महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव कहीं बदलाव की आहट तो नहीं



*के सी शर्मा *

महाराष्ट्रा एवं हरियाणा में विधानसभा चुनाव और विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों के नतीजों ने भी एक संदेश देने की कोशिश की है। इन नतीजों ने बदलाव के राजनीत का आहट दे दिया है।

इस बार के चुनाव ने भाजपा को चेताया है, कांग्रेस को संजीवनी बूटी दी है तो विपक्ष में भी यह भाव जताया है कि उनके लिए तिमिर कितना ही घनघोर क्यों न हो लेकिन यदि वह निराश और हताश नहीं होगा तो मतदाता फिर से खड़ा होने में मददगार हो सकता है।

*बदलाव के आहट!*


 महाराष्ट्र  के चुनाव में भाजपा 122 सीट की जगह मात्र 105 पर ही अटक गई।
यही हाल हरियाणा का रहा वहा भी उसे स्पष्ट बहुमत नही मिला।वह 47 की जगह 40 पर ही किसी तरह पहुच अटक गई।सत्ता पार्टी का दोनो राज्यो में वोट प्रतिशत भी कम हुवा है।जो क्या बदलाव का आहट देना शुरू नही कर दिया है?

 वही महाराष्ट्रा के सतारा लोकसभा उपचुनाव में उदयराजे भोंसले की पराजय और गुजरात विधानसभा के उपचुनाव में अल्पेश ठाकोर को हार का स्वाद चखाकर जनता ने यह संदेश दिया है कि लोकतंत्र में दलबदल को वह प्रोत्साहित नहीं करेगी और जो जनप्रतिनिधि तात्कालिक लाभ के लिए दलबदल करेगा उसे वह घर बिठा सकती है।

 शिवसेना के मुखपत्र सामना ने अपने लेख में  उन्माद नहीं वरना खत्म हो जाओगे का हवाला देते हुए जो कुछ कहा लिखा है उसके केंद्रीय स्वर को यदि भाजपा सही अर्थों में समझ लेती है तो वह मतदाताओं की उस इच्छा को समझने में सफल होगी जो उसने नतीजों के माध्यम से दी है।

*नतीजों का असर झारखंड चुनाव पर भी पड़ सकता हैं!*


इसी तरह  मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा उपचुनावों के नतीजों का असर निश्‍चित तौर पर झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।
क्योंकि गुजरात की सीमा से लगे झाबुआ और झारखंड से लगी छत्तीसगढ़ की सीमा वाले क्षेत्र के आदिवासी इलाके बस्तर की चित्रकोट उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज कराई है।
 बस्तर संभाग आंध्र और उड़ीसा की सीमा से भी लगा हुआ है वहां आदिवासी मानस का झुकाव अब लगता हैं कि कांग्रेस की ओर बढ़ रहा है और भाजपा से वह दूर होता जा रहा है।

*उमाभारती की नसीहत!*


भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भाजपा नेतृत्व को नसीहत दी है कि वह नैतिक मूल्यों को न भूले।
उन्होंने कहा कि चुनाव जीतने का अर्थ आरोपों से बरी हो जाना नहीं है।
 उमाभारती की नसीहत के बाद भाजपा नेतृत्व ने हरियाणा में हरियाणा लोकहित पार्टी के नेता एवं विधायक गोपाल काण्डा से अब पीछा छोड़ा लिया है और जे जी पी और भाजपा मिल कर हरियाणा में सरकार बना ली है।उसमें निर्दलीयों का भी समर्थन प्राप्त है।

उल्लेखनीय हैं कि गोपाल काण्डा मामले में   एयर होस्टेस गीतिका शर्मा की आत्महत्या के मामले में गोपाल काण्डा आरोपित हैं और लगभग डेढ़ साल तक तिहाड़ जेल में भी रहे हैं।
 उमा भारती ने पार्टी से अनुरोध किया था कि अपने साथ साफ-सुथरे लोगों को ही रखे क्योंकि भाजपा कार्यकर्ता साफ-सुथरी जिन्दगी के होते हैं इसलिए हमारे साथ वैसे ही लोग हों।

 दूसरी तरफ यह भी देखा जा रहा है कि भाजपा में इन दिनों दलबदल बड़े पैमाने पर हो रहा है और तरह-तरह के लोग उसमें आते जा रहे हैं इस संदर्भ में उमा भारती ने जो नसीहत दी है उसे भाजपा को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए अन्यथा कांग्रेस और विपक्ष मुक्त भारत बनाने के प्रयासों के तहत भाजपा कहीं ऐसे तत्वों से युक्त न हो जाये जिनके चेहरे दागी हैं या जो सत्ता की मलाई में हिस्सेदारी करने के लिए दलबदल कर रहे हैं।

सामना ने अपने संपादकीय में जो लिखा है कि ईवीएम से जो जनादेश सामने आया है उसका अर्थ यह है कि जनता ने धौंस, दहशत और सत्ता की मस्ती से प्रभावित न होकर मतदान किया है।

  सामना ने यह सवाल भी पूछा है कि भाजपा-शिवसेना के गठबंधन के बावजूद कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस का 100 सीटों पर पहुंचना क्या दिखाता है?

उसने यह भी साफतौर पर लिखा है कि पार्टी बदलकर टोपी बदलने वालों को जनता ने घर बिठा दिया है।

महाराष्ट्र के सतारा में उदयराजे भोंसले को बड़े मतों के अन्तर से हार का मुंह देखना पड़ा।

उल्लेखनीय है कि उदयराजे भोंसले जो शिवाजी महाराज के आठवें वंशज बताये जाते हैं, एनसीपी प्रत्याशी के रुप में पिछला लोकसभा चुनाव जीते थे और त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल होकर उपचुनाव लड़ा था।
 दलबदलुओं को सबक सिखाकर मतदाता ने यह भी साबित किया है कि ऐसे नेताओं को यह सोचना चाहिए कि उनकी अपनी नहीं पार्टी की ताकत होती है और वे स्वयं तो अपनी विचारधारा बदल सकते हैं लेकिन क्षेत्र का मतदाता जल्द अपना मानस नहीं बदलता है।

*म. प्र. में कमलनाथ के राजनीतिक कौशल में निखार*!


 झाबुआ उपचुनाव लगभग 28 हजार मतों के भारी-भरकम अन्तर से जीत कर पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने 62 सालों का इस विधानसभा क्षेत्र में जीत का एक नया कीर्तिमान बनाया है।

इस उपचुनाव की सारी रणनीति और व्यवस्था के संचालन सूत्र मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने हाथों में रखे थे और ऐसी रणनीति बनाई कि भाजपा देखती रह गयी।

भाजपा विधानसभा चुनाव हारने के बाद से खुली आंखों से जल्दी ही कमलनाथ सरकार गिर जाने का जो सपना देख रही थी वह  ध्वस्त हो गया।
 क्योंकि कमलनाथ के राजनीतिक कौशल ने अपनी पार्टी के बहुमत के लिए वह जादुई आंकड़ा छू लिया जहां उसके सदस्यों की संख्या 230 विधायकों वाले सदन में 115 हो गयी है और एक निर्दलीय विधायक भी मंत्रिमंडल में शामिल है।

 इस प्रकार कांग्रेस को अब विधानसभा में साधारण बहुमत भी मिल गया है। इस प्रकार डेढ़ दशक के भाजपा के साम्राज्य को कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में अपनी जीत दर्ज कराकर अस्ताचल में पहुंचा दिया था, अब उसमें झाबुआ जीतने के बाद एक नया निखार आया है।

 छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के बाद दो विधानसभा उपचुनाव हुए और दोनों पर ही कांग्रेस ने जीत दर्ज करते हुए एक ओर जहां अपनी सीट बरकरार रखी तो वहीं दूसरी ओर एक सीट उसने भाजपा से छीन ली।

 विधानसभा चुनाव के बाद पहले उपचुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने दंतेवाड़ा सीट भाजपा से छीनकर खुद कब्जा किया था।
 अब हाल ही के उपचुनाव में चित्रकोट सीट भी उसने जीत ली।
अभी महाराष्ट्रा में सरकार गठन बाकी है।
शिव सेना आँख दिखानी शुरू कर दी हैं जो कई तरह के सत्तापक्ष, विपक्ष को भी  कई सन्देश व नसीहत दे रही है। इसमें में भी बदलाव के आहट की झलकिया दिखने लगी है।इसी लिए कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी अस्थायी नही होता। राजनीति भी अनिश्चितता के खेल क्रिकेट की तरह ही  हैं। के राजनीत का आहट दे दिया है।

