हॉस्पिटल की पहरेदारी कर बेटे को बनाया डॉक्टर पढ़ाने के लिए धोएं लोगों के बर्तन अब विदेश भेजने की तैयारी कर रही मां

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मुंबई. कहते हैं कि हौसला हो तो इंसान बड़े से बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है। हम आपको पुणे की रहने वाली एक ऐसी महिला सुरक्षाकर्मी की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने दिन रात मेहनत कर अपने बेटे को न सिर्फ डॉक्टर बनाया, बल्कि अब आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें विदेश भेजना चाहती हैं। बेटे की पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए कई रातें उन्हें भूखे पेट भी सोना पड़ा।
लोगों के घरों में धोए बर्तन
पिंपरी की रहने वाली कल्पना आढाव (55) पिछले 14 सालों से पिंपरी-चिंचवड़ पालिका अस्पताल के बाहर कॉन्ट्रैक्ट पर सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर रही हैं। हर दिन डॉक्टर्स को आता-जाता देख उन्होंने भी तय किया कि वे भी अपने बेटे अमित को डॉक्टर बनाएंगी। अमित पढ़ने में होनहार था लेकिन मेडिकल की तैयारी के लिए अच्छी कोचिंग की जरूरत थी, जिसके बाद कल्पना ने लोगों के घरों में बर्तन धोने का काम शुरू कर दिया।
अपना सब कुछ बेचने को तैयार हैं कल्पना
कल्पना के इस प्रयास से अमित ने इसी साल अपना MBBS पूरा किया है और आगे की पढ़ाई के लिए वे इंग्लैंड जा रहे हैं। कल्पना ने तय किया है कि अपने बेटे को इंग्लैंड भेज कर ही रहेंगी। चाहे इसके लिए उन्हें अपना सब कुछ बेचना क्यों न पड़े। उन्होंने बताया, 'मैं पूरी कोशिश कर रही हूं कि बेटे को विदेश भेज सकूं। मैं लोगों से अपील करती हूं कि मेरी मदद को आगे आएं। मैंने अपने जीवन में बहुत कष्ट देखे हैं लेकिन मैं चाहती हूं कि मेरा बेटा इन कष्टों से नहीं गुजरे।'
एक महीने के बेटे को छोड़ चला गया था पिता
कल्पना अपने बेटे के साथ एक झुग्गी में रहती हैं। अमित सिर्फ एक महीने का था जब उसके पिता दोनों को छोड़ कर चले गए थे। पति के जाने के कई साल बाद उन्हें हॉस्पिटल के बाहर गार्ड की नौकरी मिली। इस काम से फ्री होकर कल्पना लोगों के घरों में बर्तन धोने का काम करती थीं।
बेटे के लिए PM से लगाई गुहार
कल्पना ने बताया कि जब उन्होंने नौकरी शुरू की तो उन्हें सिर्फ 3 हजार रुपए मिलते थे। हालांकि, अब यह बढ़कर 14 हजार तक पहुंच गए हैं। फिलहाल उनका बेटा एक प्राइवेट हॉस्पिटल में इंटर्नशिप कर रहा है। MS की पढ़ाई के लिए उनका एडमिशन हो चुका है लेकिन उनके पास फिलहाल बेटे को इंग्लैंड भेजने के लिए पैसे नहीं है। कल्पना ने राज्य सरकार और प्रधानमंत्री मोदी से गुहार लगाई है कि वे उनके बेटे की मदद के लिए आगे आए।