है, सफाई कर्मियों का अतापता तक नही है।नालियां गंदगी से दुर्गंध फेंकती हुई ,बीमारियों को जन्म देरही है, डेंगू, मलेरिया का कहर जारी है ,लेकिन इनकी सुधि लेने की फुर्सत ग्राम पंचायतों को नही है।ग्राम पंचायतो में चारो तरफ भ्र्ष्टाचार का बोल बाला है।किसी भी तरह विकास का कार्य हो सब के सब भ्र्ष्टाचार की भेंट चढ़ जा रहा है।
इसीलिए तो स्वच्छ भारत सपनों में ही संभव है, यथार्थ में नहीं?

Saturday, 5 October 2019

07:30

जब हो गई बचपन की यादें ताजा -के सी शर्मा







 हुआ ज़माना आता नहीं दोबारा हाफिज़ खुदा तुम्हारा "
       दिल तो बच्चा है जी  ।
        थोड़ा कच्चा है जी  ।।
बचपन की यादें जो अक्सर हमको याद आती है ,आज मेरे पास 80 साल के बुज़ुर्ग मुझसे मिलने आए , ऐसा लग रहा था एक छोटा सा मासूम बच्चा मुझसे मिलने आया हो , जब उन्होंने अपनी यादों का पिटारा खोलना शुरू करा ,तो उनका चेहरा देखने लायक था ,उनकी खुशी आंखों से झलक रही थी ,कुछ देर के लिए वह अपनी उम्र को भूल गए थे और अपने बचपन के किस्से और शरारतें सुनाने में इतने मग्न हो गए थे , ऐसा लग रहा था वह  75 साल पीछे पहुंच गए हो ,उनकी बातों से मुझे भी एहसास हुआ कितने अच्छे दिन हुआ करते थे बचपन के ।
 मैं उनकी बातों से मैं भी भूल गया कि , मेरी उम्र भी 60 साल की हो गई है , उनकी बातों में इतना जोश था और किस्से सुनाते सुनाते ज़ोर ज़ोर से हंसते और तालियां बच्चों की तरह बजाते रहे , ऐसी होती है बचपन  की यादें ।
 मेरे मन में विचार आया क्यों ना , मैं भी अपने बीते हुआ बचपन के बारे में कुछ लिखूं , क्या दिन हुआ करते थे बचपन के छोटी-छोटी बातों में खुश हो जाना और छोटी-छोटी बातों में नाराज़ होकर अलमारी में छुप जाना, शाम को दोस्तों के साथ साइकिल चलाना एक साइकिल और पूरे मोहल्ले के बच्चे जिसकी साइकिल होती थी, वह किसी महाराजा से कम नहीं होता था ,उस दिन उसकी जिससे ज्यादा दोस्ती होती थी ,उसको साइकिल चलाने का मौका मिलता था , और बाकी बच्चे साइकिल के पीछे पीछे भागते रहते थे ,अगर घरवाले ₹1 या ₹2 देते थे ,फिर दोस्तों के साथ टॉफी की पार्टी चालू हो जाती थी ,संतरे की गोली , गटागट की गोली अगर दोस्त ज्यादा होते थे और गोलियां कम दांत से काट काट कर आधी आधी गोली सब में बट जाती थी कभी गिल्ली डंडा , कभी कबड्डी बेशर्म पेड़ की लकड़ी जिसको बचपन में हम खपोटा कहते थे खपोटा वो होता है जो हॉकी स्टिक की तरह मुड़ा हुआ होता है, उस खपोटे से हॉकी खेलना, यह था बचपन हमारा ।
होली  ,गणेश चतुर्थी ,  ईद सब बच्चे मिलकर यह त्यौहार मनाते थे ,होली पर होली दहन के लिए लकड़ी की जुगाड़ ,गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की स्थापना में सब लोग लगे रहते थे ,और ईद पर घर की साफ सफाई में सब बच्चे जुट जाते थे ।जब हमारे मन में धर्म की कट्टरता जैसी कोई चीज़ नहीं होती थी , दशहरे दिवाली की छुट्टियां आती थी ,तो लगता था जैसे सारे जहां की खुशियां मिल गई हो , ऐसा लगता था, यह छुट्टियां केवल 1 महीने के लिए क्यों आती है ,कुछ दिन और बढ़ जाए छुट्टियां । छुट्टियों में रोज़ रात को रामलीला देखने का प्रोग्राम और दोस्तों के लिए जगह रोकना टाट पट्टी बिछाकर दोस्तों का इंतजार करना । जब छुट्टियां खत्म होने वाली होती थी , दिल में डर बैठ जाता था, स्कूल खुलने वाले हैं , छुट्टियों का होमवर्क तो अभी शुरू ही नहीं करा ,सब दोस्त मिलकर जिसका होमवर्क पूरा नहीं होता था ,उसका होमवर्क करवाने में जूट जाते थे ।
कहां गया यह बचपन , इस दौर के बच्चे का बचपन खो  गया ,इस समय के बच्चे खपोटे से हॉकी नहीं खेलते ,वह  महंगे मोबाइल लैपटॉप और कंप्यूटर से खेलते हैं यह बच्चे संतरे और गटागट की गोली नहीं खाते ,यह बच्चे पिज़्ज़ा बर्गर और इंपोर्टेड चॉकलेट्स खाते हैं ।
बचपन कहीं खो गया है ,यारों आओ बचपन ढूंढ वाओ ।
पुलिस में इसकी रपट लिख वाओ
झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम ।
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम।

