आज के दौर में सच्चाई की राह पर चलना कितना कठिन हो



*सच्चाई के राह चलना कितना कठिन।*
व्यथा व्यक्त करती कलम ने कहा संसारिक संसाधनों को एकत्रित करने के लिए कितनों को तड़पते देखा कितने राज छिपाने की कोसिश मे लगे रहे कितनों को भ्रम जाल में डालते रहे जीवन को व्यर्थता के रुप को सवांरने मे जुटे रहे क्या पाया क्या खोया परवाह नहीं किया जब अपनी पड़ी तो समझा काश मैं भी परमार्थ को अपनाता जीवन सफल बनता अहम,माया के वशीभूत होकर अन्धविश्वास को ही उचित ठहराया नही पता था वक्त की हकीकत कवि रचना आछे दिन पाछे गए गुरु से किया न हेत अब पछताने होत का चिड़िया चुग गई खेती। उपदेश देना जितना सरल अमल उतना ही कठिन जब अपने ही अपनों को लूट लेते हैं आखिर अपने तो अपने होते हैं वह क्षण कितना असहनीय पीड़ा देता है जिसका व्याख्यान किया नहीं जा सकता फिर भी डुबते को तिनके का सहारा काफी होता है आप बीती कलम ने कहा जीवन ही संघर्ष है गीता में भी उल्लेख है जो हुआ अच्छा हुआ जो हो रहा है अच्छा हो रहा है जो होगा वो भी अच्छा ही होगा, तेरा राम जी करेंगे बेड़ापार उदासी मन काहे को करे पर जीवन के सफर में हम जिनको समझे थे हमारे साथी हैं एक पग चले और बिछड़ गए कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा मन को ढाढस देने के लिए मन्नत मांगी थी जीवन में चलते चलते कुन्ती ने   भी प्रभु से बिपत्ति मांगी थी सो मान लिया मैंने अपनों से हार गरीब हैं रहे गरीब अमीरों को भी एक दिन आना है सच्चाई के राह पर चलना है कठिन पर सब को सच के राह चलने को बताना है।