भारतीय सभ्यता और संस्कृति में चित्त की पवित्रता स्त्री और पुरुष की सबसे बड़ी निधि



*भारतीय-सभ्यता और संस्कृति में पवित्रता ही एक स्त्री या पुरुष की सबसे बड़ी हैं निधि -के सी शर्मा*


दोहरापन छोड़कर  भारतीय सभ्यता और संस्कृति को पूरी श्रद्धा से अपनाना होगा
और...
जब कोई समाज अपने पूर्वजों ,अपनी सभ्यता ,अपनी भाषा,अपनी संस्कृति को हेय दृष्टि से देखने लगता है ,
तब समझ लेना चाहिए कि उसने अपनी कब्र पर आखिरी कुल्हाड़ी चला दी।
आज से एक हजार वर्ष पहले भारतवर्ष के लोग ये नही जानते थे कि बलात्कार क्या होता है ।
ऐसी कोई घटना न कभी देखी गयी ,न सुनी गई। उन्हें पता ही नही था कि ऐसा भी कुछ होता है।
इसके पीछे कारण थे। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण कारण था भारतवर्ष की सुदृढ शिक्षा व्यवस्था।

बाल्यकाल से 25 वर्ष की आयु तक बालक बालिकाओं को गुरुकुल में रहकर ब्रह्मचर्य व्रत में स्थित रहते हुए  विद्याध्ययन करना अनिवार्य था।
इसी काल में बच्चों को वेद ,वेदांत ,योग विद्या , संस्कृत भाषा, गणित, ज्यामिति, खगोल शास्त्र, अध्यात्म विद्या आदि में पारंगत कर दिया जाता था।
गुरुकुल के कठोर अनुशासन में रहकर बच्चे इंद्रिय संयम , सत्य मार्ग का सेवन और बुराई से दूर रहने के अभ्यस्त हो जाते थे।
उन दिनों शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण करना होता था , पैसे कमाने की मशीन मैन्युफेक्चर करना नही।
गुरूजी स्वयं संयमी होते थे इसलिए छात्रों को भी संयम का अभ्यास हो जाता था ।
ऐसे आध्यात्मिक वातावरण में छात्रों की मानसिक और बौद्धिक ऊर्जाएं इत्तनी ऊँची उठ जाती थीं कि उन्हें फिर यौनसुख, भोजन सुख जैसे सतही सुख निरे फीके लगने लगते थे।
उस समय स्त्रियां क्या पहने क्या नही पहने जैसे सतही विवाद नही होते थे।
उस समय नदी किनारे लगभग अर्धनग्न अवस्था में स्नान करती स्त्रियों का दृश्य कोई महान घटना नही मानी जाती थी।
कुछ मनुष्य स्नान कर रहे हैं बस ये इतनी ही आम बात थी।
तब पुरुषों ने ऐसी कल्पना भी नही की होगी,कि उनके चरित्र का सम्बन्ध स्त्री के पहनावे से हो सकता है।
उन्हें हमेशा यही शिक्षा दी गयी कि तुम क्या हो ये तुम्हारे ऊपर है।

उन्हें हमेशा शिक्षा दी गयी कि पराई स्त्री माता के समान है।

स्त्रियां भी कभी सेक्स अपील या लड़को को रिझाने की नीयत से अंग प्रदर्शन करती नही घूमती थीं।
क्योंकि....
बचपन से ही उन्हें पवित्रता का महत्व समझाया गया ।
उन्हें बताया गया कि...
पवित्रता ही एक स्त्री या पुरुष की सबसे बड़ी निधि है।
इसलिए , लड़को को रिझाने की खातिर अंग प्रदर्शन करना उनकी प्रवृत्ति नही थी और इसीलिए किसी ड्रेस कोड का भी सवाल नही था । घूंघट प्रथा नही थी।
और...
ये महान सभ्यता फल फूल रही थी।

*इस प्रकार.... ,*
भारतवर्ष की प्राचीन शिक्षा पद्धति ने एक ऐसे समाज का निर्माण किया था जो हर प्रकार से उन्नत था ।
दूसरा कारण जो था भारत में बलात्कार जैसी घटनाओं के न होने में, वो था विवाह संस्कार। किशोरावस्था में आते ही बालक बालिकाओं के विवाह की तैयारियां शुरू हो जाती थी।
हिन्दू वैज्ञानिकों ने मानव मन का अध्ययन करके ये समझा कि यौनसुख उसके शरीर की एक जैविक जरूरत है ।
किशोरावस्था में आते ही कामवेग प्रबल होने लगता है, यदि उसे शान्त न किया जाए तो वो अंधा हो जाता है । इस कामवेग को शान्त करने के लिए विवाह का प्रावधान किया गया।
काम को भोगकर उसका नाश करने के लिए विवाह संस्था की उतपत्ति हुई।
बिगड़े मन को एक खूंटे से बाँधने हेतु विवाह संस्कार निर्धारित किया गया।
कम ही आयु में लड़का लड़की का विवाह कर दिया जाता था , जिससे दोनो का सम्बन्ध भावनात्मक रूप से जुड़ जाता, बाद में समय के साथ एक दुसरे को समझते रहते। इस व्यवस्था ने भारतीय नारियों को पवित्रता के आभूषण से भूषित किया और पुरुषों को मर्यादा और शील रुपी अलंकारों से सजाया।

       फिर मध्यकाल आया । विधर्मियों की चमचमाती तलवारें मानो हिन्दू सभ्यता और संस्कृति पर कहर बनकर टूट पड़ीं।
आसमान चूमते देव मंदिरों को धूल में मिलाया गया।
घरों, गाँवों और बाजारों को लूटा गया।
हिन्दू स्त्रियों का अपहरण किया गया उनके साथ अनाचार किया गया। न जाने कितनी स्त्रियां अपनी पवित्रता बचाने को धधकती आग में कूद पड़ीं।
हजारो वर्षों की प्रक्रिया से विकसित और संवर्धित हुई हिन्दू सभ्यता पर ऐसा कलंक लगा जो आज तक नही मिट पाया है।
पुरे भारत का विधर्मीकरण प्रारम्भ हुआ ,मंदिरों के भग्नावशेषों पर विधर्मियों ने अपने मजहबी स्थान  खडे कर दिए,
विश्वविद्यालयों और पुस्तकालयों की हजारो अमूल्य पुस्तकों को आग के हवाले किया गया और विधर्मियों ने अपनी मजहबी जिहाद के पाठ पढ़ाने  के  स्थान खोले गए ,शहरो, गलियों और मार्गों के नाम बदले गए ।प्रयागराज इलाहाबाद हो गया, अयोध्या फैजाबाद हो गयी और एक चौथाई हिंदुओ को विधर्मी बना दिया गया।

     फिर ब्रिटिश शासन स्थापित हुआ। उन्होंने अपनी पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली देश में लागू की।
भारतीय गुरुकुलों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। पाश्चात्य स्कूलों और कालेजों से पढ़कर हर साल हजारों संशयवादी बाहर आते और अपने धर्म को गालियां देते।
वे सूट बूट पहनना पसंद करते और धोती पहनने वाले अपने देशवासियों को हिकारत की नजर से देखते।
वे पश्चिमी विज्ञान की तारीफों के पुल बांधते और वैदिक धर्म और दर्शन (उसे बिना पढ़े ही) को ढोंग बताते।
वे बाबू लोग, वे काले अंग्रेज इंग्लिश बोलने सीखने में अपनी शान समझते और संस्कृत को गए जमाने की या पूजा पाठ की भाषा समझकर उसकी उपेक्षा करते।

जब कोई समाज अपने पूर्वजों ,अपनी सभ्यता ,अपनी भाषा,अपनी संस्कृति को हेय दृष्टि से देखने लगता है ,तब समझ लेना चाहिए कि उसने अपनी कब्र पर आखिरी कुल्हाड़ी चला दी।

अंग्रेजों ने पहली बार भारतीयों को बताया कि इंद्रियों का सुख क्या होता है।
वे भारतीय जो आत्मज्ञान में ही मस्त रहते थे,
जो ब्रह्मसत्यम जगद मिथ्या का उद्घोष हजारो साल पहले ही कर चुके थे,
उन भारतीयों को अंग्रेजों ने बताया कि जगत ही वास्तव में सत्य है।

*ब्रह्म को किसने देखा है???*

भौतिकतावाद की आंधी में भारतीयों का सारा ज्ञान , सारी भक्ति जाती रही।

फिर आजादी के बाद अमेरिका की नकल शुरू हुई।

    आज परिणाम ये हुआ है कि भारत के लोग न तो पूरी तरह भारतीय हैं और न पूरी तरह अंग्रेज या अमेरिकन।

हम एक मिक्स कबाड़ की तरह बन चुके हैं।

जैसे बाढ़ का पानी उतर जाने पर सारा कचरा, गमले, जूते , टायर आदि एक स्थान पर एकत्र हो जात हैं उसी तरह हजारो वर्षों की गुलामी विभिन्न संस्कृतियों की नकल कर करके हमारा समाज एक कबाड़ बन चुका है।
और

इसीलिए , हमारे समाज में ऐसे विकार पैदा हो रहे हैं।
अब हम जल्दी विवाह नही करते ।

अब हम अमेरिकियों की तरह गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड बनाते हैं।
फिर दूसरी तरह हम पवित्र भी रहना चाहते हैं,
अपनी गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड से शादी भी करना चाहते हैं।
और
जब बॉयफ्रेंड शादी से मना कर देता है तो उसपर बलात्कार का आरोप लगा दिया जाता है।
पर अमेरिका में तो ऐसा नही है। वहां लोग गर्लफ्रेंड बनाते हैं , बॉयफ्रेंड बनाते है , शारीरिक संबंध बनाते हैं शादी की कोई बाध्यता नही।
अगले दिन आपको कोई दूसरी पसंद आ जाए तो ब्रेक अप कर लो।
अब जब हमें अमेरिकन बनना है गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड बनाने हैं तो पूरी तरह अमेरिकन बन जाना चाहिए , फिर शादी की बाध्यता क्यों???
और
यदि नही तो पूरी तरह भारतीय ही बने रहो ।
बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड बनाने के बजाय सीधे विवाह करो।
पर... नही... आप चाहते हैं बॉयफ्रेंड बनाना , शारीरिक संबंध बनाना , फिर वो विवाह भी कर ले।
ये ऐसे काम नही करता।
लड़के विवाह क्यों करेंगे जब बिना विवाह के ही उन्हें वो सब मिल गया जो उन्हें कल्पना में भी न मिलता? अमेरिका में विवाह न होना एक समस्या है।
वहां अरेंज विवाह जैसी चीज नही थी,
इसलिए वहां बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड कल्चर विकसित हुआ।

हो सकता है ये उनके लिए अच्छा हो ।
पर ये भारत के लिए भी अच्छा हो सकता है???
यहां विवाह व्यवस्था चलती आयी है अब आप बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड कल्चर भी चाहते हैं
और
उसके साथ साथ विवाह व्यवस्था भी ।
इसलिए शादी का झांसा देकर बलात्कार करने जैसी बातें सामने आ रही हैं।
दोनों में से एक रास्ता चुनें।
अगर आप पवित्रता को महत्व देते हैं तो विवाह व्यवस्था पर चलें ।
यदि आप केवल सतही क्षणिक सुख को महत्व देते हैं ,
तो जरूर बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड कल्चर अपनाएँ,
पर पवित्रता की उम्मीद न रखें फिर ।
या तो हमें पूरी तरह भारतीय बन जाना चाहिए या पूरी तरह अमेरिकन ।

आज स्त्रियों के पहनावे से सम्बंधित सवाल उठ रहे हैं वो इसी वजह से एक वर्ग अमेरिकन बनना चाहता है ,  तो... दूसरे वर्ग की भारतीय आत्मा इसे स्वीकार नही कर पाती।
लड़को का एक वर्ग बॉलीवुडिया फिल्मे देखकर (जो अमेरिका की हूबहू नकल करती हैं) गर्लफ्रेंड बनाने को पागल है , तो दूसरी ओर है भारतीय नारी का पवित्र मन जो केवल उसी एक को समर्पित होती है जो उसका पाणिग्रहण करता है।

*ऐसे में क्या होगा????*

अमेरिकन संस्कृति से प्रभावित नीली जीन्स पहनने वाला लड़का एक गर्लफ्रेंड चाहता है पर ये अमेरिका नही.... , भारत है... यहां उसे सहज में गर्लफ्रेंड नही मिलेगी
और
विवाह व्यवस्था को भी छोड़ चुका है...,
फिर वो क्या करेगा???
सड़क चलती लड़की का हाथ ही तो पकड़ेगा।

      इसलिए यदि हम अपने इस कन्फ्यूज़ समाज को बचाना चाहते हैं तो इसे द्वन्दों से बाहर निकालना होगा।

*दोहरापन छोड़कर....*

भारतीय सभ्यता और संस्कृति को पूरी श्रद्धा से अपनाना होगा
और
अमेरिकन बनना है तो अमेरिका चले जाना होगा।
भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति को दुबारा लागू करना होगा।

ऐसा नही कि हम अंग्रेजी न सीखें..., अवश्य सीखें पर उससे पहले संस्कृत सीखें।
भारत की आत्मा संस्कृत में बसती है,
उपनिषदों में बसती है।
बिना आत्मा के चाहे शरीर को कितना ही स्वर्णपत्रों और फूलों से सजा दिया जाए, एक दिन ये स्वर्णपत्र और फूल उड़ जाएंगे और उस समाज की सड़ी हुई लाश सामने आ जायेगी।