लाक डाउन में शहर छोड़कर गांव तो जाओगे मगर वहां आओगे क्या

हक़ीकत का आईंना
 वरिष्ठ पत्रकार के सी शर्मा की कलम से
दिहाड़ी,मजबूर,मजदूर के मुम्बई पलायन और डर के मारे भाग रहे सक्षम अंतरराज्यीय लोगो के पलायन में अन्तर है?अवसरवादी,मजबूर लोगो का विश्लेषण लोग तो गाँव जाने के लिये ऐसे उत्पात मचा रहे हैं कि जैसे गांव पहुंचते ही सभी प्रकार की आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक समस्यायें समाप्त हो जायेंगी।

कई राज्यो से आरही जानकारी के उपराँत वहाँ के लोगो की आर्थिक,सामाजिक,व्यवसायिक की वास्तविक स्थिति के अनुभव के आधार पर ही यह लिख रहा हूँ और अच्छे से जानता हूँ कि वहां पर कितने,गरीब,मध्यम वर्ग,और कितने गिनेचुने लोग बडे जमींदार परिवार से संबंध रखते है!
बस ज़्यादातर मध्यमवर्गीय ही दिखे है!बेरोजगारी की तो हद दर्जे की है!
जबकि मुंबई में कोई भूखा नहीं सोता,यह कोई फिल्मी डायलॉग नहीं है, यह यहाँ का यथार्थ है!कोरोना महामारी के समय जिस प्रकार से तमाम व्यक्तिगत,राजनीतिक,सामाजिक, धार्मिक संगठन, दिन रात, पिछले दो महीनों से सबको भोजन, पानी दे रहे हैं, वह केवल और केवल मुंबई में ही संभव है!                                                                                          आप अन्य राज्य के सक्षम लोग (मजबूर मजदूर को छोड़कर)उसी मुंबई को ठुकरा कर गांव जाने के लिए नंगई पर उतारू हो!
थोडी सी कभी प्राकृतिक संकट/जेहादीधार्मिक तनाव/आतँकवादी घटना हुवी नही कि सबसे पहले आप मुंबई छोड़ कर भागने पर आमादा हो जाते हो?शर्म नहीं आती आपको (मजबूर मजदूर को छोड़कर)?                              
अरे भाई कौन सी जमींदारी छोड़ कर आये हो अपने गावँ में?
 संयुक्त परिवार होगा तो दो चार बिस्वा ज़मीन भी तो नहीं होगी शायद एक आदमी के हिस्से में?वहां कौन खिलायेगा?और कितने दिन खिलायेगा?
वहां मुफ्त में चार दिन भी नहीं खा पाओगे?पैसे खत्म हो जाएंगे तो यहाँ की ही याद आएगी?                                     झारखण्ड,विहार हो या यूपी हो कितने बडे बडे कारखाने, मिल, कंपनियां, फैक्टरियां हैं वहां, वो सबको पता है?
नब्बे प्रतिशत घरों की तो यह हालत है कि अगर पूरा परिवार जो शहरों में वसे है?
सब एक साथ आ जाये?
या जब पूरा परिवार इकट्ठा हो जाता है तो सोने के लिये खटिया विस्तर भी कम पड जाती है?
टेंट वाले के भरोसे इज्जत बचती है?और सब पलायनवादी (मजबूर मजदूर को छोड़कर)उसी जगह जाकर झंडा गाडने का सपना देख रहे 
हो?
चार दिन से ज्यादा बिना पैसे के,वहां जी नहीं पाओगे?
कायदे से, नियंत्रित ढंग से रहे होते तो,यह बीमारी अब तक समाप्त हो चुकी होती?
लेकिन हाय रे तब्लीगी जमात और तुम सब अवसरवादी पलायनवादी (मजबूर मजदूर को छोड़कर) यहां भी संक्रमण फैला रहे हो?और अब झारखण्ड,बिहार,उत्तर प्रदेश जाकर वहां भी फैलाओगे?

एक बात आज मुझे  सच लगी कि राज ठाकरे सच कहते थे कि तुम परप्रांतीय हो? आज अवसरवादी,पलायनवादी
(मजबूर मजदूर को छोड़कर) ने सच में सिद्ध कर दिया कि आप केवल पैसा कमाने की लालच में मुंबई आये थे?
 आपको मुंबई की मिट्टी से,मुंबई से कोई लगाव नही?
आपको जरा सा भी अपनापन नहीं मुंबई की धरती से?
वह धरती जिसने आप जैसे मौकापरस्त लोगों को अब  तक  पाला पोसा?
 लेकिन आपने अंत में वेवफाई कर ही दी मुंबई के साथ?
और अब रो भी रहे हो कि सरकार गांव जाने के लिए रेल टिकट का पैसा ले रही है,तो इतने वर्ष मुंबई में रहकर क्या पराक्रम किया तुमने कि रेल टिकट भी नहीं खरीद पा रहे हो?
जाओ भाई, मित्र,गाँववाले लेकिन याद रखना कि जरा सा भी स्वाभिमान, गैरत और आत्मसम्मान हो तो वापस मुम्बई मत आना क्योंकि मुंबई जिंदादिल लोगों का शहर है,  मुर्दों के लिए(मजबूर मजदूर को छोड़कर) यहां कोई जगह नहीं है?