शुभ और कल्याणकारी चिंतन है शिवत्व: संजीव


बदायंू: श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना विशेष फलदायी होती है। शिव का अर्थ है शुभ और शंकर का अर्थ है कल्याण करने वाला। श्रावण मास में शुभ और कल्याणकारी चिंतन, चरित्र एवं आकांक्षाएँ बनाने से शिव आराधना, शिव सान्निध्य का लाभ प्राप्त होता है।
शिव को प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को उनके अनुरूप बनना पड़ता है। सूत्र है- ‘‘ शिवो भूत्वा शिवं यजेत् ‘‘ इसका तात्पर्य पर है कि शिव बनकर शिव की पूजा करें, तभी उनकी कृपा प्राप्त हो सकती है। श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना व्यक्तिगत पुण्य और लोककल्याण दोनों दृष्टियों से बहुत महत्त्वपूर्ण है।
साधक श्रावण मास में अपने संयमित जीवन, व्रत-उपवास करें। शिव अपने लिए कठोर दूसरों के लिए उदार हैं। यह आदर्श सूत्र अध्यात्म साधकों के जीवन को पवित्र बना देता है। स्वयं न्यूनतम साधनों से काम चलाते हुए मस्त रहना, दूसरों को बहुमूल्य उपहार देना ही शिवत्व है। आराधक को शिवजी के आदर्श परिवार के जैसे श्रेष्ठ संस्कार युक्त परिवार निर्माण का प्रवाह समाज के बीच प्रवाहित करना चाहिए।
शिव कल्याणकारी हैं। ‘‘ भवानी शंकरौ वंदे ‘‘ भवानी और शंकर की हम वंदना करते हैं। यह ‘‘ श्रद्धा विश्वास रूपिणौ ‘‘ श्रद्धा और विश्वास इन दोनों का नाम ही शंकर-पार्वती है। ‘‘ याभ्यां बिना न पश्यन्ति ‘‘ जिनकी पूजा किए बिना कोई सिद्धपुरुष भी भगवान की कृपा प्राप्त नहीं कर सकता। श्रद्धा और भक्ति से ही जीवन में आने वाले संकटों, प्राकृतिक आपदाओं और विनाशकारी लीलाओं से बचा जा सकता है। 
भगवान शिव के गण भूत-पिशाच और देव वर्ग हैं। वीरभद्र प्रधान गण हैं। वीरता अभद्र न हो, भद्रता डरपोक न हो। तभी शिवत्व की स्थापना होती है। भले काम के लिए देव-पिशाच सभी एक जुट हो जाएँ यही प्रेरणा शिवजी के गणों से प्राप्त होती है। शिव की भक्ति से साधकों को हृदय में सतप्रवृत्तियों का प्रवाह उमड़ता है। लोकमंगल के कार्य संभव होते चले जाते हैं।
शिव के मस्तक पर चन्द्रमा पूर्ण ज्ञान का प्रतीक है। जटाओं के बीच से निकली ज्ञानगंगा अज्ञानता को दूर कर लोक कल्याण करती है। तीसरा नेत्र दूरदर्शिता और विवेकशीलता का प्रतीक है। व्यक्ति उदास, निराश और खिन्न, विपन्न बैठकर अपनी शक्तियों को न खोए। शिव की आराधना कर पुलकित और प्रफुल्लित जीवन जिए। ज्ञान, भक्ति और कर्म ही त्र्यंबक है। भगवान शिव ने श्रावण मास की शिवरात्रि में समुद्रमंथन से निकले हलाहल का पान कर लोकोपकार किया। श्रावण मास में शिवलिंग पर वेल पत्र और जल चढ़ाने से भगवान शिव और पार्वती की कृपा सहजता से प्राप्त होती है।