गुप्त सिद्धियां पाने का समय गुप्त नवरात्रि-के सी शर्मा*


*गुप्त सिद्धियां पाने का समय गुप्त नवरात्रि-के सी शर्मा*


आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी के बीच के काल को गुप्त नवरात्रि कहा गया है। आश्विन और चैत्र के बीच माघ शुक्ल प्रतिपदा भी गुप्त नवरात्रि होती है।
देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। हिन्दू धर्म में नवरात्रि मां दुर्गा की साधना के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। नवरात्र के दौरान साधक विभिन्न तंत्र विद्याएं सीखने के लिए मां भगवती की विशेष पूजा करते हैं। इस नवरात्रि के बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होती है।
ऐसे कीजिए कलश स्थापना :
एक चौकी पर मिट्टी का कलश पानी भरकर मंत्रोच्चार सहित रखा जाता है। मिट्टी के दो बड़े कटोरों में मिट्टी भरकर उसमे गेहूं-जौ के दाने बो कर ज्वारे उगाए जाते हैं और उसको प्रतिदिन जल से सींचा जाता है। दशमी के दिन देवी-प्रतिमा व ज्वारों का विसर्जन कर दिया जाता है।
महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियां बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों को अर्ध्य दें। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना मिलता है। नवरात्रि व्रत से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। कन्या पूजन -नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। अष्टमी के दिन कन्या-पूजन का महत्व है जिसमें 5, 7,9 या 11 कन्याओं को पूज कर भोजन कराया जाता है।
गुप्त नवरात्रि पूजा विधि :
मान्यतानुसार गुप्त नवरात्रि के दौरान अन्य नवरात्रि की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्रि व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

 एवं मां दुर्गा के 108 नामों का स्मरण करना चाहिए

अम्बिकाष्टोत्तरशतनामावली.......
ॐ अस्यश्री अम्बिकामहामन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः उष्णिक् छन्दः
अम्बिका दुर्गा देवता ॥

[ श्रां - श्रीं इत्यादिना न्यासमाचरेत् ]
*ध्यानम्*
या सा पद्मासनस्था विपुलकटतटी पद्मपत्रायताक्षी
गम्भीरावर्तनाभिः स्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया ।
लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥

