हिंदू पंचांग पण्डित विश्णु जोशी के साथ

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 हिन्दू पंचांग

🌞पं. विष्णु जोशी 7905156547
⛅ *दिनांक 19 अक्टूबर 2019*
⛅ *दिन - शनिवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2076 (गुजरात. 2075)*
⛅ *शक संवत -1941*
⛅ *अयन - दक्षिणायन*
⛅ *ऋतु - शरद*
⛅ *मास - कार्तिक (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार अश्वीन)*
⛅ *पक्ष - कृष्ण*
 *तिथि - पंचमी सुबह 07:44 तक तत्पश्चात षष्ठी*
नक्षत्र - मॄगशिरा शाम 05:41 तक तत्पश्चात आर्द्रा*
योग - परिघ 20 अक्टूबर रात्रि 02:11 तक तत्पश्चात शिव*
⛅ *राहुकाल - सुबह 09:20 से सुबह 10:46 तक*
⛅ *सूर्योदय - 06:35*
⛅ *सूर्यास्त - 18:12*
⛅ *दिशाशूल - पूर्व दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण -
💥 *विशेष - पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥 *ब्रह्म पुराण' के 118 वें अध्याय में शनिदेव कहते हैं- 'मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उनको कोई पीड़ा नहीं होगी। जो शनिवार को प्रातःकाल उठकर पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी।' (ब्रह्म पुराण')*
💥 *शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय।' का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है। (ब्रह्म पुराण')*
💥 *हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है ।(पद्म पुराण)*

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🌷 *शालिग्राम का दान* 🌷
🙏🏻 *स्कन्दपुराण के अनुसार*
🌷 *सप्तसागरपर्यंतं भूदानाद्यत्फलं भवेत् ।।*
*शालिग्रामशिलादानात्तत्फलं समवाप्नुयात् ।।*
*शालिग्रामशिलादानात्कार्तिके ब्राह्मणी यथा ।।*
➡ *सात समुद्रों तक की पृथ्वी का दान करने से जो फल प्राप्त होता है, शालिग्राम शिला के दान से मनुष्य उसी फल को पा लेता है । अतः कार्तिक मास में स्नान तथा दानपूर्वक शालिग्राम शिला का दान अवश्य करना चाहिए।*
            🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞

🌷 *भगवान श्री कृष्ण* 🌷
🙏🏻 *महाभारत, शान्तिपर्व॰ ४७/९२*
🌷 *एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।*
*दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय ॥*
🙏🏻 *नारदपुराण , उत्तरार्ध, ६/३*
*एको हि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।।*
*दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय ।। ६-३ ।।*
🙏🏻 *स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्डः*
🌷 *एकोऽपि गोविन्दकृतः प्रणामः शताश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।।*
*यज्ञस्य कर्त्ता पुनरेति जन्म हरेः प्रणामो न पुनर्भवाय ।।*
➡ *जिसका अर्थ है*
  *‘भगवान्‌ श्रीकृष्णको एक बार भी प्रणाम किया जाय तो वह दस अश्वमेघ यज्ञों के अन्त में किये गये स्नान के समान फल देनेवाला होता है । इसके सिवाय प्रणाम में एक विशेषता है कि दस अश्वमेघ करने वाले का तो पुनः संसार में जन्म होता है, पर श्रीकृष्को प्रणाम करनेवाला अर्थात्‌ उनकी शरणमें जानेवाला फिर संसार-बन्धनमें नहीं आता ।’*

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