संयमित वाणी और इसका महत्त्व के सी शर्मा की कलम से



*सयंमित वाणी-के सी शर्मा*


कानो कि सफाई का मतलब है कि बुरा सुनते हुए भी अच्छा सोचना जो लोग अच्छा सोचते है वो लोग कभी भी दुखी नहीं हो सकते क्योंकि, जो हम सोचते है चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक सोचना हमें ही पड़ता है इसलिए हमें सदा सकारात्मक ही सोचना है तभी दुखो का अंत हो सकता है।

कानो की सफाई--हम जीने के लिए दिनभर कई शारीरक क्रियाएँ जैसे- साँस लेना, पानी पीना, भोजन करना आदि करते है परन्तु कई बार इन क्रियाओ के साथ कुछ अवांछित कीटाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते
 है |
वे भयंकर रोग का कारण बन जाते है जिन्हें ख़त्म करने के लिए फिर कडवी दवाइयों का सेवन करना पड़ता है कीटाणुओ से बचने के लिए हम आवश्यक सावधानी रखते है जैसे कि पानी को फ़िल्टर कर पीना, भोजन बनाते समय सफाई का ख्याल रखना,बदबू वाली जगह पर मुहं ढक कर रखना आदि |

 कीटाणुओ से शरीर कि रक्षा के साथ-साथ बुराइयों से मन कि रक्षा भी आवश्यक है यह सम्भाल न रखने से कई भयंकरमानसिक बीमारियाँ (बुराइयाँ) जैसे कि इर्ष्या नफरत, सम्बन्धो में मतभेद, मनमुटाव , दूरियां , चिडचिडापन , क्रोध आदि विकराल रूप धारण कर हमें खोखला करने में कोई कसार नहीं छोडती | अन्दर गलत विचार जाने का एक रास्ता है हमारे कान | दिन भर इन कानो से कुछ न कुछ सुनते रहते है |
हम इनसे सत्संग भी सुनते है पर कई बार इनसे कुछ गलत बाते भी अन्दर चली जाती है जो हमारे विचार प्रक्रिया, बोल तथा आचरण पर गहरा असर डालती है |

ट्रिप्ल फ़िल्टर--महान दार्शनिक सुकरात के अनुसार कोई भी बात सुनने से पहले सुनाने वाले से यह सुनिश्चित कर लेना चहिये कि 1. वह बात सत्य हो 2. अच्छी हो और 3. उसमे हमारे लिए कुछ उपयोगिता हो | यूँ ही व्यर्थ सुनने का कोई औचित्य नहीं |
जैसे हम ट्रिप्ल फिल्टर्स पानी का प्रयोग करते है , ऐसे ही कानो पर यह ट्रिप्ल फिल्टर लगाकर ही हमें बातो को अन्दर प्रवेश होने देना चाहिए ताकि नकारात्मक बाते नुकसान न पहुंचाए |

सुनी हुई बात का असर जरुर होता है
आत्मा मन , बुद्धि, संस्कार सहित है हम जो भी सुनते है उसे आत्मा मन द्वारा ग्रहण करती है , वह बुद्धि पर चित्रित होकर संस्कारो में अंकित हो जाता है और किसी व्यक्ति के प्रति एक अनजानअवधारण का निर्माण करता है ज्ञान के गीत, संगीत सुनकर मनुष्य प्रसन्नता, हल्केपन का अनुभव करता है वही व्यथा के गीत सुनने से गंभीर हो जाता है , भजन सुनने से प्रभु-प्रेम में मग्न हो जाता है लड़ाई-झगड़ा शोर, गलियां आदि सुनने से दुखी अशांत होकर चिडचिडापन अनुभव करता है | अपनी प्रशंसा सुनने से कार्य प्रति उत्साह- उमंग बढ़ता है |
और निदा सुनकर निराशा , नाउमीदी तथा सफलता का अनुभव करता है

उचित व्यक्ति को सुनाएँ
गंदगी से बचाने लिए जैसे चीजो को ढककर रखते है ऐसे ही कानो को भी ज्ञान का ढक्कन लगाकर रखना चाहिए फिर भी यदि जाने- अनजाने, चाहे-अनचाहे कोई ऐसी बाते सुनने कोई इल जाती है जो नहीं सुननी चाहिए तो उन्हें निकालनाभी आना चाहिए | जैसे जगह जगह कचरा बिखेरने से गंदगी, बीमारियाँ बढ़ती है,कचरे को उचित स्थान पर ही डाला जाता है ऐसे ही किसी कि कमी कमजोरी को जगह जगह वर्णन करने से वातावरण भरी तथा दूषित होता है और वह व्यक्ति भी स्वयं को बदलने में असमर्थ महसूस करता है इसलिए बात वहां बताये जहाँ से उसका सुधर हो सके | शुभकामना रखकर बताये, गलत भावना रखकर नहीं |

कमल समान बनाये कानो को
प्यारी मातेश्वरी जी कहा करती थी कि ये कान कचरे के डिब्बे नहीं है जो इधर-इधर कि फ़ालतू,गन्दी बाते सुनकर इन्हें गन्दा करते रहो और स्वयं को बीमार करते रहो | कानो कि सफाई पर ध्यान बहुत जरुरी है देवताओ के शरीर के हर अंग का वर्णन करते समय कमल शब्द जोड़ा जाता हो, जैसे कमलमुख,कमलनयन,कमलकर्ण आदि |
तो हम भी कानो को कमल सामान बनाये अर्थात सुनते हुए भी न्यारे-प्यारे बनकर रहे | दुनिया के बीच में रहकर ही अपने कानो को कमल सामान बनना है, दुनिया को त्यागकर नहीं