सरकार क्या बदली मानो पत्रकार के भाग्य फूटे




 इससे तो पिछली सरकार ही  अच्छी थी कम से कम  पत्रकारो के  परिवारों को सामने रोज़ी रोटी का तो संकट नहीं था सरकार बदलने के साथ ही हमारे बच्चों का नसीब भी बिगड़ गया।

  जनसंपर्क विभाग के चंद अधिकारी पता नहीं क्यों पत्रकारो से  खफा हो गए और सरकार  बदलने के सांथ ही उन्होंने पत्रकारों का पतन करना शुरू कर दिया आज हमारे बच्चे खाने पीने के  मोहताज है ।

 त्यौहार  करीब है और वह उदास मन और ललचाई हसरतें लेकर अपने पड़ोसी बच्चों को और उनके घरों में दीपावली को लेकर हो रही  तैयारियों को देख रहे हैं।
जब से सरकार बदली है तब से ही हमारे सामने रोटी रोजी का संकट खड़ा हो गया पहले तो  पिछले 10 माह में इस सरकार ने हमारे छोटे और मझौले साप्ताहिक मासिक पत्र पत्रिकाओ  को दिये जाने वाले विज्ञापनो पर डॉका डाला और जो थोड़ा बहुत विज्ञापन मिलने की आस थी वह भी खत्म कर दी।
 रही सही कसर उसने हमारे  पेमेंट रोक कर पूरी कर दी है ।हम किस के सामने हाथ
 फैलाये ।
सरकार  बनते ही विभाग के  चंद चतुर चालाक अधिकारियों ने सरकार को गुमराह करके हमारी दिवाली काली  करने की साजिश रचना शुरू कर दी थी पिछ्ले साल भी जन सम्पर्क विभाग ने पेमेन्ट न करके हमारी दीवाली काली की थी।
 इस वर्ष भी वही किया जा रहा है शायद उनकी मंशा छोटे और मझोले साप्ताहिक मासिक समाचार पत्र पात्रिकाओ को खत्म करने की है ।
 ज्ञात हो कि प्रदेश से लगभग साढे 10 हज़ार अखबार निकलते हैं जिसमें छोटे मझोले साप्ताहिक व मासिक पत्र  पत्रिकाऔ की संख्या सात हज़ार के लगभग है।
  एक परिवार में अगर 5 लोग माने तो 35000 तो सिर्फ अखबार वालों के परिवार के ही लोग हो गये उनसे सम्वध काम करने वाले लोगो की सख्या तीन से चार लाख लोगो की हो जाती है जो इस सरकार को चुन्ने का अपने आपकों अपराधी मान रहे है ।
लोगों की सामने आज रोटी रोज़ी  के संकट खड़ा हो गया  है पिछले 1 साल में इस सरकार ने  मात्र बीस से पच्चीस हजार के दो विज्ञापन जारी किये है जिन की राशि ₹25000 होती है इतना पैसा तो अखबारों को छपवाने में ही  खत्म कर दिया अब आगे क्या करें अखबार निकाले या बंद करके मोदी सरकार के नारे पर अमल करते हुए चाय और समोसे के ठेले लगाना शुरू कर दें ।

ऐसा नहीं है कि जनसंपर्क  विभाग या   सरकार के पास पैसा नहीं है बल्कि जो बजट है या जो पैसा सरकार के पास है वह जनसंपर्क विभाग के कुछ चुने हुए अधिकारी बड़े अखबारों और चैनल वालों में लुटा कर अपना कमीशन इकट्ठा करने में व्यस्त हैं छोटे अखबार वाले जिसको मामूली सी राशी  का विज्ञापन मिलता है वह  क्या कमीशन दे पायेगे ।

 जन सम्पर्क विभाग जानबूझ कर पत्रकारों को  सरकार का दुश्मन बनाने पर तुले हूए है।

एक पत्रकार की कलम से।