Friday, 4 October 2019

07:02

इस बार पुतलों के बाजार में रावण का कद भी हुआ छोटा





                    संपादकीय 

इस बार पुतलों के बाजार में रावण का कद भी  हुआ छोटा
 में सुस्ती की मार से ‘रावण' भी बच नहीं पाया है। इस बार पुतलों के बाजार में ‘रावण' का कद और छोटा हो गया है। राजधानी के पश्चिम दिल्ली के तातारपुर गांव के पुतला बनाने वाले कारीगरों को दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है। इन कारीगरों का कहना है कि अर्थव्यवस्था सुस्त है, साथ ही पुतला बनाने वाली सामग्रियों के दाम काफी चढ़ चुके हैं। ऐसे में हमें पुतलों का आकार काफी छोटा करना पड़ा है। तातारपुर पुतलों का प्रमुख बाजार है, लेकिन इस साल यहां कुछ ही स्थानों पर पुतले बनाए जा रहे हैं। यहां के कारीगरों को सुभाष नगर के बेरी वाला बाग में जगह दी गई है।
इसके अलावा राजा गार्डन फ्लाईओवर से लेकर सुभाष नगर, राजौरी गार्डन और रघुबीर नगर इलाकों में कारीगर दिन रात पुतलों की साज-सज्जा में जुटे हैं। दशहरा से करीब 45 दिन पहले आसपास के राज्यों के कारीगर पुतला बनाने वाले बड़े ‘दुकानदारों' के पास आ जाते हैं। पुतला बनाने वालों में दिल्ली के अलावा हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक तक के कारीगर शामिल हैं। पिछले 25 साल से पुतला बना रहे महेंद्र कहते हैं, अर्थव्यवस्था में सुस्ती है। अन्य क्षेत्रों की तरह इसका असर पुतलों के कारोबार पर भी पड़ा है। इस वजह से हमें पुतलों का आकार कम करना पड़ा है क्योंकि पुतला जितना बड़ा होगा, लागत भी उतनी ही अधिक होगी और दाम भी उसी हिसाब से बढ़ जाएगा।
मंहगी हुई पुतले बनाने की सामग्री
महेंद्र ने कहा कि पुतला बनाने की सामग्री भी काफी महंगी हो चुकी है। 20 बांस की कौड़ी का दाम 1,200-1,300 रुपए हो गया है जो पिछले साल तक 1,000 रुपए था। पुतला बांधने में काम आने वाली तार भी 50 रुपए किलो के बजाए 150 रुपए में मिल रही है। कागज का दाम तो लगभग दोगुना हो गया है। तीस साल से अधिक समय से पुतला बनाने के कारोबार से जुड़े सुभाष ने कहा कि कभी तातारपुर का रावण विदेश भी भेजा जाता था। यहां से रावण के पुतले विशेष रूप से आस्ट्रेलिया तक भेजे जाते थे, लेकिन अब विदेशों से मांग नहीं आती है।
कुम्भकर्ण और मेघनाद के कद्रदान घटे
हरियाणा के करनाल से यहां आकर पुतला बनाने वाले संजय ने कहा कि कभी तातारपुर और आसपास के इलाकों में 60-70 फुट तक के भी पुतले बनाए जाते थे, लेकिन अब दाम चढ़ने और जगह की कमी की वजह से आयोजक छोटे पुतलों की मांग करने लगे हैं। संजय कहते हैं कि आज रावण के पुतलों की तो मांग है, लेकिन कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतलों के कद्रदान कम ही हैं। ग्राहक द्वारा कुंभकर्ण या मेघनाद का पुतला मांगने पर पुतले का रंग बदल दिया जाता है या मूंछें छोटी कर दी जाती हैं।
40 फुट का रावण 20 हजार में
टैगोर गार्डन मेट्रो स्टेशन के नीचे पुतले बनाने में जुटे राजू ने कहा कि तातारपुर और आसपास 40 फुट तक के ही पुतले बनाए जा रहे हैं। इस बार 40 फुट के पुतले का दाम 17,000 से 20,000 रुपए तक पहुंच गया है। पिछले साल तक यह 12,000-13,000 रुपए था। हालांकि, राजू ने कहा कि पुतलों का दाम ग्राहक देखकर तय किया जाता है।
हर साल घट रहा रावण का कद
मध्य प्रदेश के एक कारीगर गोकुल ने कहा कि इस बार बच्चों के लिए विशेष रूप से पांच से दस फुट के पुतले बनाए जा रहे हैं।'' गोकुल ने बताया कि बच्चों के लिए बनाए जा रहे पांच से दस फुट के ‘छोटे रावण' का दाम 1,500 से 4,000 रुपए तक है। पुतले बनाने वाले बड़े हर बड़े दुकानदार के पास 20 से 30 लोग काम करते हैं। तातारपुर और आसपास के इलाकों से पुतले हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब तक भेजे जाते हैं। इस समय तातारपुर और आसपास के इलाकों में 500 से अधिक पुतले बनाए जा रहे हैं, जबकि कभी अकेले तातारपुर में ही 1,000 से अधिक पुतले बनाए जाते थे। इनकी मांग हर साल लगातार घट रही है और आकार भी छोटा हो जा रहा है।