मन्त्रः - ॐ ह्रीं श्रीं अम्बिकायै नमः ॐ ॥

॥अम्बिकाष्टोत्तरशतनामावली॥

ॐ अम्बिकायै नमः ।
ॐ सिद्धेश्वर्यै नमः ।
ॐ चतुराश्रमवाण्यै नमः ।
ॐ ब्राह्मण्यै नमः ।
ॐ क्षत्रियायै नमः ।
ॐ वैश्यायै नमः ।
ॐ शूद्रायै नमः ।
ॐ वेदमार्गरतायै नमः ।
ॐ वज्रायै नमः ।
ॐ वेदविश्वविभागिन्यै नमः । १०
ॐ अस्त्रशस्त्रमयायै नमः ।
ॐ वीर्यवत्यै नमः ।
ॐ वरशस्त्रधारिण्यै नमः ।
ॐ सुमेधसे नमः ।
ॐ भद्रकाल्यै नमः ।
ॐ अपराजितायै नमः ।
ॐ गायत्र्यै नमः ।
ॐ संकृत्यै नमः ।
ॐ सन्ध्यायै नमः ।
ॐ सावित्र्यै नमः । २०
ॐ त्रिपदाश्रयायै नमः ।
ॐ त्रिसन्ध्यायै नमः ।
ॐ त्रिपद्यै नमः ।
ॐ धात्र्यै नमः ।
ॐ सुपथायै नमः ।
ॐ सामगायन्यै नमः ।
ॐ पाञ्चाल्यै नमः ।
ॐ कालिकायै नमः ।
ॐ बालायै नमः ।
ॐ बालक्रीडायै नमः । ३०
ॐ सनातन्यै नमः ।
ॐ गर्भाधारायै नमः ।
ॐ आधारशून्यायै नमः ।
ॐ जलाशयनिवासिन्यै नमः ।
ॐ सुरारिघातिन्यै नमः ।
ॐ कृत्यायै नमः ।
ॐ पूतनायै नमः ।
ॐ चरितोत्तमायै नमः ।
ॐ लज्जारसवत्यै नमः ।
ॐ नन्दायै नमः । ४०
ॐ भवायै नमः ।
ॐ पापनाशिन्यै नमः ।
ॐ पीतम्बरधरायै नमः ।
ॐ गीतसङ्गीतायै नमः ।
ॐ गानगोचरायै नमः ।
ॐ सप्तस्वरमयायै नमः ।
ॐ षद्जमध्यमधैवतायै नमः ।
ॐ मुख्यग्रामसंस्थितायै नमः ।
ॐ स्वस्थायै नमः ।
ॐ स्वस्थानवासिन्यै नमः । ५०
ॐ आनन्दनादिन्यै नमः ।
ॐ प्रोतायै नमः ।
ॐ प्रेतालयनिवासिन्यै नमः ।
ॐ गीतनृत्यप्रियायै नमः ।
ॐ कामिन्यै नमः ।
ॐ तुष्टिदायिन्यै नमः ।
ॐ पुष्टिदायै नमः ।
ॐ निष्ठायै नमः ।
ॐ सत्यप्रियायै नमः ।
ॐ प्रज्ञायै नमः । ६०
ॐ लोकेशायै नमः ।
ॐ संशोभनायै नमः ।
ॐ संविषयायै नमः ।
ॐ ज्वालिन्यै नमः ।
ॐ ज्वालायै नमः ।
ॐ विमूर्त्यै नमः ।
ॐ विषनाशिन्यै नमः ।
ॐ विषनागदम्न्यै नमः ।
ॐ कुरुकुल्लायै नमः ।
ॐ अमृतोद्भवायै नमः । ७०
ॐ भूतभीतिहरायै नमः ।
ॐ रक्षायै नमः ।
ॐ राक्षस्यै नमः ।
ॐ रात्र्यै नमः ।
ॐ दीर्घनिद्रायै नमः ।
ॐ दिवागतायै नमः ।
ॐ चन्द्रिकायै नमः ।
ॐ चन्द्रकान्त्यै नमः ।
ॐ सूर्यकान्त्यै नमः ।
ॐ निशाचरायै नमः । ८०
ॐ डाकिन्यै नमः ।
ॐ शाकिन्यै नमः ।
ॐ हाकिन्यै नमः ।
ॐ चक्रवासिन्यै नमः ।
ॐ सीतायै नमः ।
ॐ सीतप्रियायै नमः ।
ॐ शान्तायै नमः ।
ॐ सकलायै नमः ।
ॐ वनदेवतायै नमः ।
ॐ गुरुरूपधारिण्यै नमः । ९०
ॐ गोष्ठ्यै नमः ।
ॐ मृत्युमारणायै नमः ।
ॐ शारदायै नमः ।
ॐ महामायायै नमः ।
ॐ विनिद्रायै नमः ।
ॐ चन्द्रधरायै नमः ।
ॐ मृत्युविनाशिन्यै नमः ।
ॐ चन्द्रमण्डलसङ्काशायै नमः ।
ॐ चन्द्रमण्डलवर्तिन्यै नमः ।
ॐ अणिमाद्यै नमः । १००
ॐ गुणोपेतायै नमः ।
ॐ कामरूपिण्यै नमः ।
ॐ कान्त्यै नमः ।
ॐ श्रद्धायै नमः ।
ॐ पद्मपत्रायताक्ष्यै नमः ।
ॐ पद्महतयै नमः ।
ॐ पद्मासनस्थायै नमः ।
ॐ श्रीमहालक्ष्म्यै नमः । १०८
॥ॐ॥
नारायणी नमोस्तुते  नमो नारायण