27 मार्च सिन्ध में संघ कार्य के प्रणेता राजपाल पुरी जी की पुण्यतिथि पर विशेष-के सी शर्मा



27 मार्च
सिन्ध में संघ कार्य के प्रणेता राजपाल पुरी जी की पुण्यतिथि पर विशेष-के सी शर्मा

श्री राजपाल पुरी का जन्म 18 अगस्त, 1919 को स्यालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में एक वकील श्री बिशम्भर नाथ एवं श्रीमती बिन्द्रा देवी के घर में हुआ था। उनका घर हकीकत राय की समाधि के सामने था। पढ़ाई में वे सदा प्रथम श्रेणी तथा छात्रवृत्ति पाते रहे। 1929 में उनके पिताजी का निधन हो गया।

1937 में उत्तर पंजाब के प्रांत प्रचारक श्री के.डी.जोशी के सम्पर्क में आकर वे स्वयंसेवक बने। 1938 तथा 39 में उन्होंने नागपुर से प्रथम व द्वितीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण लिया। 1939 में पंजाब वि.वि. से बी.ए. करते ही उन्हें दिल्ली में रक्षा विभाग में नौकरी मिल गयी; पर एक महीने बाद त्यागपत्र देकर वे संघ कार्य के लिए हैदराबाद पहुंच गये। वहां हिन्दू महासभा के नेता श्री धर्मदास बेलाराम ने उनके रहने का प्रबंध किया। घर की जिम्मेदारी होने से वे वहां एक विद्यालय में पढ़ाने लगे; पर छोटे भाई संतोष की नौकरी लगते ही पढ़ाना छोड़कर वे पूरी तरह संघ के काम में लग गये।

नागपुर में हुए 1940 के संघ शिक्षा वर्ग में सिन्ध से छह स्वयंसेवक गये। राजपाल जी ने भी तभी अपना तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण पूरा किया। 1945 में वे सिन्ध के प्रांत प्रचारक बने। उन्हें सब ‘श्रीजी’ कहकर बुलाते थे। सिन्ध में हिन्दू केवल 13 लाख थे। विभाजन की तलवार सिर पर लटकी थी। मुसलमानों के अत्याचार बढ़ रहे थे। कई गांव और कस्बों में हिन्दू केवल दो-तीन प्रतिशत ही थे; पर शाखाओं के कारण हिन्दुओं में भारी जागृति आयी।

राजपाल जी के प्रयास से बैरिस्टर खानचंद गोपालदास कराची के तथा बैरिस्टर होतचंद गोपालदास अडवानी हैदराबाद के संघचालक बने। एक बार श्री अडवानी एक बम कांड में पकड़े गये। सरसंघचालक श्री गुरुजी तथा राजपाल जी के प्रयास से वे रिहा हुए। 1942 में संघ कार्यालय, हैदराबाद पर छापा मारकर पुलिस ने राजपाल जी तथा दो अन्य को पकड़ लिया। ऐसे में बैरिस्टर अडवानी ने मार्शल लॉ प्रशासक से मिलकर उन्हें रिहा कराया।

मार्च 1947 में राजपाल जी ने पूरे प्रान्त में हिन्दू जनगणना की। इससे 1947 में हिन्दुओं की रक्षा में बड़ा लाभ हुआ। उन्होंने ‘पंजाब सहायता समिति’ बनाकर पांच लाख रु. एकत्र किये तथा शस्त्रों के संग्रह, निर्माण व प्रशिक्षण का प्रबन्ध किया। विभाजन के बाद जोधपुर को केन्द्र बनाकर उन्होंने सिन्ध से आये हिन्दुओं के पुनर्वास का काम किया। 1948 के प्रतिबंध काल में संघ का संविधान बनाने में उन्होंने दीनदयाल जी तथा एकनाथ जी का साथ दिया। प्रतिबंध समाप्ति के बाद वे गुजरात और फिर महाराष्ट्र के प्रांत प्रचारक बनाये गये।

1952 में छोटे भाई की असामयिक मृत्यु से वृद्ध मां की जिम्मेदारी फिर उन पर आ गयी। अतः 1954 में उन्होंने विवाह कर लिया। इससे पूर्व 1953 में उन्होंने ‘मुंबई हाइकोर्ट बार काउंसिल’ की परीक्षा दी। वहां भी प्रथम श्रेणी तथा प्रथम स्थान पाने पर उन्हें ‘सर चिमनलाल सीतलवाड़ पदक’ मिला। वकालत के साथ वे विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ, विश्व हिन्दू परिषद, विवेकानंद शिला स्मारक, फ्रेंडस ऑफ इंडिया सोसायटी आदि में सक्रिय रहे।

वे उद्योग कानूनों के विशेषज्ञ थे। उन्होंने विश्व मजदूर संघ (आई.एल.ओ) के जेनेवा अधिवेशन में भी भाग लिया था।आपातकाल में उनके वारंट थे; पर वे विदेश चले गये और वहीं जनजागरण करते रहे। मार्च 1977 में वे लौटे; पर कुछ ही दिन बाद 27 मार्च, 1977 को हुए भीषण हृदयाघात से उनका निधन हो गया।

राजपाल जी हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी, सिन्धी, मराठी, गुजराती आदि कई भाषाएं जानते थे। सिन्ध में उनके आठ वर्ष के कार्यकाल में बलूचिस्थान तक शाखाओं का विस्तार हुआ। लगभग 75 युवक प्रचारक भी बने। पांच अगस्त, 1947 को कराची में सरसंघचालक श्री गुरुजी की सभा में दस हजार गणवेशधारी स्वयंसेवक तथा एक लाख हिन्दू आये। सिन्ध आज भारत में नहीं है; पर वहां से सुरक्षित भारत आये सभी हिन्दू राजपाल जी को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं।