पांडवों के मिट गए थे जहां सारे पाप, पढ़िए केदारनाथ मंदिर की कथा-के सी शर्मा

बद्री नौटियालदेश के 12 ज्योर्तिलिंगों में हिमालय पर स्थित ग्यारहवां ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ धाम ही एक ऐसा अद्भुत मंदिर है जहां महज छह महीने ही पूजा होती है, अन्य जगहों पर साल भर पूजा हो रही है. सावन की शिवरात्रि पर तो यहां का महत्व और भी बढ़ जाता है. मान्यता है कि इस विशेष मौके पर जो भी भक्त बाबा के स्वयंभू लिंग का जलाभिषेक कर बेल पत्र और ब्रह्मकमल अर्पित करते हैं उन्हें मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद कराया था. पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात भैंसे का पिछला भाग है. इस मंदिर की कथा बहुत ही रोचक है. आइए जानते हैं इस कथा के बारे में-

भगवान शिव का आवास
केदारनाथ को भगवान शिव का आवास माना जाता है. इसका वर्णन 'स्कंद पुराण' में भी आता है. भगवान शिव माता पार्वती से एक प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं. भगवान शिव आगे बताते हैं कि इस स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया था तभी से यह स्थान उनके लिए आवास के समान है. इस स्थान को स्वर्ग के समान माना गया है. एक अन्य कथा के अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने कठोर तपस्या की. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव के लिए इस स्थान पर निवास करने लगे.

पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया
पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव इस स्थान पर अपने भाइयों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए आए. पांडव भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे. लेकिन भगवान शिव पांडवों से रुष्ट थे. पांडव भगवान शिव से न मिल सके इसलिए शिवजी अंतर्ध्यान होकर केदारधाम आ गए.

पांडव भी शिवजी के पीछे पीछे चले आए. तब भगवान शिव ने भैंसे का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं के झुंड में मिल गए. पांडवों ने तब भी हर नहीं मानी और भीम ने अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया. भीम ने दो पहाड़ों तक पैर फैला दिए. ऐसा करने के बाद सभी गाय-बैल और भैंसे तो निकल गए लेकिन भगवान शिव ने पैरों के नीचे से जाने से मना कर दिया. तब भीम ने बैल को पकड़ने की कोशिश की लेकिन भगवान शिव बैल के रूप में भूमि में समा गए. लेकिन इसी बीच भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया.

पांडवों के प्रयासों से शिवजी प्रसन्न हुए और पांडवों के दर्शन दिए. पांडवों ने भगवान शिव से हाथ जोड़कर विनती की. शिवजी ने पांडवों को पाप मुक्त कर दिया. तभी से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति को केदारनाथ में पूजा जाता है.

सावन में नाम लेने से मिलता है पुण्य
मान्यता है कि सच्चे मन जो भी बाबा केदारनाथ का स्मरण करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. सावन के महीने में केदारानाथ के दर्शन बहुत ही शुभ माने जाते हैं.