पत्रकारिता के नायक बाबूराव ठाकुर जी के जन्म दिवस पर विशेष रिपोर्ट के सी शर्मा की कलम से



के सी शर्मा*
पत्रकारिता स्वयं में एक बहुत ही सम्मानजनक काम है; पर अन्य सब क्षेत्रों की तरह उसमें भी भारी गिरावट आई है। किसी समय ध्येयवादी लोग ही इस काम को अपनाते थे; पर अब भौतिकता की होड़ के कारण यह क्षेत्र भी सनसनी, दलाली और भ्रष्टाचार का खुला मैदान बन गया है।

बेलगांव (कर्नाटक) से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र ‘तरुण भारत’ के संस्थापक सम्पादक बाबूराव धोंडोपंत ठाकुर एक ऐसे सत्यान्वेषी व विद्वान पत्रकार थे, जिन्होंने हर तरह के कष्ट सहे; पर अपना ध्येय नहीं छोड़ा। उनका जन्म 26 दिसम्बर, 1899 को बेलगांव के एक सामान्य परिवार में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा वहां से ही पाकर वे आगे पढ़ने के लिए सांगली आ गये।

यहां आकर वे लोकमान्य तिलक, गांधी जी तथा वीर सावरकर के विचारों से प्रभावित हुए। गांधी जी के आह्नान पर महाविद्यालय की पढ़ाई अधूरी छोड़कर वे आंदोलन में कूद गये। अतः उन्हें दो महीने जेल में रहना पड़ा। उन्होंने एक निःशुल्क वाचनालय और स्वदेशी वस्तुओं की दुकान भी चलाई।

बाबूराव के मन में बचपन से ही समाज-सेवा की भावना विद्यमान थी। 19 वर्ष की युवावस्था में उन्होंने कुछ मित्रों के साथ ‘भारत वैभव समाज’ नामक संस्था की स्थापना की। शिक्षा का प्रसार इस संस्था का उद्देश्य था। इसके द्वारा उन्होंने बेलगांव के आसपास कई गांवो में साक्षरता की ज्योति जलाई। प्रौढ़ों के लिए रात्रिकालीन पाठशालाएं चलाने के साथ ही निर्धन, निर्बल व वंचित वर्ग के उत्थान के लिए भी उन्होंने अनेक कार्यक्रम हाथ में लिये। इससे वे युवकों के साथ-साथ प्रबुद्ध वर्ग में भी लोकप्रिय हो गये।

वर्ष 1924 में बेलगांव में गांधी जी की अध्यक्षता में कांग्रेस का ‘राष्ट्रीय महाधिवेशन’ हुआ। इसमें बाबूराव ने ‘कांग्रेस सेवा दल’ के अध्यक्ष डा. हर्डीकर के नेतृत्व में एक स्वयंसेवक के नाते उत्कृष्ट कार्य किया। बाबूराव के मन में पत्रकारिता के बीज भी विद्यमान थे। अतः 1919 में उन्होंने बेलगांव से ‘तरुण भारत’ नामक मासिक पत्र प्रारम्भ किया। इसका उद्देश्य भी साक्षरता का प्रचार-प्रसार तथा इस हेतु गठित संस्था ‘भारत वैभव समाज’ की गतिविधियों की जानकारी समाज तक पहुंचाना था। इसके सम्पादक के नाते बाबूराव ने शासन द्वारा किये जा रहे अन्याय और अत्याचारों को जन-जन तक पहुंचाया। अतः थोड़े समय में ही यह पत्र लोकप्रिय हो गया।

स्वाधीनता प्राप्ति के बाद देश में भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन हुआ। इसके अन्तर्गत बेलगांव, निपाणी, कारवार आदि मराठीभाषी क्षेत्र कर्नाटक में जोड़ दिये गये। बाबूराव भाषा के आधार पर लोगों का बांटने के विरोधी थे। अतः ‘महाराष्ट्र एकीकरण समिति’ में सक्रिय होकर उन्होंने एक लम्बी लड़ाई लड़ी। उनका तन, मन, वाणी और लेखनी सदा इसके लिए चलती रही।

बाबूराव ठाकुर मानते थे कि पत्रकारिता सुख, सुविधा और वैभव पाने का धन्धा नहीं है। इसलिए वे देश, धर्म और समाज पर दुष्प्रभाव डालने वाले हर मुद्दे पर सक्रिय रहते थे। गोवा मुक्ति के लिए हुए ‘गोमांतक आंदोलन’ में भी उनकी यही भूमिका रही। एक बड़ी छलांग लगाते हुए पांच जुलाई, 1966 से ‘तरुण भारत’ एक दैनिक पत्र बन गया। आज यह महाराष्ट्र का एक लोकप्रिय पत्र है तथा इसके कई संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं।

बाबूराव ठाकुर समाचार पत्र को केवल आजीविका का साधन न मानकर संघर्ष का सबल माध्यम तथा समाज की आशा-आकांक्षा का सच्चा दर्पण मानते थे। 23 अपै्रल, 1979 को कर्क रोग के कारण ऐसे जुझारू सामाजिक कार्यकर्ता, समाजसेवी तथा स्वाधीनता सेनानी पत्रकार का निधन हुआ।
(संदर्भ : पांचजन्य 16.1.2000 - ग.गो.राजाध्यक्ष)