हनुमान जी की अद्भुत लीलाएं-के सी शर्मा



समुद्र लांघना - माता सीता की खोज करते समय जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि वीर समुद्र तट पर पहुंचे तो 100 योजन विशाल समुद्र को देखकर उनका उत्साह कम हो गया। तब अंगद ने वहां उपस्थित सभी पराक्रमी वानरों से उनके छलांग लगाने की क्षमता के बारे में पूछा। तब किसी वानर ने कहा कि वह 30 योजन तक छलांग लगा सकता है, तो किसी ने कहा कि वह 50 योजन तक छलांग लगा सकता है। ऋक्षराज जामवंत ने कहा कि वे 90 योजन तक छलांग लगा सकते हैं। सभी की बात सुनकर अंगद ने कहा कि- मैं 100 योजन तक छलांग लगाकर समुद्र पार तो कर लूंग, लेकिन लौट पाऊंगा कि नहीं, इसमें संशय है। तब जामवंत ने हनुमानजी को उनके बल व पराक्रम का स्मरण करवाया और हनुमानजी ने 100 योजन विशाल समुद्र को एक छलांग में ही पार कर लिया।

माता सीता की खोज - समुद्र लांघने के बाद हनुमान जब लंका पहुंचे तो लंका के द्वार पर ही लंकिनी नामक राक्षसी से उन्हें रोक लिया। हनुमानजी ने उसे परास्त कर लंका में प्रवेश किया। हनुमानजी ने माता सीता को बहुत खोजा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दी। फिर भी हनुमानजी के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। मां सीता के न मिलने पर हनुमानजी ने सोचा कहीं रावण ने उनका वध तो नहीं कर दिया, यह सोचकर हनुमानजी को बहुत दु:ख हुआ, लेकिन उनके मन में पुन: उत्साह का संचार हुआ और वे लंका के अन्य स्थानों पर माता सीता की खोज करने लगे। अशोक वाटिका में जब हनुमानजी ने माता सीता को देखा तो वे अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमानजी ने यह कठिन काम भी बहुत ही सहजता से कर दिया।

अक्षयकुमार का वध व लंका दहन - माता सीता की खोज करने के बाद हनुमानजी ने उन्हें भगवान श्रीराम का संदेश सुनाया। इसके बाद हनुमानजी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया। ऐसा हनुमानजी ने इसलिए किया क्योंकि वे शत्रु की शक्ति का अंदाजा लगा सकें। जब रावण के सैनिक हनुमानजी को पकडऩे आए तो उन्होंने उनका भी वध कर दिया। इस बात की जानकारी जब रावण को लगी तो उसने सबसे पहले जंबुमाली नामक राक्षस को हनुमानजी को पकडऩे के लिए भेजा, हनुमानजी ने उसका वध कर दिया। तब रावण ने अपने पराक्रमी पुत्र अक्षयकुमार को भेजा, हनुमानजी ने उसका वध भी कर दिया। इसके बाद हनुमानजी ने अपना पराक्रम दिखाते हुए लंका में आग लगा दी। 

पराक्रमी राक्षसों से भरी लंका नगरी में जाकर माता सीता को खोज करना व अनेक राक्षसों का वध करके लंका को जलाने का साहस हनुमानजी ने बड़ी ही सहजता से कर दिया।
विभीषण को अपने पक्ष में करना - श्रीरामचरित मानस के अनुसार जब हनुमानजी लंका में माता सीता की खोज कर रहे थे, तभी उन्होंने किसी के मुख से भगवान श्रीराम का नाम सुना। तब हनुमानजी ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और विभीषण के पास जाकर उनका परिचय पूछा। अपना परिचय देने के बाद विभीषण ने हनुमानजी से उनका परिचय पूछा। 

तब हनुमानजी ने उन्हें सारी बात सच-सच बता दी। रामभक्त हनुमान को देखकर विभीषण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पूछा कि क्या राक्षस जाति का होने के बाद भी श्रीराम मुझे अपनी शरण में लेंगे। तब हनुमानजी ने कहा कि भगवान श्रीराम अपने सभी सेवकों से प्रेम करते हैं। जब विभीषण रावण को छोड़कर श्रीराम की शरण में आए तो सुग्रीव, जामवंत आदि ने कहा कि ये रावण का भाई है। इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। उस स्थिति में हनुमानजी ने ही विभीषण का समर्थन किया था। अंत में, विभीषण के परामर्श से ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

संजिवनी बुटी लाना - महर्षि वाल्मीकि जी रामायण के अनुसार युद्ध के दौरान रावण के पराक्रमी पुत्र इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र चलाकर कई करोड़ वानरों का वध कर दिया। ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से ही भगवान श्रीराम व लक्ष्मण बेहोश हो गए। तब ऋक्षराज जामवंत ने हनुमानजी से कहा कि तुम शीघ्र ही हिमालय पर्वत जाओ, वहां तुम्हें ऋषभ तथा कैलाश शिखर का दर्शन होगा। इन दोनों के बीच में एक औषधियों का पर्वत दिखाई देगा। तुम उसे ले आओ। उन औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व अन्य सभी घायल वानर पुन: स्वस्थ हो जाएंगे। जामवंतजी के कहने पर हनुमानजी तुरंत उस पर्वत को लेने उड़ चले। रास्ते में कई तरह की मुसीबतें आईं, लेकिन अपनी बुद्धि और पराक्रम के बल पर हनुमान उस औषधियों का वह पर्वत समय रहते उठा ले आए। उस पर्वत की औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व करोड़ों घायल वानर पुन: स्वस्थ

अनेक राक्षसों का वध - युद्ध में हनुमानजी ने अनेक पराक्रमी राक्षसों का वध किया, इनमें धूम्राक्ष, अकंपन, देवांतक, त्रिशिरा, निकुंभ आदि प्रमुख थे। हनुमानजी और रावण में भी भयंकर युद्ध हुआ था। रामायण के अनुसार हनुमानजी का थप्पड़ खाकर रावण उसी तरह कांप उठा था, जैसे भूकंप आने पर पर्वत हिलने लगते हैं। हनुमानजी के इस पराक्रम को देखकर वहां उपस्थित सभी वानरों में हर्ष छा गया था।