जानिए पिबत् भागवतम् रसमालयम्-के सी शर्मा




 गोवर्धन प्रसंग का विस्तार से वर्णन कथा

'गो'  और 'आवर्धन' अर्थात् जो मनुष्य 5 कर्मेंद्रियां, 5 ज्ञानेन्द्रियों को अपने वश में करने का प्रयास करता है
उस समय इन्द्रियों का स्वामी 'मन' रुपी मदोन्मत्त 'इन्द्र' वृन्दावन वासियों पर मुसलाधार वर्षा करके नष्ट-विनष्ट का कोशिश करता है,
किन्तु....
श्रीकृष्ण रुपी 'ब्रह्म' अर्थात् वैशिष्ट्य ज्ञान उस मदोन्मत्त इन्द्र के अभिमान को महज़ कनिष्ठिका अंगुली से ही 'गोवर्धन पर्वत' उठाकर 'जीव' (वृंदाव वासियों) का रक्षा करते हैं,
और...
'इन्द्र' (मन) का मान मर्दन करते हैं,
अर्थात्
'मन' को सदैव वश में रखना चाहिए, जो इन्द्रिय निग्रह कर 'मन' पर अधिकार जमाने में कामयाब हो जाता है, उसे श्रीकृष्ण (ब्रह्म) की शरणागति प्राप्त हो जाती है।

''विद्यावताम् भागवती परीक्षा''

अर्थात्
विद्वानों की परीक्षा 'श्रीमद्भागवत कथा' के व्याख्या में की जाती है, अर्थात्
आध्यात्मिक रस से परिपूरीत 'रसालय' है जिस 'रस' का आस्वादन करने में देवता, ऋषि, महर्षि, यक्ष और मनुष्य सदैव उद्यत रहते हैं।