जीवात्मा वर्सेज लालटेन के सी शर्मा की कलम से



जिस तरह से लालटेन में पूरा तेल भर कर,बत्ती बिलकुल ठीक लगा कर,उसके ऊपर शीशा लगा कर रख दिया।
लालटेन ने प्रकाश देना आरम्भ कर दिया।कुछ समय गुजर जाने के बाद प्रकाश मंद होता गया,तेल घटता गया।
शीशे पर कालिख लगती गई।
प्रश्न उठता है
कि यह कालिख कहाँ से आई????
कहीं बाहर से तो नही आई।
यह उस लौ की अपनी कालिख है जो तेल कम होने और लौ मद्धम होने से हुई।

ज्ञात हो कि यही हाल
जीवात्मा का है।
शरीर रूपी आवरण को पहन जब आत्मा पार्ट बजाना शुरू करती है तो आत्मा रूपी battery पूरी तरह charge होती है।
उसका प्रकाश मस्तक,नयन,बोल तथा कर्मो द्वारा दूसरों तक पहुँचता रहता है।परन्तु जलते-जलते जैसे लालटेन की बत्ती का अपना ही धुआं उसके आवरण को काला कर देता है,उसी प्रकार कर्म करते-2 आत्मा की battery discharge होती जाती है।
और कमजोर आत्मा अपने ही शरीर,सम्बन्ध ,पदार्थो से आसक्त होती जाती है।
यही आसक्ति फिर काम,क्रोध आदि अन्य विकारों को जन्म देती है।
इसलिये आत्मा की इस अवस्था के लिए ना तो भगवान जिम्मेवार है और ना कोई अन्य मानव।पार्ट बजाते-2आत्मा अंतिम जन्म में थकान,हताशा और परवश्ता में बंध जाती है।इस हीन स्तिथि से आत्मा को उबारने के लिए परमात्मा को अवतरण लेना पढ़ता है।
वर्तमान समय वही भाग्यशाली समय है जब स्वयं भागवान ज्ञान का घी डाल जन-2 की ज्योति को पुन:प्रज्जवलित कर रहें हैं।