विशेष लेख के सी शर्मा की कलम से
06:45

विवाह में आने वाली सभी बाधाएं दूर करती हैं मां कात्यायनी जाने इनकी पूजन विधि





 कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं ! दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है !
माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना के द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है ! वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है !

“ सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके !
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते !!

“ चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना !
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी !! “

 माँ कात्यायनी की पूजा विधि :-

जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन माँ कात्यायनी जी की सभी प्रकारसे विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने
हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए ! माँ कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं ! इनकी पूजा के पश्चात देवी  कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है ! पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूललेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है !

माँ कात्यायनी की पूजा करने के लिए विशेष मंत्र  का जाप करें:-

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम !!
भगवती मां कात्यायनी का ध्यान, स्तोत्र व कवच के जाप करने से आज्ञाचक्र जाग्रत होता है ! और इससे रोग, शोक, संताप, भय, विध्न बाधा  से मुक्ति मिलती है •••••• !!!

 देवी कात्यायनी के मंत्र :-

चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना !
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी !!

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!

 माता कात्यायनी की ध्यान :-

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम् !
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम् !!

स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम् !
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि !!

पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम् !
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम् !!

प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम् !
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम !!


 माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ :-

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां !
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते !!

पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां !
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते !!

परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा !
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते !!

देवी कात्यायनी की कवच :-

कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी !
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी !!

कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी !!

नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाता हैं !

देवी कात्यायनी की कात्यायनी कथा :-

देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ॠषि हुए तथा उनके पुत्र ॠषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ॠषि कात्यायन उत्पन्न हुए थे ! देवी कात्यायनी जी देवताओं, ऋषियों के संकटों कोदूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न होती हैं ! महर्षि कात्यायन जी ने देवी पालन पोषण किया था ! जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ॠषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या, पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं ! महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें ! देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनोंतक कात्यायन ॠषि ने इनकी पूजा की, दशमी को देवी ने महिषासुर का वध किया ओर देवों को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया !

माँ कात्यायनी की कृपा सभी पर बनी रहे

के सी शर्मा