वाममोर्चा अकेला चलो की राह पर विपक्षी महागठबंधन में छप्पन छुरी 72 पेज



के सी शर्मा
एक तरफ बीजेपी का धमाका पर धमाका. दूसरी तरफ विपक्षी महागठबंधन में 56 छुरी और 72 पेंच बरकरार. विपक्षी दलों के दिल नहीं मिल रहे. महागठबंधन के अकार लेने में शीट शेयरिंग बड़ा पेंच है. वजह यह भी है कि लोकसभा चुनाव में महागठबंधन का कारगर परिणाम नहीं आ पाया था. जेएमएम और कांग्रेस को एक-एक सीट ही मिल पाई थी. दूसरी वजह यह है कि जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी को अपना बड़ा भाई मानते हैं, वहीं कांग्रेस हेमंत सोरेन को अपना नेता मान चुकी है. ऐसे में बाबूलाल मरांडी के लिए हेमंत को अपना नेता मानने में कुछ असहज सी बात होगी.

*झामुमो और कांग्रेस के लिए गठबंधन है मजबूरी*



झामुमो और कांग्रेस के लिए गठबंधन मजबूरी भी है. अगर झामुमो और कांग्रेस अकेले मैदान में उतरी तो मुश्किल हो सकता है. क्योंकि दोनों दलों को सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारना मुश्किल होगा. वहीं बाबूलाल मरांडी के पास भी उम्मीदवार नहीं है. ऐसे में ये तीनों दलों बीजेपी में बगावत के इंतजार में हैं. जेएमएम और कांग्रेस के जिन विधायकों ने भाजपा का दामन थामा है, वे टिकट मिलने की गारंटी के साथ बीजेपी में गये हैं. ऐसे में भाजपा में भी बगावत होने की संभावना है. पहले से टिकट की आस लगाए पार्टी में काम करने वाले नेताओं के दूसरे दलों में जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

*शीट शेयरिंग पर ऐसे फंस सकता है पेंच*


झामुमो 40 सीट पर अपना दावा ठोक रहा है. साथ ही झामुमो अपनी शर्तों के अधार पर गठबंधन चाहता है. कांग्रेस 25 से 30 सीट पर चुनाव लड़ना चाह रही है. ऐसे में झाविमो, राजद और वामदलों के बीच शीट शेयरिंग परेशानी का सबब बन सकता है. वहीं वामदलों ने भी स्पष्ट कर दिया है कि अगर महागठबंधन आकार नहीं ले पाता है तो 50 सीटों पर चुनाव लड़ेगा. वजह यह है कि पिछले लोकसभा में वामदलों को दरकिनार कर दिया गया था. ऐसे में वाम दल के पास एकला चलो ही एकमात्र विकल्प है.

क्या है कांग्रेस की परेशानी

कार्यकर्ता बिखर गये हैं. कई नीचे स्तर के कार्यकर्ता दूसरे दलों के लिए काम करने लगे हैं. चुनाव के समय टिकट का बंटवारा राष्ट्रीय स्तर पर होता है. जुगाड़ व्यवस्था ज्यादा है, जिसका नतीजा है कि पार्टी के पुराने लोगों का मोह भंग होता जा रहा है. पार्टी का राज्यस्तरीय आक्रामक तेवर कम दिख रहा है. बड़े कार्यक्रम का आयोजन लंबे समय तक नहीं होता है.

*भाजपा की सेंधमारी है झामुमो की सबसे बड़ी चिंता*



झामुमो के लिए स्थिति यह हो गयी है कि अगर एकला चला, तब निशाने पर तीर नहीं लग पायेगा. इसका भान झामुमो को भी है. झामुमो के लिए संथाल और कोल्हान गढ़ माना जाता है. संथाल में भाजपा की उपस्थिति उसकी परेशानी बढ़ा सकती है. लोकसभा चुनाव में भाजपा झामुमो के गढ़ में सेंधमारी कर चुकी है. झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को भी हार का समाना करना पड़ा. ऐसे में झामुमो अपनी बदलाव यात्रा से कैडर व लोगों को एकजुट करने में जुटा है.

*बिखराव है कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी*



कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है. संगठन की यह सबसे बड़ी कमजोरी है. लंबे समय से सत्ता से दूर रहने और गुटबाजी का नतीजा है कि धरातल पर पार्टी की ठोस गतिविधियां नहीं दिख रही. प्रदेश अध्यक्ष तक के चयन में केंद्रीय नेतृत्व की परमिशन जरूरी है. वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव के पास सभी को एकजुट करने की चुनौती है. पार्टी में तालमेल की कमी साफ नजर आ रही है. अलग-अलग गुट अपनी ही राग अलाप रहे हैं. जिसका उदाहरण समय-समय पर देखने को मिलता है

*राजद का घटता जनाधार राजद के लिए सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उसका जनाधार घट रहा है.*


 महिला, युवा, छात्र संगठन भी कमजोर हो चला है. यह राजद के लिए परेशानी का सबब हो सकता है. पलामू, देवघर और चतरा में राजद का जनाधार तो है, लेकिन बड़े नेता का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ है. राजद ने अब तक कोई बड़ा अभियान भी नहीं चलाया है. वहीं राजद भी गुटबाजी का शिकार हो गया है. गौतम सागर राणा ने अलग गुट बना लिया है.

*झाविमो के लिए है अग्नि परीक्षा झाविमो के लिए अग्नि परीक्षा होने वाली है.* 


उनके घर में जिस तरह से बातें सार्वजनिक हो रही है, उनके लिए परेशानी खड़ा कर सकती है. विधायक प्रकाश राम को राज्यसभा चुनाव के बाद किनारे कर दिया गया है. बावजूद इसके बाबूलाल मरांडी संगठन को खड़ा करने में अपनी पूरी ताकत झोंक चुके हैं. खुद बाबूलाल और प्रदीप यादव लोकसभा चुनाव हार गए. पार्टी के कद्दावर नेता बंधु तिर्की पर जांच की आंच है. ऐसे में संगठन को धार देना बाबूलाल के लिए बड़ी चुनौती होगी.

हाशिये पर जदयू का वजूद

झारखंड में जदयू का वजूद हाशिये पर है. तीर निशान वाली इस पार्टी का तीर कुंद हो गया है. झारखंड में पार्टी के चुनाव चिन्ह पर भी सवाल खड़ा हो गया है. सालखन मुर्मू पर झारखंड की जिम्मेवारी है. पार्टी के पदाधिकारी इसे पटरी पर लाने के लिए प्रयासरत है, पर राज्यस्तरीय चेहरा नहीं है. बिहार में एनडीए का अहम पार्टनर होने के बावजूद भाजपा की हिकारत का सामना कर रहा है. नतीजतन पार्टी को बचाने की कवायद है.