जानिए कैसे ब्रह्मा जी से जुडी है मृत्यु के जन्म की कहानी आप भी पढ़िए-के सी शर्मा की कलम से



भारतीय पौराणिक कथा :-

जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म यह चक्र तो चलता ही रहता है।
मृत्यु एक कटु सत्य है जिसे कोई नही ठुकरा सकता है जो भी इस संसार में आया है उसे एक न एक दिन जाना ही है। जिसने जन्म लिया है उसे एक ना एक दिन मृत्यु में समां जाना ही है।

लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि हर इंसान की मृत्यु होना क्यों अनिवार्य है।

कैसे हुआ इस मृत्यु का जन्म ? :-

सोचा तो होगा तो चलिए आज हम आपको इस सवाल का जवाब देते है की कैसे हुआ म्रत्यु का जन्म। यह तो आप जानते ही है की परमपिता ब्रह्मा जी ने ही इस पृथ्वी की रचना की है।

ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के कई करोड़ों साल बाद यह देखा कि पृथ्वी पर जीवन का बोझ बढ़ता चला जा रहा है। अगर इसे नहीं रोका गया तो पृथ्वी समुद्रतल में डूब जाएगी। तब ब्रह्मा जी पृथ्वी पर बाहर का संतुलन बनाने के विषय में सोचने लगे। बहुत अधिक सोचने के बाद ब्रह्मा जी को जब कोई उपाय नही सूझा तो उन्हें बेहद क्रोध आ गया। जिसके कारण एक अग्नि प्रकट हुई और ब्रह्मा जी ने उस अग्नि को समस्त संसार को जलाने का आदेश दिया।

यह देखकर सभी देवता , ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। तब ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया कि देवी पृथ्वी - जगत के वजन से चिंतित हो रही थी। उनकी इस पीड़ा ने ही मुझे प्राणियों के विनाश के लिए प्रेरित किया है।
 
यह विनाश देखकर भगवान शिव जी ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की और उन्हें कहा कि आप इस प्रकार पृथ्वी का भी विनाश कर देंगे, आप कोई दूसरा उपाय सोचिए। भगवान शिव के इस प्रार्थना को सुनकर ब्रह्मा जी ने अपनी उस क्रोधाग्नि को पुनः अपने शरीर में समेट लिया। अग्नि को अपने शरीर में वापस समेटते समय  ब्रम्हा की इंद्रियों से काले, लाल और पीले तीन रंगों की एक स्त्री उत्पन्न हुई।

ब्रह्मा जी ने उस स्त्री को मृत्यु कहकर पुकारा और उससे कहा कि मैंने तीनों लोकों का संघार करने की इच्छा से जो क्रोध किया था मेरे उस क्रोधाग्नि से तुम्हारी उत्पत्ति हुई है। अतः तुम तुम मेरी आज्ञा से जगत के प्राणियों का विनाश करो।

धार्मिक कथा :-

ब्रह्मा जी यह बात सुनकर स्त्री बहुत दुखी हुई और यह कहती हुई रोने लगी- मैं पाप और अधर्म से डरती हूं और फिर एक स्त्री होकर यह अहितकारक और कठोर कार्य कैसे कर सकती हूं। रोती हुई स्त्री की आंखों से जो आंसू टपक पड़े उन्हें ब्रम्हा जी ने अपनी हथेली में ले लिया। उसे समझाते हुए बोले " हे मृत्यु तुम मेरी आज्ञा का पालन करो। "  इस से तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा। मैंने जो तुम्हारे आंखों से निकले आंसुओं के जिन बूंदों को अपनी हथेली में ले लिया है । वह व्याधियां बन कर उन प्राणियों का विनाश करेगी और उसके पश्चात तुम उन प्राणियों के प्राणों को हर लेना।

इससे तुम्हें अधर्म नहीं, धर्म की प्राप्ति होगी और सनातन धर्म तुम्हें सदा ही पवित्र बनाए रखेगा। ब्रह्मा जी की यह बात सुनकर मृत्यु ने उनका यह आदेश स्वीकार कर लिया। तभी से इस जगत के सभी प्राणियों मृत्यु को प्राप्त होने लगे।