ब्राह्मण पर विशेष रिपोर्ट के सी शर्मा की कलम से

ब्राह्मण पर विशेष -के सी शर्मा*


क्या ब्राह्मण किसी पर आश्रित है नहीं क्योंकि ब्राह्मण खुद अपनी रक्षा करने  में सक्षम है ब्राह्मण की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं किसी न किसी रूप में और ब्राह्मण जैसी जात जो शस्त्र और शास्त्र दोनों जानते लेकिन कभी भी शस्त्र को महत्वता नहीं दी लेकिन जब ब्राह्मणों में शिक्षा शस्त्र और शास्त्र की क्षत्रियों को दिया लेकिन कभी भी इसका प्रयोग नहीं करते थे क्योंकि ब्राह्मणों को कभी भी है राज्य संपदा की लालच नहीं थी और ना तो कभी भी किसी से युद्ध करना चाहते थे ब्राह्मण हमेशा अत्याचारों के खिलाफ ही शस्त्र उठाया ब्राम्हण में जब भी किसी ने शस्त्र उठाया है तो उससे बड़ा शस्त्र धारी नहीं हुआ चाहे वह गौतम ऋषि हो या उनके पुत्र है ऋषि सारद्वान कोई
 इस धरती पर इनसे बड़ा धनुर्धर हुआ नहीं है तमाम ऐसे साक्ष मौजूद थे हम कभी भी शस्त्र नहीं नहीं तो जब कि हमने उठाए इतिहास देखा इस इतिहास को आज हम बता रहे हैं महाभारत काल के 3 सबसे बड़े योद्धाओं के बारे में!

 गुरु द्रोणाचार्य

गुरु द्रोणाचार्य दुनिया के सबसे बड़े धनुर्धर परशुराम जी के बाद सबसे बड़े गुरु थे उनसे बड़ा धनुर्धर सिर्फ परशुराम जी थे और वह अपने जीवन में कभी भी युद्ध नहीं हारे थे उनको यह वरदान था  जब तक उनके हाथ में धनुष तीर है कोई भी उन्हें हरा नहीं सकता था उनसे बड़ा धनुर्धर कोई पैदा नहीं हुआ और उन्होंने ही  प्रतिज्ञा की थी  की  अर्जुन को  सर्वश्रेष्ठ  धनुर्धर  दुनिया का  बनाया था या पांडव और कौरवों के गुरु थे!

  कुलगुरु कृपाचार्य

  कृपाचार्य का वर्णन भीष्म पितामह करते हैं कि कृपाचार्य अकेले ही 60000  योद्धाओं पर भारी है और इस धरती पर मनुष्य के रूप में उसे कोई भी हरा नहीं सकता वह स्वयं देवताओं के सेनापति कार्तिकी के समान जान पड़ता है और कार्तिकेय जी से ही उसका युद्ध में कुछ हो सकता है
और महाभारत काल में भी वह अजय व चिरंजीवी होकर ही लौटे! कृपाचार्य बहुत ही बड़े योद्धा थे एक साथ 100 महारथियों से युद्ध कर सकते थे और वह किसी को भी खत्म करने की ताकत रखते थे उनके का जवाब किसी के पास नहीं था!

शिव रूद्र अंश अश्वत्थामा

 एक ऐसा योद्धा था जो अकेले के ही दम पर संपूर्ण युद्ध लड़ने की क्षमता रखता था
 ( महाभारत में द्रोण पुत्र अश्वत्थामा )
अश्वत्थामा द्रोणाचार्य जी के पुत्र थे, द्रोणाचार्य जी ने #शिव जी को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके उन्हीं के अंश से अश्वत्थामा नामक पुत्र को प्राप्त किया,,
 वे स्वयं शिव का अंश है,, अश्‍वत्थामा के पास शिवजी के द्वारा दी गई कई शक्तियां थी,,,,,,

जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक #अमूल्य_मणि विद्यमान थी, जोकि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी,,  इस मणि के कारण  उस पर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का असर नहीं हो पाता था।

अश्‍वत्थामा जी के ब्रह्मतेज, वीरता, धैर्य, तितिक्षा, शस्त्रज्ञान, नीतिज्ञान, बुद्धिमत्ता के विषय में किसी को संदेह नहीं था,, दोनों पक्षों के महारथी उनकी शक्ति से परिचित थे,, महाभारत काल के सभी प्रमुख व्यक्ति अश्‍वत्थामा के बल, बुद्धि व शील के प्रशंसक थे।

अश्वत्थामा जी ने अपने महान पिता द्रोणाचार्य जी से धनुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया था, द्रोण जी ने अश्वत्थामा को धनुर्वेद के सारे रहस्य बता दिए थे,,,,,,
 सभी दिव्यास्त्र, आग्नेय, वरुणास्त्र, पर्जन्यास्त्र, वायव्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र, ब्रह्मशिर आदि सभी उसने सिद्ध कर लिए थे,, वह भी द्रोण, परशुराम की कोटि का धनुर्धर बन गया, कृप, अर्जुन व कर्ण भी उससे अधिक श्रेष्ठ नहीं थे,, नारायणास्त्र एक ऐसा अस्त्र था ‍जिसका ज्ञान द्रोण के अलावा माभारत के अन्य किसी योद्धा को नहीं था,, यह बहु‍त ही भयंकर अस्त्र था।

पिता की छलपूर्वक मृत्यु से दुखी होकर अश्‍वत्थामा मजबूर होकर नारायणास्त्र का प्रयोग करता है जिसके चलते एक ही झटके में पांडवों सहित उनकी संपूर्ण सेना नष्ट हो जाती।

सभी नारायणास्त्र से नष्ट हो जाते लेकिन पांडवों को इस अस्त्र से बचने के लिए तुरंत ही  श्री कृष्ण उनसे अपने-अपने अस्त्र त्यागकर रथ से ‍नीचे उतरने का आदेश देते हैं और कहते हैं कि सभी नारायणास्त्र के सामने  आत्मसमर्पण कर लो अन्यथा मारे जाओगे,,,,,,,,

सभी पांडव और सेना ऐसा ही करते है, #समर्पण से ही वे सभी बच सके,, जब अश्‍वत्थामा यह देखता है कि सभी पांडव बच गए हैं,,, तब वह अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रयोग करता है लेकिन श्रीकृष्णजी के कारण अर्जुन फिर बच जाता है। 

 पराजयो वा मृत्युर्वा श्रेयान् मृत्युर्न निर्जयः।
विजितारयो ह्‍येते शस्त्रोपसर्गान्मृतोपमाः।।

अर्थात : जिसने अस्त्र डाल दिए हों, आत्मसमर्पण कर दिया वे सभी शत्रु विजित ही हैं, वे मृत के समान ही हैं,,

#शिव_महापुराण (शतरुद्रसंहिता -37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया!