सरकार की विकासशील नीतियों और अपने नैतिक कर्तव्य से दूरी क्यों बना रहा है जिला प्रशासन



के के मिश्रा / हरीश सिंह
सन्त कबीर नगर { ब्रह्म पुकारम } जनपद मे ग्राम पंचायत स्तर पर विकास कार्यो के स्थलीय जांच सोशल आडिट टीमो के द्वारा तीन बिन्दुओ " पारदर्शिता , सहभागिता एवं जवाबदेही " को लेकर करती नजर आ रही है । जो तीनो बिन्दु जांच के दौरान नजर नही आ रही है क्यो कि तीन बिन्दु तीन लोगो के बीच कठपुतली बनकर रह गयी है । क्यो कि इन तीनो लोगो को जांच रिपोर्ट से नही मतलब इन्हे तो बख्शीश चाहिए ।
बताते चले कि तीन बिन्दुओ को आप जान ही गये , तीन लोगो द्वारा टीमे संचालित की जाती है प्रमुख रुप से टीम कोआर्डिनेटर , ग्राम प्रधान , रोजगार सेवक जो पारदर्शिता , सहभागिता एवं जवाबदेही को खुलेआम चुनौती दे रहे है । क्यो कि तीन ही लोगो के संरक्षण मे जिले मे सोशल आडिट का खेल खेला जा रहा है , जानते चले कि मनरेगा सेल एवं विकास विभाग मे कार्यरत मैडम व पटल बाबू जिनके संरक्षण मे फल फूल रहे है कोआर्डिनेटर , ग्राम प्रधान , रोजगार सेवक ।  भाड़ मे जाये मनरेगा मजदूरो की मजदूरी ।
जिसका उदाहरण विकास खण्ड मेहदावल के ग्राम पंचायत दुर्गजोत , फरदहा , घुरापाली , ढोढ़ , गगनइ राव , गगनइ बाबू , गुलरिहा मे देखने को मिला । कही ग्राम प्रधान शादी मे मस्त है तो कही दवा दवाई के नाम पर गायब है कागजो का पुलिंदा लिए टीम निसहाय समय काटती नजर आयी । जिसमे ग्राम पंचायत गगनइ बाबू की हालत देखने लायक थी जहां पर मनरेगा मजदूरो से काम तो कराया गया लेकिन उनकी मजदूरी का भुगतान आज तक नही हुआ । इस निसबत मे रोजगार सेवक ने बताया कि आडिट टीम से ब्लाक मुख्यालय से लेकर जिला मुख्यालय तक भेट करना पड़ता है । ऐसे मे यह सवाल उठता है कि जिले के गांवो का और गरीब मनरेगा मजदूरो की भलाई से जिला प्रशासन क्यो नजरंदाज किये हुए है ? क्या गांवो का विकास और गरीब मनरेगा मजदूरो को विकासशील होने का अधिकार नही है ? आखिरकार जिला प्रशासन सब कुछ जानते हुए क्यो मूक दर्शक बनकर बैठा हुआ है ? क्या प्रदेश सरकार की विकासशील नीतियां केवल दिखावे के लिए है या उसे धरातल पर उतारने के लिए है ? आखिरकार जिला प्रशासन प्रदेश सरकार की विकासशील नीतियो और अपने नैतिक कर्त्तव्यो से दूरी क्यो बनाये हुए है ?