जब हो गई बचपन की यादें ताजा -के सी शर्मा







 हुआ ज़माना आता नहीं दोबारा हाफिज़ खुदा तुम्हारा "
       दिल तो बच्चा है जी  ।
        थोड़ा कच्चा है जी  ।।
बचपन की यादें जो अक्सर हमको याद आती है ,आज मेरे पास 80 साल के बुज़ुर्ग मुझसे मिलने आए , ऐसा लग रहा था एक छोटा सा मासूम बच्चा मुझसे मिलने आया हो , जब उन्होंने अपनी यादों का पिटारा खोलना शुरू करा ,तो उनका चेहरा देखने लायक था ,उनकी खुशी आंखों से झलक रही थी ,कुछ देर के लिए वह अपनी उम्र को भूल गए थे और अपने बचपन के किस्से और शरारतें सुनाने में इतने मग्न हो गए थे , ऐसा लग रहा था वह  75 साल पीछे पहुंच गए हो ,उनकी बातों से मुझे भी एहसास हुआ कितने अच्छे दिन हुआ करते थे बचपन के ।
 मैं उनकी बातों से मैं भी भूल गया कि , मेरी उम्र भी 60 साल की हो गई है , उनकी बातों में इतना जोश था और किस्से सुनाते सुनाते ज़ोर ज़ोर से हंसते और तालियां बच्चों की तरह बजाते रहे , ऐसी होती है बचपन  की यादें ।
 मेरे मन में विचार आया क्यों ना , मैं भी अपने बीते हुआ बचपन के बारे में कुछ लिखूं , क्या दिन हुआ करते थे बचपन के छोटी-छोटी बातों में खुश हो जाना और छोटी-छोटी बातों में नाराज़ होकर अलमारी में छुप जाना, शाम को दोस्तों के साथ साइकिल चलाना एक साइकिल और पूरे मोहल्ले के बच्चे जिसकी साइकिल होती थी, वह किसी महाराजा से कम नहीं होता था ,उस दिन उसकी जिससे ज्यादा दोस्ती होती थी ,उसको साइकिल चलाने का मौका मिलता था , और बाकी बच्चे साइकिल के पीछे पीछे भागते रहते थे ,अगर घरवाले ₹1 या ₹2 देते थे ,फिर दोस्तों के साथ टॉफी की पार्टी चालू हो जाती थी ,संतरे की गोली , गटागट की गोली अगर दोस्त ज्यादा होते थे और गोलियां कम दांत से काट काट कर आधी आधी गोली सब में बट जाती थी कभी गिल्ली डंडा , कभी कबड्डी बेशर्म पेड़ की लकड़ी जिसको बचपन में हम खपोटा कहते थे खपोटा वो होता है जो हॉकी स्टिक की तरह मुड़ा हुआ होता है, उस खपोटे से हॉकी खेलना, यह था बचपन हमारा ।
होली  ,गणेश चतुर्थी ,  ईद सब बच्चे मिलकर यह त्यौहार मनाते थे ,होली पर होली दहन के लिए लकड़ी की जुगाड़ ,गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की स्थापना में सब लोग लगे रहते थे ,और ईद पर घर की साफ सफाई में सब बच्चे जुट जाते थे ।जब हमारे मन में धर्म की कट्टरता जैसी कोई चीज़ नहीं होती थी , दशहरे दिवाली की छुट्टियां आती थी ,तो लगता था जैसे सारे जहां की खुशियां मिल गई हो , ऐसा लगता था, यह छुट्टियां केवल 1 महीने के लिए क्यों आती है ,कुछ दिन और बढ़ जाए छुट्टियां । छुट्टियों में रोज़ रात को रामलीला देखने का प्रोग्राम और दोस्तों के लिए जगह रोकना टाट पट्टी बिछाकर दोस्तों का इंतजार करना । जब छुट्टियां खत्म होने वाली होती थी , दिल में डर बैठ जाता था, स्कूल खुलने वाले हैं , छुट्टियों का होमवर्क तो अभी शुरू ही नहीं करा ,सब दोस्त मिलकर जिसका होमवर्क पूरा नहीं होता था ,उसका होमवर्क करवाने में जूट जाते थे ।
कहां गया यह बचपन , इस दौर के बच्चे का बचपन खो  गया ,इस समय के बच्चे खपोटे से हॉकी नहीं खेलते ,वह  महंगे मोबाइल लैपटॉप और कंप्यूटर से खेलते हैं यह बच्चे संतरे और गटागट की गोली नहीं खाते ,यह बच्चे पिज़्ज़ा बर्गर और इंपोर्टेड चॉकलेट्स खाते हैं ।
बचपन कहीं खो गया है ,यारों आओ बचपन ढूंढ वाओ ।
पुलिस में इसकी रपट लिख वाओ
झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम ।
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम।