जाने,कौन सी सड़क मानी जाती है भारत की प्राण रेखा-के सी शर्मा




वक्त बहुत तेजी से बदलता है फिर वो वक्त अच्छा हो या बुरा। एक अनन्त यात्रा है जिन्दगी।

ई. पूर्व के उस जमाने में चंद्रगुप्त मौर्य ने जनता को 'उत्तरापथ' नाम रखकर जनता को एक सड़क की सौगात दी थी।

 1542 ई. में फरीद खान उपनाम 'शेरशाह सूरी' ने जनता के लिए दरियादिली दिखाते हुए प्राचीन 'उत्तरापथ' कहलाने वाली सड़क को सुधरवाया और  'सड़क-ए-आजम' या 'बादशाही सड़क' के नाम से पुनर्निर्माण करवाया।
पश्चिम में अफगानिस्तान के काबुल से लेकर बांग्लादेश के चटगांव तक 2500 किलोमीटर यह सड़क आज भी भारत की प्राणरेखा मानी जाती है।

16 वीं सदी में पक्की सड़क बनवाना, पेड़ लगवाना, हर कोस पर 'कोस मीनार' बनवाना, यात्रियों के आराम के लिए खूब सारी सरायें बनवाना एक सम्राट की उदार सोच थी।

ज्ञात अज्ञात इतिहास में दक्षिण एशिया की यह सबसे बड़ी सड़क आम जनता के लिए पूरी की पूरी कभी नहीं रुकी।

बस यूँ ही ख्याल आया कि जिन्दगी कितना कुछ इन सड़कों जैसी ही है। ' मुट्ठी भर बाजरे' के लोभ चक्कर में अक्सर हम अक्सर सोने के महल गवां देते हैं।

ये पत्थर गड़े मकानों को हम खुद अपना मानते है पर असल में ये जिन्दगी की सड़क पर बनी सरायें हैं।
जिन्दगी की राहों में दर्रे, नदियां, पहाड़ सब आते हैं, थोड़ा विश्राम कर इन सब को पार कर आगे बढ़ना होता है।

वक्त के साथ 'उत्तरापथ' नाम की सड़क 'बादशाही सड़क' के नाम से मशहूर हुई।
अंग्रेजों ने उसका नाम 'ग्रांड ट्रंक रोड' कर दिया और थोड़ा और वक्त बदला उसका नाम आज 'नेशनल हाईवे' हो गया।
आगे का भी अब कोई भरोसा नहीं कि यही रहेगा। यह भी कोई स्थापित सत्य नहीं है कि ये 'जीवन की नदियां' कहलाने वाली रोड कभी नहीं रुकती।

जैसे सड़क के किनारे लगे पेड़ों के नीचे बैठकर हम थोड़ा सुस्ताते है, आगे का नक्सा देखते है, पोटली से ठंडा पानी पीते है और उस उर्जा पाकर रास्ते पर फिर से आगे बढ़ जाते है बस ऐसा ही कुछ वक्त अभी चल रहा है।