इस बार के चुनाव ने भाजपा को चेताया है, कांग्रेस को संजीवनी बूटी दी है तो विपक्ष में भी यह भाव जताया है कि उनके लिए तिमिर कितना ही घनघोर क्यों न हो लेकिन यदि वह निराश और हताश नहीं होगा तो मतदाता फिर से खड़ा होने में मददगार हो सकता है।

*बदलाव के आहट


 महाराष्ट्र  के चुनाव में भाजपा 122 सीट की जगह मात्र 105 पर ही अटक गई।
यही हाल हरियाणा का रहा वहा भी उसे स्पष्ट बहुमत नही मिला।वह 47 की जगह 40 पर ही किसी तरह पहुच अटक गई।सत्ता पार्टी का दोनो राज्यो में वोट प्रतिशत भी कम हुवा है।जो क्या बदलाव का आहट देना शुरू नही कर दिया है?

 वही महाराष्ट्रा के सतारा लोकसभा उपचुनाव में उदयराजे भोंसले की पराजय और गुजरात विधानसभा के उपचुनाव में अल्पेश ठाकोर को हार का स्वाद चखाकर जनता ने यह संदेश दिया है कि लोकतंत्र में दलबदल को वह प्रोत्साहित नहीं करेगी और जो जनप्रतिनिधि तात्कालिक लाभ के लिए दलबदल करेगा उसे वह घर बिठा सकती है।

 शिवसेना के मुखपत्र सामना ने अपने लेख में  उन्माद नहीं वरना खत्म हो जाओगे का हवाला देते हुए जो कुछ कहा लिखा है उसके केंद्रीय स्वर को यदि भाजपा सही अर्थों में समझ लेती है तो वह मतदाताओं की उस इच्छा को समझने में सफल होगी जो उसने नतीजों के माध्यम से दी है।

*नतीजों का असर झारखंड चुनाव पर भी पड़ सकता हैं*


इसी तरह  मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा उपचुनावों के नतीजों का असर निश्‍चित तौर पर झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।
क्योंकि गुजरात की सीमा से लगे झाबुआ और झारखंड से लगी छत्तीसगढ़ की सीमा वाले क्षेत्र के आदिवासी इलाके बस्तर की चित्रकोट उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज कराई है।
 बस्तर संभाग आंध्र और उड़ीसा की सीमा से भी लगा हुआ है वहां आदिवासी मानस का झुकाव अब लगता हैं कि कांग्रेस की ओर बढ़ रहा है और भाजपा से वह दूर होता जा रहा है।

*उमाभारती की नसीहत!*


भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भाजपा नेतृत्व को नसीहत दी है कि वह नैतिक मूल्यों को न भूले।
उन्होंने कहा कि चुनाव जीतने का अर्थ आरोपों से बरी हो जाना नहीं है।
 उमाभारती की नसीहत के बाद भाजपा नेतृत्व ने हरियाणा में हरियाणा लोकहित पार्टी के नेता एवं विधायक गोपाल काण्डा से अब पीछा छोड़ा लिया है और जे जी पी और भाजपा मिल कर हरियाणा में सरकार बना ली है।उसमें निर्दलीयों का भी समर्थन प्राप्त है।

उल्लेखनीय हैं कि गोपाल काण्डा मामले में   एयर होस्टेस गीतिका शर्मा की आत्महत्या के मामले में गोपाल काण्डा आरोपित हैं और लगभग डेढ़ साल तक तिहाड़ जेल में भी रहे हैं।
 उमा भारती ने पार्टी से अनुरोध किया था कि अपने साथ साफ-सुथरे लोगों को ही रखे क्योंकि भाजपा कार्यकर्ता साफ-सुथरी जिन्दगी के होते हैं इसलिए हमारे साथ वैसे ही लोग हों।

 दूसरी तरफ यह भी देखा जा रहा है कि भाजपा में इन दिनों दलबदल बड़े पैमाने पर हो रहा है और तरह-तरह के लोग उसमें आते जा रहे हैं इस संदर्भ में उमा भारती ने जो नसीहत दी है उसे भाजपा को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए अन्यथा कांग्रेस और विपक्ष मुक्त भारत बनाने के प्रयासों के तहत भाजपा कहीं ऐसे तत्वों से युक्त न हो जाये जिनके चेहरे दागी हैं या जो सत्ता की मलाई में हिस्सेदारी करने के लिए दलबदल कर रहे हैं।

सामना ने अपने संपादकीय में जो लिखा है कि ईवीएम से जो जनादेश सामने आया है उसका अर्थ यह है कि जनता ने धौंस, दहशत और सत्ता की मस्ती से प्रभावित न होकर मतदान किया है।

  सामना ने यह सवाल भी पूछा है कि भाजपा-शिवसेना के गठबंधन के बावजूद कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस का 100 सीटों पर पहुंचना क्या दिखाता है?

उसने यह भी साफतौर पर लिखा है कि पार्टी बदलकर टोपी बदलने वालों को जनता ने घर बिठा दिया है।

महाराष्ट्र के सतारा में उदयराजे भोंसले को बड़े मतों के अन्तर से हार का मुंह देखना पड़ा।

उल्लेखनीय है कि उदयराजे भोंसले जो शिवाजी महाराज के आठवें वंशज बताये जाते हैं, एनसीपी प्रत्याशी के रुप में पिछला लोकसभा चुनाव जीते थे और त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल होकर उपचुनाव लड़ा था।
 दलबदलुओं को सबक सिखाकर मतदाता ने यह भी साबित किया है कि ऐसे नेताओं को यह सोचना चाहिए कि उनकी अपनी नहीं पार्टी की ताकत होती है और वे स्वयं तो अपनी विचारधारा बदल सकते हैं लेकिन क्षेत्र का मतदाता जल्द अपना मानस नहीं बदलता है।

*म. प्र. में कमलनाथ के राजनीतिक कौशल में निखार*!


 झाबुआ उपचुनाव लगभग 28 हजार मतों के भारी-भरकम अन्तर से जीत कर पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने 62 सालों का इस विधानसभा क्षेत्र में जीत का एक नया कीर्तिमान बनाया है।

इस उपचुनाव की सारी रणनीति और व्यवस्था के संचालन सूत्र मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने हाथों में रखे थे और ऐसी रणनीति बनाई कि भाजपा देखती रह गयी।

भाजपा विधानसभा चुनाव हारने के बाद से खुली आंखों से जल्दी ही कमलनाथ सरकार गिर जाने का जो सपना देख रही थी वह  ध्वस्त हो गया।
 क्योंकि कमलनाथ के राजनीतिक कौशल ने अपनी पार्टी के बहुमत के लिए वह जादुई आंकड़ा छू लिया जहां उसके सदस्यों की संख्या 230 विधायकों वाले सदन में 115 हो गयी है और एक निर्दलीय विधायक भी मंत्रिमंडल में शामिल है।

 इस प्रकार कांग्रेस को अब विधानसभा में साधारण बहुमत भी मिल गया है। इस प्रकार डेढ़ दशक के भाजपा के साम्राज्य को कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में अपनी जीत दर्ज कराकर अस्ताचल में पहुंचा दिया था, अब उसमें झाबुआ जीतने के बाद एक नया निखार आया है।

 छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के बाद दो विधानसभा उपचुनाव हुए और दोनों पर ही कांग्रेस ने जीत दर्ज करते हुए एक ओर जहां अपनी सीट बरकरार रखी तो वहीं दूसरी ओर एक सीट उसने भाजपा से छीन ली।

 विधानसभा चुनाव के बाद पहले उपचुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने दंतेवाड़ा सीट भाजपा से छीनकर खुद कब्जा किया था।
 अब हाल ही के उपचुनाव में चित्रकोट सीट भी उसने जीत ली।

अभी महाराष्ट्रा में सरकार गठन बाकी है।


शिव सेना आँख दिखानी शुरू कर दी हैं जो कई तरह के सत्तापक्ष, विपक्ष को भी  कई सन्देश व नसीहत दे रही है। इसमें में भी बदलाव के आहट की झलकिया दिखने लगी है।इसी लिए कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी अस्थायी नही होता। राजनीति भी अनिश्चितता के खेल क्रिकेट की तरह ही  हैं।