इस बार की दिवाली पर मिट्टी के बने दीयों से रोशन करें अपना और दूसरों का घर



(दुद्धी/ सोनभद्र)दुद्धी कस्बे के प्रजापति (कुम्हार) समाज के लोग द्वारा  दीया ,कोशिया छोटे-छोटे घड़े आदि मिट्टी के पात्र का निर्माण आजादी के पूर्व से परंपरागत तरीके से व भारतीय संस्कृति और सभ्यता साथ ही पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से इसका एक अनूठा महत्व है आज जहां भौतिकवादी परिवेश में बहुत जगहों पर आर्टिफिशियल  झालर बत्ती कैंडल आदि का प्रयोग कर जहां इस त्यौहार को मनाया जाता है वही ग्रामीण अंचलों और शहरों में भी दीपों का प्रचलन ने अपना बदलते हुए परिवेश में महत्त्व बनाए रखा है परंतु आज के युवा पीढ़ी के लोग इस मेहनत कश परंपरागत पेशे -संस्कृति से क्योंकि लागत के हिसाब से मुनाफा काफी कम होने के कारण और महंगाई बेतहाशा बढ़ने के कारण लोग शहरों की ओर रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं ज्ञात हो कि ग्राम पंचायत मल्देवा के अर्जुन प्रजापति उम्र लगभग 80 वर्ष  व मानमती आदि की माने तो कुम्हारों के हाथ से बना दीया, डाला ,ओबरा ,अनपरा, शक्तिनगर के बाजारों में भी छाया रहता है और इसकी अच्छी खासी डिमांड रहती है इस परंपरा को सजाएं सैकड़ों वर्ष हो गए हैं तीसरी पीढ़ी इस कार्य को 21वीं सदी में भी कर रही है यह एक आस्था और संस्कृति से जोड़कर परिजन देखते हैं और इस परंपरा को आगे बढ़ाते आ रहे हैं बाजार में ₹60 से लेकर ₹100 सैकड़ा तक का दीया बाजार में सड़क के पटरियों पर दुकान लगाकर  लोग बिक्री कर रहे हैं परंतु महंगाई ने इस पेशे पर काफी बुरा प्रभाव डाला है बुझे मन से लोग परंपरागत पेशे का निर्वहन कर रहे हैं सरकार का इस परजूनिया - समाज से जुड़े लोगो के परंपरागत पेशे के संरक्षण पर कोई ध्यान नहीं है|