महाभारत: युद्ध से पहले अर्जुन और भगवान शिव क्यों हुआ था युद्ध-के सी शर्मा




महाभारत युद्ध अधर्म पर धर्म की जीत की लड़ाई थी. और इस युद्ध को जीतने के लिए पांडवों ने बहुत तपस्या की थी. पांडवों को ये ज्ञात था कि कौरव अवश्य इस युद्ध छल का प्रयोग करेंगे. इसलिए श्री कृष्ण के सुक्षाव से पांडव अलग-अलग शक्ति प्राप्त करने के लिए तपस्या को निकल गए. अर्जुन ने भगवान शिव का सबसे घातक अस्त्र प्राप्त करने के लिए निकल गए. लेकिन ये इतना आसान नहीं था. इसके लिए सर्वप्रथम अर्जुन ने इंद्र को प्रसन्न किया. इंद्र को प्रसन्न करने के लिए अर्जुन इंद्रकील पर्वत पर पहुंच गए और तपस्या आरंभ कर दी. तब इंद्र ने अर्जुन को बताया कि शिवजी को प्रसन्न करने पर ही दिव्यास्त्र प्राप्त किया जा सकता है.

तपस्या में बाधा बनकर आया सूकर
इसके बाद अर्जुन ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या आरंभ की. लेकिन जैसे ही अर्जुन ने तपस्या प्रारंभ की वहां पर मूक नामक एक असुर जंगली सूकर का रूप धारण करके आ गया और तपस्या में बाधा पहुंचाने लगा. अर्जुन ने उसे भगाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह सूकर अर्जुन को ही मारने के लिए हमला करने लगा. तब अर्जुन ने उस सूकर को मारने का निर्णय लिया. सूकर को मारने के लिए अर्जुन ने जैसे ही धनुष पर बाण चढ़ाया वहां एक वनवासी आ गया. जिसने अर्जुन को बाण चलाने से रोक दिया.

वनवासी से हुआ अर्जुन का विवाद
इस वनवासी का कहना था कि इस सूअर पर उसका अधिकार है. इस सूकर को सर्वप्रथम उसने अपना लक्ष्य बनाया था. इस सूकर पर को सिर्फ वही मार सकता है. लेकिन अर्जुन ने उसकी बातों पर ध्यान न देकर सूकर पर अपना तीर छोड़ दिया जिससे उसकी वहीं पर मौत हो गई. इस बात से वनवासी बेहद नाराज हो गया. दोनों में भयंकर वाद विवाद आरंभ हो गया. इसके बाद दोनों में युद्ध छिड़ गया.

भगवान शिव और अर्जुन में हुआ युद्ध
अर्जुन ने अपने धनुष से वनवासी पर बाणों की वर्षा कर दी. लेकिन वनवासी को अर्जुन का एक भी बाण नहीं लगा. अर्जुन हैरान और परेशान हो गए और सोचने लगे कि ये कैसे संभव हो सकता है. आज तक उनके वाणों से कोई नहीं बच सका है. तभी वनवासी ने अपना तीर अर्जुन की तरफ छोड़ दिया, तीर लगते ही अर्जुन बेहोश हो गए. होश आने पर अर्जुन समझ गए कि ये कोई मामूली वनवासी नहीं है, कोई देव है जो वनवासी का रूप लेकर मेरी परीक्षा ले रहा है. अर्जुन ने वहीं पर मिट्टी का एक शिवलिंग बनाया और उस एक माला चढ़ाई. अर्जुन ने देखा कि जो माला शिवलिंग पर चढ़ाई थी, वह उस वनवासी के गले में दिखाई दे रही है.

इंद्र से प्राप्त किया दिव्यास्त्र
अर्जुन समझ गए कि ये स्वयं भोलेनाथ हैं. तब अर्जुन ने भगवान शिव की स्तुति की. अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अर्जुन को अपना पाशुपतास्त्र प्रदान किया. इसके बाद अर्जुन देवराज के इंद्र के पास गए और उनसे दिव्यास्त्र प्राप्त किए. इस अस्त्र के बारे में कहा जाता है कि यह शिव का ऐसा अस्त्र है जो आंख, दिल और शब्दों से भी नियंत्रित किया जा सकता था. कुछ विद्वानों का मत है कि अर्जुन ने पाशुपतास्त्र अस्त्र का प्रयोग जयद्रथ को मारने के लिए किया था.