30 नवंबर जगदीश चंद्र बोस जी के जन्म दिवस पर विशेष


के सी शर्मा*
कोई भी व्यक्ति ऐसे ही महान नही बन जाता है उस महानता तक पहुचने के लिए कठोर परिश्रम और एक ही विश्वास पर अडिग रहना पड़ता है | जगदीश चन्द्र बोस भी ऐसे ही व्यक्ति थे उन्होंने कभी भी किसी भी समस्या से हार नही मानी

बोस का प्रारम्भिक जीवन |
 सर जगदीश चन्द्र बोस का जन्म बंगाल के मुंशीगंज इलाके (वर्तमान में बांग्लादेश में स्थित ) में 30 नवम्बर 1858 को हुआ था | उनके पिता भगवान चन्द्र बोस फरीदपुर में डिप्टी मजिस्ट्रेट और ब्रह्म समाज के नेता थे | बोस ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा वेर्नाकुलर स्कूल में हुयी थी क्योंकि उनके पिता का मानना था कि अंग्रेजी सीखने से पहले किसी को भी अपनी मातृभाषा सीखनी चाहिए | बोस ने 1869 में “हरे स्कूल” में प्रवेश लिया और उसके बाद कोलकाता की सेंत ज़ेवियर स्कूल में आगे की पढाई की |बोस को बचपन से ही पेड़ पौधों के बारे में जानने की इच्छा थी | उन्होंने पेड़ पौधों पर अध्यययन करना बचपन से ही शुरू कर दिया था | बचपन में जब उन्हें पेड़ पौधे के बाए में संतुष्ट करने वाले उत्तर नही मिले तो बड़े होकर वे इसकी खोज में लग गये |

1875 में बोस ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की और सेंट ज़ेवियर स्कूल में दाखिला लिया था | 1879 में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की | बोस सिविल परीक्षा पुरी करने के लिए इंग्लैंड जाना चाहते थे लेकिन उनके पिता ने उन्हें नही जाने दिया | उनके पिता चाहते थे कि वो एक विद्वान बनकर दुसरो के लिए नही बल्कि अपने लिए काम करे | फिर भी बोस लन्दन विश्वविद्यालय में मेडिसिन की पढाई के लिए गये लेकिन खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्हें वापस लौटना पड़ा |

इसके बाद 1884 में लन्दन विश्वविद्यालय से Bsc की और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से प्राकृतिक विज्ञान में डिग्री ली | कैम्ब्रिज में बोस के अध्यापको में माइकल फोस्टर , जेम्स डेवर और फ्रांसिस डार्विन जैसे महान वैज्ञानिक थे | जब  बोस कैम्ब्रिज में पढ़ रहे थे तब प्रफूल्ल चन्द्र रॉय एडिन्बुर्ग में छात्र थे | उन दोनों की मुलाकात लन्दन में हुयी और दोनों घनिष्ट मित्र बन गये | बोस ने बाद में एक सामाजिक कार्यकर्ता अबला बोस से विवाह किया था |

अंग्रेजो को अपने आत्मसम्मान के खातिर किया था परास्त

कोलकाता में भौतिकी का अध्ययन करने के बाद  बोस इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गये | वहा से स्नातक की उपाधि लेकर वो भारत लौट आये | उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्राध्यापक का पद ग्रहण कर लिया | उन दिनों अंग्रेज और भारतीय शिक्षको के बीच भेदभाव किया जाता था | अंग्रेज अध्यापको की तुलना में भारतीय अध्यापको को केवल दो तिहाई वेतन दिया जाता था |
 बोस अस्थाई पद पर थे इसलिए उन्हें केवल आधा वेतन ही मिलता था | वे इससे बहुत दुखी हुयी और उन्होंने घोषणा कर दी कि समान कार्य के लिए वे समान वेतन ही स्वीकार करेंगे “मै पूरा वेतन ही लूँगा अन्यथा वेतन नही लूँगा” | तीन साल तक बोस ने वेतन नही लिया | वे आर्थिक संकटो में पद गये और उन्हें शहर से दूर सस्ता मकान लेना पडा

कोलकाता काम पर आने के लिए वे अपनी पत्नी के साथ हुगली नदी में नाव खेते हुए आये थे | उनकी पत्नी नाव लेकर अकेली लौट जाती और शाम को वापस नाव लेकर उन्हें लेने आती | लम्बे समय तक पति पत्नी इसी प्रकार अपने आने जाने का खर्चा बचाते रहे | आखिरकार अंग्रेजो को उनके सामने झुकना पड़ा |बोस को अंग्रेज अध्यापको कके बराबर मिलने वाला वेतन देना स्वीकार कर लिया गया |

जब सफल हुआ प्रयोग

यह घटना उस समय कि है जब भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस Jagadish Chandra Bose इंग्लैंड में थे | उन दिनों वह इस बात की खोज में लगे हुए थे कि पौधों में भी जीवन है और वे भी हमारी तरह पीड़ा का अनुभव करते है | वह इसे सिद्ध करने के लिए दिन रात प्रयोग में जुटे हुए थे | आखिर वह दिन भी आ गया , जब उन्हें लोगो के सामने इस बात को सिद्ध करना था | उस दिन उनका प्रयोग देखने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक और लोग एकत्रित थे |

बोस ने एक नजर भीड़ पर डाली , जो बेसब्री से उनके प्रयोग की प्रतीक्षा कर रही थी और दुसरी नजर उस पौधे पर जिसके माध्यम से वह प्रयोग करने वाले थे | उन्होंने इंजेक्शन द्वारा उस पौधे को जहर दिया | बसु के प्रयोग के अनुरूप जहरीले इंजेक्शन से पौधे को मुरझाना चाहिए था लेकिन कुछ समय बाद भी जब पौधा नही मुरझाया तो वहा उपस्थित लोग उनका मजाक उड़ाने लगे |

बसु के लिए यह अत्यंत कठिन घड़ी थी | वह अपने प्रयोग के प्रति पुरी तरह आश्वस्त थे | उन्हें लगा कि यदि जहरवाले इंजेक्शन से पौधे को नुकसान नही पहुचाया तो वह उन्हें भी नुक्सान हो सकता है | हो सकता है कि शीशी में जहर की बजाय कुछ ओर हो | यह सोचकर बोस ने जहर की शीशी उठाई और अपने मुह से लगा दिया | उन्हें ऐसा करते देख सभी चिल्लाने लगे और वहा भगदड़ मच गयी लेकिन बोस को वह जहर पीने पर भी कुछ नही हुआ |

यह देखकर एक व्यक्ति वहा आया और उन्हें शांत करता हुआ बोला कि इसी ने जहर वाली शीशी बदलकर उसी रंग के पानी की शीशी रख दी थी ताकि यह प्रयोग सही सिद्ध न हो पाए | इसके बाद बोस ने विषवाली शीशी से पौधे को पुनः इंजेक्शन दिया और देखते ही देखते कुछ ही क्षणों में पौधा मुरझा गया | इस तरह यह प्रयोग सफल रहा |

प्रयोग और सफलता

Jagadish Chandra Bose जगदीश चन्द्र बोस ने सूक्ष्म तंरगों (Microwave) के क्षेत्र में वैज्ञानिक कार्य शुरू किया था | उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि पेड़ पौधों के भी जीवन होता है | पौधे भी सजीवो के समान सांस लेते है | सोते जगाते है और उनपर भी सुख-दुःख का असर होता है | उन्होंने ऐसा यंत्र बनाया जिससे पेड़ पौधों के गति अपने आप लिखी जाती थी | इस यंत्र को cresco graph कहा जाता है | लन्दन की रॉयल सोसाइटी ने उनके अविष्कार को एक अद्भुद खोज कहा और उन्हें रॉयल सोसाइटी का सदस्य भी मनोनीत कर लिया |

बोस विज्ञान मन्दिर

बोस का निधन 23 नवम्बर 1937 को 78 वर्ष की उम्र में गिरीध (वर्तमान में झारखंड का हिस्सा ) में हुआ था | बोस ने अपना शोधकार्य किसी अच्छे और महंगे उपकरण और प्रयोगशाळा से नही किया था इसलिए जगदीश चन्द्र बोस एक अच्छी प्रयोगशाळा बनाने  की सोच रहे थे | कोलकाता स्थित बोस विज्ञान मन्दिर इसी विचार से प्रेरित है जो विज्ञान में शोध कार्य के लिए राष्ट्र का एक प्रसिद्ध केंद्र है | उन्होंने हमेशा से ही इसका सपना देखा था | सर जगदीश चन्द्र बोस को न सिर्फ वैज्ञानिक उप्लब्ध्यियो के लिए जाना जाता है बल्कि दृढ़ निश्चयी प्रवृति के लिए भी जाना जाता है | वे एक वैज्ञानिक ही नही ,अच्छे लेखक और कुशल वक्ता भी थे | उनके व्यक्तित्व में कई ऐसी बाते थी जिन्हें छात्र जीवन में शामिल करना चाहिए |