आधुनिक भारत के निर्माता सरदार वल्लभभाई पटेल की जीवनी



सरदार वल्लभभाई पटेल भारत की उन महान विभूतियों में से थे जिन्होंने न केवल देश की आजादी हासिल करने में अपनी भूमिका निभाई बल्कि उसे स्थाई बनाने में भी उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई थी हालांकि उनका सार्वजनिक जीवन 40 वर्ष की उम्र के बाद शुरू हुआ लेकिन राष्ट्र के लिए समर्पित अपने जीवन के अगले 33 वर्षों में उन्होंने बहु आयामी उपलब्धियां हासिल की गांधी जी और पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य नेताओं के साथ सरदार पटेल का व्यक्तित्व 1920 से लेकर 1950 तक भारत के राजनीतिक क्षितिज पर छाया रहा वह न केवल एक महान जन नेता थे बल्कि एक दूरदर्शी राजनीतिज्ञ और कुशल प्रशासक भी दे जिन्होंने स्वतंत्र देश की पहली सरकार की अनेक जटिल समस्याओं को अद्भुत कुशलता से सुलझाया पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में इतिहास अपने पन्नो में उनके बारे में अनेक बातें लिखेगा और उन्हें स्वाधीन भारत का निर्माता और उसे मजबूत बनाने वाला बताएगा सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म गुजरात के खेड़ा जिले के नडियाद में 31 अक्टूबर 18 सौ 75 में हुआ था उनके पिता झवेवर भाई भाई पटेल और माता लाडवा किसान थे उनके पिता बड़े बहादुर थे कहा जाता है कि वह अपने युवावस्था में झांसी की रानी की सेना में भर्ती हुए थे और अंग्रेजों से लोहा लिया था बल्लभ भाई पटेल अपने माता पिता की चौथी संतान से उनके परिवार में पांच भाई और एक बहन थी उन्होंने अपनी शिक्षा पांचवी तक कस्बे में हुई ऐसे स्कूल में पांचवी तक अंग्रेजी पढ़ाई जाते थे उन्होंने नडियाद स्कूल से हाई स्कूल से मैट्रिक की पढ़ाई पास की सरदार पटेल की इंग्लैंड जाकर वकालत पढ़ाई करने की बड़ी इच्छा थी उन्होंने अपनी यात्रा की व्यवस्था के लिए टूर एवं ट्रेवल एजेंसी को पत्र लिखा एजेंसी ने विजय पटेल के नाम पर पत्र का जवाब दिया संयोग से यह पत्र उनके बड़े भाई भाई को मिला वह भी इंग्लैंड जाना चाहते थे लेकिन उनके पास भी पैसा नहीं था वल्लभभाई ने न केवल उन्हें पहले विदेश जाने दिया बल्कि उनके प्रवास के दौरान परिवार का खर्चा भी सरदार वल्लभभाई पटेल नहीं उठाया और बाद में  पढ़ाई करने के लिए  विदेश गए उन्होंने अपनी परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की 1913 में वह भारत वापस लौटे वह भी सरकार में नौकरी नहीं करना चाहते थे चूंकि पटेल ने फौजदारी मामलों में विशेषज्ञता हासिल की थी इसलिए वहां जल्दी ही मशहूर वकील हो गए वाह महात्मा गांधी के सत्याग्रह से बहुत प्रभावित थे इसी दौरान गांधीजी गुजरात सभा के अध्यक्ष बने जिसका प्रथम राजनीतिक सम्मेलन गोधरा में हुआ बल्लभ भाई पटेल इसमें सचिव चुने गए इसी साल वह अमदाबाद मुंसिपल बोर्ड के सदस्य भी चुने गए बाद में वह बोर्ड के अध्यक्ष भी बने धीरे धीरे सरदार वल्लभभाई पटेल का राजनीतिक कार्य शुरू हो गया मार्च 1918 में गांधीजी और पटेल ने खेड़ा सत्याग्रह का प्रारंभ किया सरदार वल्लभ भाई पटेल देश के उन अग्रणी नेताओं में थे जिन्होंने गांधी जी के 1934 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर कांग्रेश के पुनरुत्थान के लिए पूरा समय लगाने के फैसले का समर्थन किया और इसने कार्यक्रम के लिए हर संभव मदद भी की इसके बाद उन्होंने 1934 में कांग्रेस के केंद्रीय विधायिका सभा का चुनाव लड़ने का फैसला लिया चुनाव अभियान का पूरा दामोदर सरदार बल्लभ भाई पटेल पर आया हालांकि वह संसदीय कार्यक्रम के पूर्ण समर्थक नहीं थे फिर भी वह संसदीय गतिविधियों में पूरी तरह शामिल हो गए बाद में 1937 और 1946 में सरदार पटेल पार्लियामेंट बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस के चुनाव कार्यक्रम में पूर्व प्रभारी रहे उन्होंने ऐसी व्यवस्था बनाई जिसके तहत कांग्रेस ना केवल चुनाव जीती बल्कि विभिन्न मंत्रालयों में कामकाज के बीच भी सही तालमेल बना रहा