सावन में : त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में काल सर्प दोष से मिलती है मुक्ति. पढ़िए कथा-के सी शर्मा

शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री त्र्यंबकेश्वर मंदिर हैं. श्री त्र्यंबकेश्वर को महादेव के ज्योतिर्लिगों में दसवां स्थान दिया गया है. यह महाराष्ट्र में नासिक शहर से 35 किलोमीटर दूर गौतमी नदी के तट पर स्थित है. त्र्यम्बकेश्वर मंदिर भगवान शिव का ऐसा ही एक ज्योतिर्लिंग है जिसकी महिमा अपार है. जो भी ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है भगवान शिव उसके सभी कष्टों का निवारण कर देते हैं.

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव स्वयं यहां पर प्रकट हुए थे. त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग नासिक के पास स्थित है. त्र्यम्बकेश्वर मंदिर गोदावरी नदी के तट पर स्थित है. यहां पर कालसर्प दोष और पितृदोष की पूजा की जाती है. मान्यता कि जिन लोगों की जन्म कुंडली में ये दोष पाया जाता है, वह व्यक्ति त्र्यंबकेश्व में आकर पूजा करे तो यह दोष समाप्त हो जाता है.

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार यहां स्थित ब्रह्मगिरी पर्वत पर देवी अहिल्या के पति ऋषि गौतम निवास करते थे. अन्य ऋषि, गौतम ऋषि से ईष्र्या रखने लगे थे. इस कारण एक बार गौतम ऋषि पर गौहत्या का आरोप लगा दिया गया. इस पाप का प्रायश्चित करने के लिए अन्य ऋषियों ने उनसे गंगा को इस स्थान पर लाने के लिए कहा. गौतम ऋषि ने शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या करने लगे. तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर जी और माता पार्वती ने उन्हें दर्शन दिये. शिवजी ने गौतम ऋषि से वर मांगने के लिए कहा. तब गौतम ऋषि ने गंगा माता को इस स्थान पर उतारने का वर मांगा. लेकिन गंगा माता ने कहा कि वे तभी इस स्थान पर उतरेंगी जब भगवान शिव यहां रहेंगे. तभी से भगवान शिवजी यहां पर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप निवास करने लगे. त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पास से ही गंगा नदी अविरल बहने लगी. इस नदी को यहां गौतमी नदी (गोदवरी) के नाम से भी जाना जाता है.

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता
त्र्यंबकेश्वर मंदिर भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है. यहां पर तीन शिवलिंग हैं. जिनकी पूजा की जाती है. इन तीन शिवलिंग को ब्रह्मा, विष्णु और शिव के नाम से जाना जाता है. मंदिर के पास तीन पर्वत स्थित हैं, जिन्हें ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार कहा जाता है. ब्रह्मगिरी पर्वत को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है. वहीं नीलगिरी पर्वत पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर है तथा गंगा द्वार पर्वत पर देवी गोदावरी मंदिर है.