जाने क्या है असली धर्म


 पूनम चतुर्वेदी

महर्षि दयानंद सरस्वती ने कहीं भी दुनिया के अन्य मत मतान्तरों को पूरी तरह खारिज नहीं किया है बल्कि सर्व तंत्र सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए उन्होंने सत्यार्थप्रकाश की मुख्य भूमिका व 11,13,14 वें समुल्लास की अनुभूमिका में कहा है कि जितना जितना जिस भी  मान्यता में वेदानुकूल है उसे स्वीकार करना चाहिए और जो बातें वेद के प्रतिकूल हैं उनका खण्डन करना चाहिये व उन पर चर्चा करनी चाहिए ।  इसी बात के लिए उन्होंने दिल्ली दरबार के समय सर सैयद अहमद खान और केशव चंद्र  सेन तथा अन्य मतावलंबियों को धार्मिक राउंड टेबल पर बुलाया था।  जितनी आलोचना उन्होंने पौराणिक पंथों की  जिसमें वे खुद पैदा हुए थे उतनी इस्लाम और ईसाइयत की नहीं की।

वेदानुकूल आचरण करना ही धर्म है । इसे आप वैदिक धर्म, सनातन धर्म वा सत्य सनातन वैदिक धर्म भी कह सकते हैं । मूर्ति पूजा वाला हिन्दू धर्म सनातन नहीं है । मूर्ति पूजा अपने आप में बहुत बडा झूठ है । मूर्ति पूजा व बलिप्रथा में विश्वास करने वाला व्यक्ति अहिंसा सत्य आदि यम नियमों का पालन कर ही नहीं सकता । यम नियमों में ईश्वर प्रणिधान भी आता है परन्तु मूर्ति पूजक को ईश्वर के सच्चे स्वरूप का ही पता नहीं होता । प्राय: लोग कहते हैं कि निराकार ईश्वर की उपासना बहुत कठिन है इसलिये ईश्वर की मूर्ति बना कर पूजना आवश्यक है । परन्तु सच्चाई यह है कि निराकार ईश्वर की पूजा बहुत सरल है- यम नियमों का पालन करो और ध्यान मुद्रा में बैठ कर ओम् का अर्थ सहित जप करो । ईश्वर की पूजा के लिये मूर्ति पूजा आदि किसी आडम्बर की कतई आवश्यकता नहीं । ऋषि दयानंद अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं कि मूर्ति पूजा जैनियों ने अपनी मूर्खता से चलाई थी । उनकी देखा देखी औरों ने भी शुरू कर दी । जैनियों की नकल से मन्दिर बन ही गये हैं तो उनका सदुपयोग किया जाना चाहिये । उनमें प्रातः सायं यज्ञ हो, वेदपाठ हो, गुरुकुल गौशाला वा औषधालय हो ।
पूनम चतुर्वेदी