26 नवंबर हमारे रियल हीरो सरल और गांव में शालिगराम तोमर जी की पुण्यतिथि पर विशेष


-के सी शर्मा*
संघ के वरिष्ठ प्रचारक, सरल व सौम्य व्यवहार के धनी, समयपालन व अनुशासनप्रिय श्री शालिगराम तोमर का जन्म मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के ग्राम पोलायकलां में चार जुलाई, 1941 को एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री उमराव सिंह तथा माता श्रीमती आशीबाई थीं।

शालिगराम जी की प्राथमिक शिक्षा अपने गांव में हुई। गांव में शाखा लगने पर अपने बड़े भाई श्री रामप्रसाद तोमर के साथ वे भी शाखा में जाने लगे। धीरे-धीरे संघ के विचार और शाखा के कार्यक्रमों के प्रति उनका अनुराग बढ़ता चला गया। कुछ समय बाद उन्हें ही शाखा का मुख्यशिक्षक बना दिया गया। इस काल में शाखा में भरपूर संख्यात्मक एवं गुणात्मक वृद्धि हुई। अतः तहसील और जिले के अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता उनकी शाखा पर आये।

तत्कालीन व्यवस्था के अनुसार अल्पावस्था में ही उनका विवाह हो गया। उनकी पत्नी का नाम श्रीमती शांता देवी था। कुछ समय बाद उनके घर में एक पुत्री ने जन्म लिया, जिसका नाम मानकुंवर रखा गया। अब वे अपनी आगामी शिक्षा पूर्ण करने के लिए जिला केन्द्र शाजापुर आ गये। यहां पढ़ाई के साथ ही संघ कार्य की गति भी बढ़ने लगी। 1965 में हायर सैकेंड्री कर उन्होंने स्वयं को संघ कार्य के लिए समर्पित कर दिया।

प्रारम्भ में वे राजगढ़ में विस्तारक बनाये गये। क्रमशः उन्होंने संघ के तीनों वर्ष के प्रशिक्षण तथा बी.ए, मनोविज्ञान में एम.ए तथा कानून की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। गृहस्थ होते हुए भी उनके जीवन में प्राथमिकता सदा संघ कार्य को रही।

1967 में उन्हें उज्जैन का नगर प्रचारक बनाया गया। क्रमशः वे जिला और फिर उज्जैन के विभाग प्रचारक बने। आपातकाल में पुलिस उन्हें तलाश ही करती रही। इनके नाम वारंट थे; पर वे भूमिगत रहकर कार्यकर्ताओं को संगठित कर संघ पर प्रतिबन्ध और इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध आंदोलन को तेज करते रहे। जो कार्यकर्ता जेल में थे, उनके परिवारों से जीवंत सम्पर्क कर उनका उत्साह बनाये रखने में शालिगराम जी की प्रमुख भूमिका रही।

1978 में उन्हें 'अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद' के काम में लगाया गया। क्रमशः उनका कार्यक्षेत्र बढ़ता गया और उन्होंने महाकौशल, मध्यप्रदेश, उड़ीसा तथा उत्तर प्रदेश में विद्यार्थी परिषद के कार्य को मजबूत किया। उस दौरान बने कई कार्यकर्ताओं ने भविष्य में राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त की। शालिगराम जी ने संगठन के काम को स्थायित्व देने के लिए उज्जैन में संघ तथा फिर विद्यार्थी परिषद के कार्यालय बनवाये। भोपाल में भी उन्होंने शासन से भूमि आवंटित कराई और उस पर परिषद कार्यालय बनवाया।

1992 में वे ब्रेन ट्यूमर के शिकार हो गये। शल्य चिकित्सा से कुछ लाभ तो हुआ; पर उसके दुष्प्रभाव से उनके शरीर के निचले भाग पर लकवा मार गया। अतः वे अपने गांव पोलायकलां ही आ गये। यहां उन्होंने मानव सेवा विकास न्यास, आदर्श श्रीकृष्ण गोशाला, निवेदिता महिला मंडल आदि का गठन किया। इनके द्वारा नेत्र शिविर, अनाज भंडारण आदि करते हुए वे सेवा एवं ग्राम्य विकास के क्षेत्र में सक्रिय हो गये। उन्होंने विद्यालय खोलने के लिए ग्राम सभा की आठ बीघा भूमि प्रदेश शासन को भी उपलब्ध कराई।

आगे चलकर तीन बार उनकी शल्यक्रिया और हुई; पर वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाये। 26 नवम्बर, 2010 को उज्जैन के संजीवनी चिकित्सालय में उनका देहांत हुआ। उनकी शवयात्रा और श्रद्धांजलि सभा में हजारों लोग आये।उस समय म.प्र. के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने शालिगराम जी को विद्यार्थी परिषद के कार्य में अपना प्रेरणास्रोत बताया।